दुनिया की हर थाली में हो भारत का जैविक खाद्यान्नःप्रधानमंत्री मोदी

नई दिल्ली,16 अगस्त(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)। सरकार ने अनुसंधान बुनियादी ढांचे की समीक्षा, जलवायु के अनुकूल फसल किस्मों के विकास, एक करोड़ किसानों के बीच प्राकृतिक खेती को बढ़ावा और जैव-इनपुट संसाधन केंद्रों की स्थापना जैसी पहल के जरिये कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए एक व्यापक रणनीति की रूपरेखा तैयार की है।
इसके अलावा सरकार के अन्‍य प्रयासों में दलहन एवं तिलहन में आत्मनिर्भरता हासिल करना, सब्जी उत्पादन क्लस्टर विकसित करना, कृषि में डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को लागू करना और नाबार्ड के जरिये झींगा पालन को प्रोत्‍साहित करना शामिल है। इन पहलों का उद्देश्य कृषि को आधुनिक बनाना और कृषि क्षेत्र में सतत विकास सुनिश्चित करना है। आइए, सरकार द्वारा इस क्षेत्र को उन्नत बनाने और इस संबंध में लागू सरकारी योजनाओं की प्रगति के बारे में चर्चा करते हैं।

  1. प्राकृतिक खेती
    माननीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट में कृषि को प्राथमिकता दी है। उन्‍होंने प्रमाणन एवं ब्रांडिंग द्वारा समर्थित 1 करोड़ किसानों के समक्ष प्राकृतिक खेती करने का प्रस्ताव रखा है। इसका कार्यान्वयन इच्छुक ग्राम पंचायतों के साथ वैज्ञानिक संस्थानों के जरिये किया जाएगा। इसके अलावा आवश्यकता पर आधारित 10,000 बीआरसी स्थापित किए जाएंगे, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर सूक्ष्म उर्वरक एवं कीटनाशक विनिर्माण नेटवर्क स्‍थापित होगा।
    क्या है प्राकृतिक खेती
    प्राकृतिक खेती रसायन मुक्त खेती है, जिसमें पशुधन को शामिल करते हुए कृषि के प्राकृतिक तरीके और भारतीय पारंपरिक ज्ञान पर आधारित विविध फसल व्‍यवस्‍था शामिल हैं। इसका उद्देश्‍य जलवायु के प्रति बेहतर अनुकूलता के साथ मृदा स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार लाने और किसानों की इनपुट लागत को कम करने के लिए गैर-सिंथेटिक रासायनिक इनपुट का उपयोग करना है।
    भारत में प्राकृतिक खेती
    भारत सरकार ने परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत सीमित क्षेत्रों में ‘भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी)’ के जरिये 2019-20 में प्राकृतिक खेती की शुरुआत की थी। बीपीकेपी को राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन (एनएमएनएफ) के जरिये मिशन मोड में आगे बढ़ाने की योजना है।
    एनएमएनएफ, को खेती की प्रकृति पर आधारित टिकाऊ प्रणालियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रस्तावित किया जा रहा है। इसमें कृषि इनपुट भी शामिल है ताकि बाहर से खरीदे गए इनपुट पर निर्भरता कम होगी, मृदा क्वालिटी बेहतर होगी और इनपुट लागत में कमी आएगी। साथ ही इसमें विस्तार एवं अनुसंधान संस्थानों की खेतों पर कृषि-पारिस्थितिकी अनुसंधान एवं ज्ञान पर आधारित विस्तार क्षमताओं को मजबूत करना, प्राकृतिक खेती के फायदे, संभावना एवं कार्यप्रणाली पर बेहतर ज्ञान एवं प्रस्‍तुति के लिए प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों के अनुभव और वैज्ञानिक विशेषज्ञता को साथ लाते हुए उनसे सीखना, प्राकृतिक रूप से उगाए गए रसायन मुक्त उत्पादों के लिए वैज्ञानिक तौर पर समर्थित एवं किसानों के अनुकूल आसान प्रमाणन प्रक्रियाएं स्थापित करना और प्राकृतिक रूप से उगाए जाने वाले रसायन मुक्त उत्पादों के लिए एकल राष्ट्रीय ब्रांड स्‍थापित करना और उसका प्रचार करना शामिल हैं।
    चार वर्षों (2022-23 से 2025-26) की अवधि के लिए इस योजना का कुल परिव्यय 2,481.00 करोड़ रुपये है।
  2. दलहन एवं तिलहन में आत्मनिर्भरता के लिए सरकारी पहल
    दलहन एवं तिलहन में आत्मनिर्भरता हासिल करना भारत सरकार की प्राथमिकता रही है। इसके लिए विभिन्न पहल एवं योजनाएं शुरू की गई हैं:
    राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम)
    भारत सरकार द्वारा 2018-19 से देश में खाद्य तेल में उत्‍पादन बढ़ाकर, आयात का बोझ कम करने के उद्देश्‍य से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- तिलहन (एनएफएसएम-ओएस) को लागू किया गया है।
    इसका उद्देश्य देश में तिलहन (मूंगफली, सोयाबीन, रेपसीड एवं सरसों, सूरजमुखी, कुसुम, तिल, नाइजर, अलसी एवं अरंडी) के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करना है। साथ ही, पाम ऑयल एवं वृक्ष आधारित तिलहन (जैतून, महुआ, कोकम, जंगली खुबानी, नीम, जोजोबा, करंज, सिमरोबा, तुंग, च्यूरा एवं जेट्रोफा) का क्षेत्र विस्तार करना है।
    सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप तिलहन की खेती के लिए कुल क्षेत्र 2014-15 में 2.56 करोड़ हेक्टेयर से बढ़कर 2023-24 में 30.08 करोड़ हेक्टेयर हो गया है, जो 17.5 % की वृद्धि दर्शाता है। परिणामस्‍वरूप पिछले 9 वर्षों में खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन 2015-16 में 86.30 लाख टन के मुकाबले 40 % से अधिक बढ़कर 2023-24 में 121.33 लाख टन हो गया है। घरेलू मांग में भारी उछाल के बावजूद अब आयात पर हमारी निर्भरता 63.2 % से घट कर 57.3% हो गयी है । राष्ट्रीय पाम ऑयल मिशन के तहत भी हमारे किसानों की मदद से तिलहन की खेती के लिए क्षेत्र बढ़कर 4.7 लाख हेक्टेयर तक हो गया है।
    न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)
    एमएसपी हमारे किसानों के लिए उनकी उपज की वास्तविक लागत के मुकाबले 50 प्रतिशत अधिक मूल्‍य सुनिश्चित करता है । इस प्रकार कृषि लागत पर आकर्षक रिटर्न मिलता है। आज एमएसपी सबसे अधिक है । एक दशक पहले के मुकाबले मसूर के एमएसपी में 117 प्रतिशत, मूंग के एमएसपी में 90 प्रतिशत, चना दाल के एमएसपी में 75 प्रतिशत, तुअर और उड़द के एमएसपी में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। नाफेड और एनसीसीएफ, किसानों को दलहन और मसूर की खेती में विविधता लाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। वे किसानों के साथ सरकारी खरीद के लिए एक निर्धारित मूल्‍य पर 5 साल का अनुबंध करने के लिए तैयार हैं। यह भारत सरकार द्वारा उठाया गया एक बड़ा कदम है ।
  3. अधिक उपज और जलवायु के अनुकूल किस्में: भारत में समय की मांग
    भारत सरकार ने देश भर में कृषि पद्धतियों में क्रांतिकारी बदलाव लाने के उद्देश्य से 32 क्षेत्रीय व बागवानी फसलों में 109 नई उच्च उपज देने वाली और जलवायु-अनुकूल किस्मों को पेश करने की एक महत्वपूर्ण पहल की घोषणा की है। इन नई किस्मों को फसल उत्पादकता बढ़ाने और सस्‍टेनेबिलिटी सुनिश्चित करते हुए विविध जलवायु परिस्थितियों के अनुकूललिए विकसित किया गया है।
    वर्ष 2014-15 से 2023-24 के दौरान अधिक उपज देने वाली कुल 2,593 किस्में जारी की गईं। इनमें 2,177 जलवायु के अनुकूल (कुल का 83 प्रतिशत) जैविक एवं अजैविक तनाव प्रतिरोध के साथ और 150 जैव-फोर्टिफाइड फसल किस्में शामिल हैं। इसके अलावा 56 फसलों की 2,200 से अधिक किस्मों के 1 लाख क्विंटल से अधिक ब्रीडर बीजों का उत्पादन किया जा रहा है। जलवायु के अनुकूल प्रौद्योगिकी को अपनाए जाने से असामान्य वर्षों के दौरान भी उत्पादन में वृद्धि हुई है।
  4. कृषि में बदलाव: डिजिटल फसल सर्वेक्षण में क्रांति लाने के लिए डीपीआई पहल
    कृषि में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) को लागू किए जाने संबंधी सरकार की पहल का उद्देश्य किसानों को लाभ पहुंचाने और कृषि दक्षता को बेहतर करने के लिए डिजिटल तकनीक का फायदा उठाते हुए इस क्षेत्र में क्रांति लाना है। पायलट परियोजनाओं की सफलता से उत्साहित होकर इस राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम को तीन वर्षों के दौरान राज्य सरकारों के सहयोग आगे बढ़ाया जाएगा।
    शुरुआती चरण में खरीफ सीजन के दौरान 400 जिलों में डिजिटल फसल सर्वेक्षण किया जाएगा। इसके तहत डीपीआई का उपयोग करते हुए तीनों फसल सीजन में खेतों में बोआई की गई फसल और उसके रकबे के बारे में विस्तृत आंकड़े जुटाए जाएंगे। इससे हरेक खेत के लिए सटीक, वास्तविक समय आधारित फसल क्षेत्र की जानकारी प्रदान करने और गिरदावरी जैसे पारंपरिक सर्वेक्षण तरीकों को बदलने में मदद मिलेगी। इन पहलुओं के डिजिटलीकरण के साथ सरकार सब्सिडी वितरण, बीमा कवरेज और आपदा प्रबंधन सहित कृषि रणनीतियां तैयार करने और उन्हें बेहतर ढंग से लागू कर सकती है।
  5. तकनीकी पहल: सुलभ किसान क्रेडिट कार्ड के साथ किसानों का सशक्तिकरण
    कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्लू) अपनी प्रमुख संशोधित ब्याज सहायता योजना (एमआईएसएस) के जरिये किसानों की सहायता के प्रतिबद्ध है। इसका उद्देश्य किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के जरिये अल्पकालिक आवश्यकताओं के लिए किफायती ऋण प्रदान करना है। इस योजना की दक्षता, पारदर्शिता और समय पर लाभ वितरण को बेहतर करने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने पिछले साल शुरू किए गए किसान ऋण पोर्टल (केआरपी) के जरिये दावा प्रक्रिया को डिजिटल कर दिया है।
    फिलहाल केआरपी 1,71,221 बैंक शाखाओं, 33 अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी), 356 जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी), 20 राज्य सहकारी बैंकों (एसटीसीबी), 45 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी), आरबीआई और नाबार्ड के साथ एकीकृत हो चुका है। यह पोर्टल फिलहाल किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) खातों के लिए ब्याज अनुदान एवं पीआरआई दावों को प्रॉसेस कर रहा है, जिसमें वर्ष 2024-25 के लिए 22,600 करोड़ रुपये का बढ़ा हुआ आवंटन शामिल है।
    इसके अलावा सरकार संस्थागत ऋण तक व्यापक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी का फायदा उठाते हुए किसान ऋण पोर्टल (केआरपी) की क्षमताओं को बढ़ा रही है। इससे किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के जरिये कृषि ऋण तक निर्बाध और बिना किसी परेशानी के पहुंच सुन‍िश्चित होगी। सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप चालू केसीसी खातों की संख्या 2013 में 6.46 करोड़ से बढ़कर 2024 में 7.75 करोड़ हो गई है। इसी प्रकार इन केसीसी खातों में बकाया ऋण 2013 में 3.63 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2024 में 9.81 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
  6. पर ड्रॉप मोर क्रॉप (पीडीएमसी)
    देश में 2015-16 से पर ड्रॉप मोर क्रॉप (पीडीएमसी) यानी प्रति बूंद अधिक फसल योजना लागू की जा रही है। पीडीएमसी सूक्ष्म सिंचाई यानी ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियों के माध्यम से खेत स्तर पर जल उपयोग दक्षता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करती है। सूक्ष्म सिंचाई से जल की बचत होने के साथ-साथ उर्वरक उपयोग, श्रम खर्च एवं अन्य इनपुट लागत में भी कमी आती है और किसानों की समग्र आय में वृद्धि होती है।
    इस योजना के तहत सूक्ष्म सिंचाई की व्‍यवस्‍था के लिए लघु एवं सीमांत किसानों को 55 प्रतिशत और अन्य किसानों को 45 प्रतिशत की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। सूक्ष्म सिंचाई के कवरेज का विस्तार करने के लिए संसाधन जुटाने में राज्यों की मदद के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के साथ मिलकर सूक्ष्म सिंचाई कोष (एमआईएफ) स्‍थापित किया है।
    वर्ष 2015-16 से 2023-24 तक पीडीएमसी के जरिये देश में सूक्ष्म सिंचाई के तहत कुल 90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया गया है, जो पीडीएमसी से पहले के नौ वर्षों की कवरेज की तुलना में काफी (92 प्रतिशत) अधिक है।
    निष्कर्ष
    केंद्र सरकार की समग्र कृषि रणनीति का उद्देश्य अनुसंधान एवं विकास के जरिये उत्पादकता एवं पर्यावरण के प्रति अनुकूलता को बेहतर करना और अधिक उपज वाली नई फसल किस्मों को पेश करना है। इसके तहत एक करोड़ किसानों के लिए प्राकृतिक खेती की पहल को प्राथमिकता दी गई है, जैव-इनपुट केंद्र स्‍थापित करने और दलहन एवं तिलहन के उत्‍पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में भी प्रयास जारी हैं । डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा और झींगा प्रजनन केंद्रों के लिए मदद जैसी पहल देश भर में कृषि के विस्‍तार एवं आधुनिकीकरण के लिए भारत सरकार द्वारा उठाये जा रहे महत्वपूर्ण क़दमों को रेखांकित करती हैं।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*