चुनावों की आचार संहिता लागू होने में समय है लेकिन कमलनाथ की कांग्रेस अभी से पंचर हो गई है। भारतीय जनता पार्टी ने कारगर कार्यशैली अपनाकर जनता से जो संवाद स्थापित किया है उससे कांग्रेस के रणनीतिकार बौखला गए हैं। पिछले चुनावों में बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया था और सत्ता में पहुंचे कमलनाथ का दंभ सत्रहवें आसमान पर पहुंच गया था । ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब उनके लटके झटके करीब से देखे तो उन्होंने जनता से की जा रही गद्दारी से अपना नाता तोड़ लिया था । नाथ की सरकार जब औंधे मुंह गिरी तभी से वे विक्षिप्त हो गए हैं। अपनी मनोदशा पर वे जैसे तैसे काबू बनाए हुए थे लेकिन इस चुनाव के पहले जनता में भाजपा के प्रति जो प्रेम और विश्वास उमड़ रहा है उसे देखकर तो कमलनाथ अपना आपा खो बैठे हैं। इंदौर में मतंग समाज के कार्यक्रम में उन्होंने साजिशन पत्रकारों को धक्के देकर बाहर निकाल दिया। ऐसा नहीं कि पत्रकारों को गरियाने का उनका ये पहला मामला है। वे हमेशा से प्रेस को धकियाने का प्रयास करते रहते हैं। इसके बावजूद मीडिया उनकी बातों को जनता तक पहुंचाने का अपना दायित्व निभाता रहा है। पिछले चुनावों में अधिक वोट पाने के बावजूद जब भाजपा सत्ता से दूर रह गई तब कमलनाथ ने कुर्सी पाते ही पत्रकारों को गरियाना शुरु कर दिया था। उन्होंने बदतमीजी भरे अंदाज में कहा कि मैं अखबारों में अपनी फोटो नहीं छपवाना चाहता हूं इसलिए आप पत्रकारिता छोड़कर कोई दूसरा धंधा अपना लो। दंभ से चूर गांधी परिवार के इस प्यादे को बुढ़ापा आ जाने तक ये नहीं मालूम पड़ा कि पत्रकारिता करने वाले किसी सरकार के भरोसे अखबार बाजी नहीं करते हैं। भारत की प्रेस अपने पैरों पर खड़ी है । वह वास्तव में जनता का उपकरण है। जनता ही उसे जिंदा रखती है। किसी सरकार की इतनी हैसियत नहीं कि वह प्रेस को कुचल पाए। इसके बावजूद कुर्सी पाते ही कुछ लोगों को मुगालता हो जाता है कि वे प्रेस को अपने घर के बाहर बंधा कुत्ता बना लेंगे। दरअसल अंग्रेजों की एजेंट रही कांग्रेस हमेशा से प्रेस पर लगाम लगाने का प्रयास करती रही है। सत्ता में आने के बाद कांग्रेस के तमाम बड़े नेता योजनाओं में भ्रष्टाचार करके जन धन की चोरी करते रहे हैं। वे चाहते हैं कि उनकी काली करतूतें अखबारों में न छपें मीडिया पर न दिखाई जाएं । इसके लिए मीडिया को गुलाम बनाए रखने का प्रयास करते रहे हैं । कमलनाथ को इस उठा पटक में महारथ हासिल रहा है। वे आपातकाल के प्रमुख अत्याचारी रहे हैं। नीरा राडिया टेप कांड में उन्हें मिस्टर फिफ्टीन परसेंट कहा गया था। उनकी पूरी राजनीतिक सोच इंस्पेक्टर राज और कमीशनबाजी पर केन्द्रित रही है। यही वजह है कि वे मीडिया का मुंह बंद करने का प्रयास करते रहते हैं । भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने समाज के सभी वर्गों को सत्ता में भागीदार बनाया है। जनता के संसाधनों को मिल बांटकर विकास की गति बढ़ाने के उसके प्रयास सफल रहे हैं और आज मध्यप्रदेश सर्वाधिक उत्पादकता कायम रख पाने वाला राज्य बन गया है। भाजपा ने इन प्रयासों को अपने नेतृत्व वाले सभी राज्यों में दुहराया है। यही वजह है कि भाजपा शासित राज्य विकास की पायदानों पर कारगर साबित हुए हैं। ये बात अलग है कि कुछ राज्यों में भाजपा नेतृत्व अपना दायित्व ठीक तरह नहीं निभा पाया और वहां उनकी सरकारें गिर गईं । इसके बावजूद उन विपक्ष शासित राज्यों में विकास भी परवान नहीं चढ़ पाया है। पुरातन सोच रही है कि रोटी को पलटते रहना चाहिए नहीं तो वह जल जाती है। जबकि ये जुगाड़ वाला फार्मूला केवल बकवास है। जैसे ही नए व्यक्ति को सत्ता थमाई जाती है वह भ्रष्टाचार करके अपना घर भरने जुट जाता है। विकास की पद्धतियां बदलती जा रहीं हैं। कांग्रेस की विकास की अवधारणा असफल साबित हुई है। उसका दौर बीत गया है। भाजपा ने लोकतांत्रिक सरकारों की अवधारणा बदलकर रख दी है। देश को समझ लेना चाहिए कि भाजपा का विकल्प अब कांग्रेस या कोई दूसरी पार्टी नहीं है। अब भाजपा का विकल्प केवल भाजपा ही हो सकती है। ये बात जरूर है कि भाजपा के विकल्प के रूप में हमें सुधरी और साफ सुथरी भाजपा बनाना पड़ेगी। ऐसी भाजपा बनाने की जवाबदारी भाजपा को तो निभानी ही है जनता को भी निभानी है। जनता अपनी ये जवाबदारी प्रेस के माध्यम से ही निभाती है। प्रेस तो केवल माध्यम है उसे चुनाव नहीं लड़ना और न जीतना है। ऐसे में वह उन कड़े फैसलों को लागू करने के लिए सरकार पर दबाव बना सकती है जिन्हें सरकारें आमतौर पर न्यायपालिका की ओर खिसका देती हैं।या फिर अपने वोट बैंक को नाराज न करने का जतन करते हुए ठंडे बस्ते के हवाले कर देती हैं। प्रेस की लोकतांत्रिक जवाबदारी है कि वह जनहित के फैसलों को राजनीतिक दलों के बीच संवाद स्थापित करके सख्ती से दबाव बनाकर लागू करवाए । वह मीडिया है लेकिन नपुंसक माध्यम नहीं है। उसकी विचारधारा जनता की विचारधारा है। आधुनिक भारत की जनता देश को आगे बढ़ाना चाहती है। आगे बढ़ाने के उपाय लागू करना चाहती है।इसलिए मीडिया से अपेक्षा करती है कि वह उसकी भावनाओं को लागू करवाएगा। सरकारों ने मीडिया को अपना पुछल्ला बनाने के लिए बड़े मीडिया घरानों को कर्ज के दलदल में फंसा लिया है। आज वह मीडिया को गरियाकर उसे अपनी ताबेदारी के लिए मजबूर करना चाहती है। इसके बावजूद कमलनाथ जैसे कांग्रेसियों को या अन्य राजनीतिक दलों के लोगों को समझ लेना चाहिए कि सौ फीसदी मीडिया उसका गुलाम नहीं है और न कभी ऐसा हो सकता है। नई पीढ़ी के युवा पत्रकार अब धीरे धीरे सरकारों के चंगुल से बाहर निकलते जा रहे हैं। सोशल मीडिया ने उनके हाथों में बड़ी ताकत दे दी है। ऐसे में उन्हें मीडिया से पंगा लेने का मानस बदलना होगा। यदि वे सोचते हैं कि मीडिया को गाली देने से वे मीडिया पर दबाव बना लेंगे तो ये उनकी बड़ी भूल है। इंदौर में मीडिया से की गई उनकी बदतमीजी ने बंद बोतल का ढक्कन खोल दिया है। जिन्न बाहर आ चुका है। अभी चुनाव के लिए कई दौर बाकी हैं। समूचा देश देखेगा कि किस तरह जनता का मीडिया घमंडिया गठबंधन के इस आततायी सोच को खदेड़ बाहर करता है। जो लोग समझते हैं कि वे मीडिया को गाली देंगे तो वह उनकी नालायकी भरी सोच को संबल प्रदान करने लगेगा वे अपनी गलती सुधार लें। मीडिया के कुछ लोग भी अपनी अज्ञानता में ऊटपटांग बयान देने लग जाते हैं वे भी सावधान हो जाएं क्योंकि कमलनाथ जैसे भ्रष्टाचार में निपुण राजनेता कल काम निकल जाने पर उन्हें भी धकेलकर सत्ता से गलियारों से बाहर कर देंगे । जिंदा प्रेस उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भी पहुंचा देता है।
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