कमलनाथ सरकार को मैट्रो के कर्ज का सहारा

भोपाल,26 सितंबर(प्रेस सूचना केन्द्र)। घनघोर आर्थिक कुप्रबंधन से घिरी कमलनाथ सरकार ने कामकाज चलाने के लिए तीन शहरों में मैट्रो रेल परियोजना के नाम पर कर्ज बटोरने का अभियान चलाया है। इसके तहत आज भोपाल में सात हजार करोड़ रुपए के मैट्रो के पहले चरण का शिलान्यास किया गया। ये आकलन अभी आनन फानन में तैयार किया गया है वास्तविक लागत इससे कई गुना अधिक आने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

छिंदवाड़ा मॉडल की औद्योगिक कलाकारी वाली कमलनाथ की नौ महीने पुरानी बैसाखियों पर टिकी सरकार जिस तरह छीनाझपटी और भ्रष्टाचार के रिकार्ड बना रही है उसके चलते प्रदेश की तमाम आर्थिक व्यवस्थाएं गड़बड़ा गईं हैं। कमलनाथ जनता को बहलाने के लिए रोज रोज कहते फिरते हैं कि शिवराज सिंह चौहान सरकार खजाना खाली छोड़कर गई है। जबकि हकीकत ये है कि सरकार को जो बयालीस सौ करोड़ रुपए मासिक आय होती थी वो अब तेजी से गिरती जा रही है। सरकार के तमाम प्रस्ताव केन्द्र ने मैचिंग ग्रांट तक न चुका पाने के कारण वापस लौटा दिए हैं।

कमलनाथ का जादू टूटने लगा है और वे जिस औद्योगिक जादूगरी का हवाला देकर सत्ता में आए थे उसकी हालत इतनी खस्ता है कि आज जब भोपाल में मैट्रो का उद्घाटन करते हुए उन्होंने इसे राजा भोज मैट्रो का नाम दिया तो कांग्रेस के ही एक विधायक आरिफ मसूद ने उनकी बात काट दी। उन्होंने कहा कि मैट्रो का नाम भोपाल मैट्रो ही रहने दिया जाए। मंच से कमलनाथ की बात काटे जाने से कांग्रेस के तमाम नेता और पदाधिकारी खुद को असहाय महसूस करते रहे।

दरअसल सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने की भारत सरकार की नीति के चलते भोपाल में भी रेल शुरु करने की योजना बनाई गई थी। पूरे देश में राजीव गांधी की पहल पर जिस वैयक्तिक परिवहन को बढ़ावा दिया गया था वह बुरी तरह असफल साबित हुआ है। देश को आयातित ईंधन आधारित परिवहन के लिए मंहगी कीमत चुकानी पड़ी और हर आम आदमी को अपनी आय का बड़ा हिस्सा वाहन खरीदने पर खर्च करना पड़ा था। सड़कों पर वाहनों की भीड़ इतनी अधिक बढ़ गई कि सडकों को चौड़ा करने के लिए भी सरकारों को मोटा कर्ज लेना पड़ा इसके बावजूद सार्वजनिक परिवहन की हालत जस की तस रही।

कमलनाथ ने कुर्सी संभालते वक्त कहा था कि भोपाल को मैट्रो की जरूरत नहीं है यहां मोनो रेल चलाई जानी चाहिए। इसके बावजूद अब वे ही इंदौर, जबलपुर और भोपाल में भी मेट्रो चलाने की वकालत कर रहे हैं। इसकी वजह मैट्रो पर लिया जाने वाला वह मोटा कर्ज है जिसका उपयोग वे प्रदेश का खर्च चलाने में करने की तैयारी कर रहे हैं। भोपाल में सात हजार करोड़ रुपए से जो 27.87 किलोमीटर की मैट्रो बिछाई जानी है उसका महज 1.79 किलोमीटर हिस्सा जमीन के नीचे होगा। बाकी पूरी मैट्रो पिलरों पर ही चलेगी। इसके दो कारीडोर बनेंगे जिसमें से एक करोंद सर्कल से एम्स तक 14.94 किलोमीटर और दूसरा भदभदा चौराहा से रत्नागिरि चौराहा तक 12.88 किलोमीटर का होगा। इसकी प्राथमिक लागत 6941 करोड़ 40 लाख होगी। प्रोजेक्ट में एलीवेटेड सेक्शन 26.08 किलोमीटर का होगा। इसमें कुल 28 स्टेशन बनेंगे। अंडर ग्राउण्ड सेक्शन 1.79 किलोमीटर का होगा, जिसमें 2 स्टेशन बनेंगे। पहला भाग दिसम्बर 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य है।

गौरतलब है कि दिल्ली प्रदेश में मैट्रो रेल 327 किलोमीटर चलती है।यह रेल नेटवर्क दिल्ली के एक करोड़ अस्सी लाख लोगों के लिए बनाया गया है जिसमें हर दिन सोलह लाख लोग सफर करते हैं। इसके बावजूद मैट्रो घाटे में चलती है। जबकि भोपाल की आबादी महज 23 लाख है और यहां 27 किलोमीटर में मैट्रो बिछाने की तैयारी की गई है। जिस तरह बीआरटीएस रोड़ असफल साबित हुई और शहर की परिवहन जरूरतें पूरी नहीं कर पाई उसी तरह मैट्रो भी फिलहाल औचित्यहीन है। इसके बावजूद कमलनाथ सरकार ने आनन फानन में मैट्रो केवल इसलिए प्रारंभ की ताकि वो इसके नाम पर कर्ज ले सके और राज्य की जरूरतें पूरी कर सके। कांग्रेस के लोग इसे कमलनाथ की औद्योगिक सूझबूझ बता रहे हैं जबकि दिन ब दिन प्रदेश के लोगों की बैचेनी बढ़ती जा रही है।

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