आयुर्वेद की पढ़ाई का स्वरूप बदलें-शनकुशल

ॐ परमात्मने नमः
आज विज्ञान ने पदार्थ के अस्तित्व में PTV के अलावा चौथी विमा समय की पुष्टि का प्रत्यक्ष उदाहरण कोरोना के आतंक से प्रतीत हो रहा है ज्योतिष हो या वेद इनकी भविष्यवाणियों से २०२० से २०२५ ईसवी का समय विश्व आबादी को कम करेगा और उनके लिए कोरोना जैसे रोगों का वर्णन ऋग्वेद और अथर्वेद में मिलता है साथ ही भारत विश्व गुरु बनेगा एवं आर्थिक स्थिति में सबसे अच्छा होगा जिससे सोने की चिड़िया की कहावत भी साकार होगी। इसके लिए भारत के परमात्मा स्वरुप प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ही धन्यवाद के पात्र रहेंगे उनका नाम विश्व इतिहास में अमर रहेगा श्री मोदी जी ने जो कहा कि आयुर्वेद में ही कोरोना का उपचार मिलेगा यह बात सत्य है क्योंकि आयुर्वेद चार वेदों से आयु का ज्ञान लेकर पांचवा वेद आयुर्वेद है जिसमें आयु का ज्ञान लेकर आयु का विज्ञान किया जिसके उपयोग से मृत्यु पर विजय प्राप्त की और आयुर्वेद ने अमृत बना लिया तो आयुर्वेद का कार्य समाप्त हो गया। अब तो उस ज्ञान को वैज्ञानिक परिपेक्ष में उपयोग करना है। यह क्यों नहीं हो पा रहा क्योंकि हम आयुर्वेद को विज्ञान की तरह न पढ़ रहे ना समझ रहे इस कारण उसका उपयोग नहीं हो पा रहा अब आवश्यकता है और समस्त आयुर्वेदाचार्यों को यह कार्य सौंपा जाना चाहिए कि वे बताएं यह कोरोना वायरस क्या है यह आदमी द्वारा निर्मित है या समय अंतराल में प्रकृति प्रदत्त है आयुर्वेद का उपयोग तभी संभव है जब आयुर्वेद को ६ मान्यताओं पर उतारना होगा।

१. वेदों का ज्ञान (संस्कृत के ज्ञान के साथ)
२. आयुर्वेद का ज्ञान
३. ज्योतिष का ज्ञान
४. प्रयोगशाला (औषधि निर्माण)
५. चिकित्सालय (वास्तु शास्त्र से)
६. सहायक (स्त्री व पुरुष)

उपरोक्त ६ बातों को ध्यान में रखकर मृत्यु पर विजय प्राप्त की जा सकती है। 

   आयुर्वेद की वैज्ञानिकता सिद्ध की जा सकती है तभी जब विज्ञान को सही मानकर कसौटी पर आयुर्वेद को कसा जावे और विज्ञान की पहुंच को सीमित बताया जावे जो निम्न प्रकार से संभव है विज्ञान शरीर को पदार्थों से निर्मित मानता है और उसकी निश्चित मात्रा होती है जिसकी कम ज्यादा मात्रा मृत्यु कारक हो जाती है जो स्थूल शरीर में भोजन से प्राप्त तत्व कोषा तक पहुंचाए जाते हैं जिसमें भोजन पदार्थ की अवस्था पर निर्भर करता है तथा कोषा तक जाने के लिए नाड़ियां साफ होना चाहिए अर्थात रास्ता होना चाहिए। आज का विज्ञान रसायनों की मात्रा के लिए शल्य चिकित्सा को महत्व देता है। नाड़ियों के लिए शालावय तन्त्र आयुर्वेद में विकसित था परंतु आज हम न ही आदमी पर हाथी का सर लगा पाए ना हम भोजन को ११ द्वारों से खा पा रहे ना ही भोजन को भक्ष भोज्य लेह और चौश्य अवस्था का ज्ञान कर चबाकर खाना गुटकना, लपटकर खाना नो चूसना इसके महत्व को जानते ना कर रहे। इस ज्ञान से हम औषधि सेवन शरबत, गोली, भस्म, लेप और पफ आदि सब सिस्टम समझेंगे और आयुर्वेद को मानेंगे। 

 आधुनिक विज्ञान औषधि के मन का निर्माण नहीं कर सकी इस कारण प्राचीन आयुर्वेद में संजीवनी बूटी सूर्योदय से पहले की बात तथा रविवार को आंवला ना खाना एकादशी को चावल आदि का क्यामहत्व है समझना पड़ेगा वहीं रावण ने बड़ के पत्ते से तार को ७ धातुओं में बदलने के महत्व को समय की महिमा बताई वहीं पानी के प्रकार और अर्क से सभी चिकित्सा संभव है। औषधि की जातियां जातियां समझना होंगी जैसे सफेद धतूरा, पीला, काला इसमें प्रभाव का क्या अंतर है इसी प्रकार प्लास पीला, सफेद, लाल इसके अलावा एक पत्ती ३ पत्ती और ५ पत्ती के पलाश में क्या अंतर है। इसी प्रकार इनके तोड़ने और एकत्र करना जिसमें शुक्ल और कृष्ण पक्ष अमावश्या पूर्णमासी दिन में रात्रि में आदि साथ ही ५ अंगों फल, फूल, तना, जड़, पत्ते इसमें क्या चाहिए कब और क्यों।

वेदों में सब बताया है यहां तक कि समय पर कौन सी औषधि प्रकृति निर्मित करती है जैसे औषधि स्वयं अपने निर्माण को जानती है उसी को जानकर जादू की औषधियां और औषधियों के साथ से अमृत और विष बन जाता है यदि कोरोना वायरस है तो आयुर्वेद का अगद, बल एवं भ्रत्य और भूत संकाय से इसे बनाया जा सकता है और रसायन व बाजीकरण से कोरोना से लड़ने की क्षमता प्रदान करी जा सकती है।
पृथ्वी पर जीवन की रक्षा आयुर्वेद से ही संभव है उसके लिए आयुर्वेद शिक्षा होनी चाहिए जिसमें पूरे ६ विषय पढ़ाए जावे।

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