पाप करने वालों को उनके हाल पर छोड़ दो: आचार्य श्री

गुरुवर आचार्य विद्यासागर जी के अधूरे कार्यों में अड़ंगा बने षड्यंत्रकारियों को बेनकाब कर रहे हैं आचार्य सुधासगर जी।


आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की विरासत को हथियाने की होड़ इन दिनों जैन धर्मावलंबियों के जी का जंजाल बनी हुई है। ये लड़ाई इतनी कर्कश है कि इसमें कई षड़यंत्रकारी जीवित संतों को भी अपमानित करने में जुट गए हैं। राष्ट्रसंत आचार्य भगवान श्री विद्यासागर जी महामुनिराज ने साल 2019 में चातुर्मास की स्थापना दिवस पर मुनि श्री नियम सागर जी महाराज और मुनि श्री सुधा सागर जी मुनिराज को निर्यापक श्रमण की उपाधि दी थी. उन्होंने निर्यापक श्रमण व्यवस्था के बारे में भी जानकारी दी थी. उन्होंने बताया था कि जब संघ बड़ा होता है, तब निर्यापक श्रमण की व्यवस्था की जाती है. मुनियों को यह ज़िम्मेदारी दी जाती है कि वे देश भर में धर्म का संदेश लेकर भ्रमण करें.तभी से आचार्य सुधासागर जी देश भर में जैन समाज को एकजुट करने और तीर्थों के प्रबंधन को सुचारू बनाने का काम कर रहे हैं। इसके बावजूद आचार्यश्री के इर्द गिर्द जमे बैठे रहे षड़यंत्रकारियों ने उनकी विरासत को हड़पने के लिए तरह तरह के पाखंड शुरु कर दिए हैं। आचार्यश्री का जन्मदिन मनाना भी उसमें से एक है।
ताजा विवाद की शुरुआत सागर से हुई है।यहां के मंगलगिरी जैन तीर्थ से जुड़े कुछ ट्रस्टियों ने खुद को जैन पंचायत का नेता लिखना शुरु कर दिया था। संकोच से भरे जैन धर्मावलंबियों ने चुप्पी साध रखी थी क्योंकि सामान्य कार्यक्रमों में ये लोग बड़ी बड़ी धनराशि दान की घोषणा करते रहते थे। जबकि हकीकत ये थी कि ये लोग जैन समाज की ही धनराशि विभिन्न मदों में निकालकर उसे अपने नाम की दानराशि बता देते थे। आचार्य सुधा सागर जी की जानकारी में जब ये तथ्य लाए गए तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कह दिया कि हमें उस राशि का ब्याज नहीं चाहिए आप तो समाज की मूल राशि वापस कर दीजिए। इस घटनाक्रम के बाद कतिपय षड़यंत्रकारियों ने वाट्सएप ग्रुप पर अनर्गल बयानबाजी करना शुरु कर दिया।
दबंग मुनि और सख्त प्रशासक सुधासागर जी को अपमानित करने के लिए उन्होंने सार्वजनिक मंच पर निवेदन किया कि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के जन्मदिवस शरद पूर्णिमा पर आयोजित होने जा रहे समारोह में आप भी शामिल होकर हमें आशीर्वाद प्रदान करें। इस पर सुधासागर जी ने फटकार लगाते हुए कहा कि आचार्यश्री किसी भौतिक शरीर के जन्मदिन मनाने के खिलाफ थे। हम तो उनके उपदेशों को आत्मसात किए हुए हैं और उन पर अमल भी करते हैं। उन्होंने जैन धर्म की प्रभावना का जो दायित्व हमें सौंपा है हम वो कर रहे हैं। अब यदि हम सार्वजनिक मंच से आयोजन में शामिल होने से इंकार करते हैं तो ये कहा जाएगा कि मैं आचार्यश्री का विरोधी हूं। इसके विपरीत यदि आयोजन में शामिल होते हैं तो कहा जाएगा कि ये अपने गुरु की आज्ञा का पालन नहीं कर रहे हैं।
इस घटना पर पीठासीन आचार्य समयसागर जी ने तो कुछ नहीं कहा बल्कि संघ से जुड़े कुछ महंतों ने इशारा करके आचार्यश्री का जन्मदिन मनाने के निर्देश दिए। उनका प्रयास है कि सार्वजनिक तौर पर मना करने के बावजूद आचार्यश्री का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाएगा तो ये नैरेटिव गढ़ना सरल होगा कि आचार्य सुधासागर जी जैन समाज के सर्वमान्य संत नहीं हैं। आज शरदपूर्णिमा के अवसर पर जब प्रदेश के कुछ शहरों में आचार्यश्री का जन्मदिन मनाने की बात कही गई तो जैन समाज के बीच की अराजकता एक बार फिर उजागर हो गई है।
इस तरह की गंदगी स्वयं आचार्यश्री विद्यासागर जी के समयकाल में भी छुटपुट तरीके से उजागर होती रही है। कई बार उनके शिष्यों ने इस विषय पर आचार्यश्री से भी शिकायत की थी। इस पर उन्होंने कहा कि हम लोग सामाजिक सहयोग से बड़े प्रकल्प शुरु कर रहे हैं। इतने विशाल कार्यों में जुड़े कुछ लोग गड़बड़ियां भी करते हैं इसकी जानकारी भी सामने आ जाती है। इसके बावजूद हमें अपना कार्य करते रहना है। जो पाप कर्म में लीन रहेगा उसका पाप ही उसकी गति सुनिश्चित करेगा। हम इस पर क्यों परेशान हों। वे अपने शिष्यों से कहते थे कि कई व्यक्ति अपने कर्म और भाव में सामंजस्य नहीं बिठा पाते हैं। इसलिए ऐसे व्यक्तियों की आलोचना उनके सामने एकांत में की जानी चाहिए । सार्वजनिक रूप से तो उसके अच्छे कार्यों का समर्थन किया जाना चाहिए।
प्रख्यात दार्शनिक ओशो कहते थे कि जब कोई आत्मज्ञानी व्यक्ति अपना शरीर छोड़ता है तो वह जगह या तो मंदिर बन जाती है या फिर दूकान। उनका ये कथन इन दिनों जैन समाज के बीच कलंकित चेहरा लेकर सामने आ रहा है।मुनि संघ के सदस्य तो इन हालात को समझ रहे हैं। वे इस पर चर्चा भी कर रहे हैं। जैन मुनि विषद सागर जी ने तो सार्वजनिक तौर पर इस मुद्दे पर प्रकाश डाला और संघ के मन की व्यथा सार्वजनिक तौर पर बयान की है। इसके बावजूद कई दूकानदार अपना धंधा जारी रखे हुए हैं। आचार्यश्री का जन्मदिन मनाकर वे भक्तों की भावनाओं का दोहन करते रहते हैं। कई लोगों के लिए तो शरद पूर्णिमा पच्चीस लाख रुपयों से एक करोड़ रुपयों तक का धंधा दे जाती है। जाहिर है कि वे किसी तत्वज्ञानी की सलाह पर आखिर क्यों गौर करेंगे। मोक्ष किसने देखा है और हर कोई तो मोक्षगामी बनना भी नहीं चाहता। फिर पाप की गति क्या होगी ये तब देखा जाएगा जब इसके नतीजे आएंगे।

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