भोपाल 28 जुलाई(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)। अदालतों को गुमराह करके ठगी के आरोपों से बच निकलने में माहिर बूटकाम सिस्टम्स के प्रकाश चंद गुप्ता को फिलहाल गिरफ्तारी से बच निकलने में सफलता मिल गई है।इसके बावजूद पास्को एक्ट में दर्ज ताजा मामले से उसके ठगी और व्यभिचार के अपराध पूरी तरह उजागर हो गए हैं। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विशाल धगट ने उसका जो जमानत आवेदन मंजूर किया उसमें उसे पुलिस के सामने सरेंडर करने ,पासपोर्ट जमा करने, विदेश भागने से रोकने, पचास हजार रुपए का निजी मुचलका भरने और पुलिस जांच अधिकारी के सामने जांच के लिए हर समय उपलब्ध रहने की शर्त लगाई है। आरोपी की जमानत के लिए उसने वकील मनीष दत्त से जो झूठे तथ्य पेश करवाए उसके आधार पर अदालत को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश देने का रास्ता खुल गया है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार कंप्यूटर के कारोबार की आड़ में साहूकारी करके लोगों का धन हड़प जाने के जो मामले अदालतों में लंबित हैं उनमें वह साक्ष्यों को नष्ट करके अब तक बचता रहा है। पुलिस के रिकार्ड में ऐसे सैकड़ों मामले दर्ज हैं जिनमें उसने लोगों को झांसा देकर जमा राशि का चैक वापस ले लिया और फिर पैसा जमा करने वालों के खिलाफ ही कर्ज न लौटाने की शिकायत दर्ज करवा दी। पुलिस के देहाती अपराध रजिस्टर में प्रकाश चंद गुप्ता कुख्यात ठग के रूप में दर्ज है पर कुछ अदालतों को खरीदकर या उन्हें झांसा देकर वह अब तक बचता रहा है। इस बार एक बच्ची ने उसके खिलाफ यौन दुराचार की शिकायत दर्ज कराई है जिसमें गिरफ्तारी से बचने के लिए उसके वकीलों की फौज ने दलील दी कि बच्ची ने आठ सालों बाद शिकायत की है इसलिए उसे जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए। जबकि वह बच्ची अभी भी नाबालिग है।
हमारे न्यायालयीन संवाददाता ने बताया कि अदालत ने आरोपी के वकीलों की ओर से पेश किए गए झूठे तथ्यों को भी स्वीकार कर लिया और उसे सशर्त जमानत दे दी है जबकि पास्को एक्ट में जोड़े गए उपबंधों में इस तरह की जमानत देने का प्रावधान बाधित किया गया है। आपराधिक संशोधन विधेयक 2018 ने धारा 438 में खंड 4 जोड़कर और कानून में अपवाद बनाए गए हैं । उक्त धारा के अनुसार, 16 वर्ष से कम उम्र की महिला के साथ बलात्कार, 12 वर्ष से कम उम्र की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार और 16 वर्ष से कम उम्र की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार के अपराध के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती है। 12 वर्ष से कम उम्र की महिला के विरुद्ध अपराध, भारतीय दंड संहिता, 1860 की क्रमशः धारा 376(3), 376 एबी, 376 डीए और 376 डीबी के तहत दंडनीय है।
आरोपी प्रकाश चंद गुप्ता के विरुद्ध जब स्थानीय अदालत ने गिरफ्तारी के आदेश दिए तो आनन फानन में उसने झूठे दस्तावेज बनाकर पीड़िता के पिता के विरुद्ध ही पैसा हड़प जाने की कहानी गढ़ ली। पुलिस ने तो उसकी ये दलील नहीं सुनी लेकिन हाईकोर्ट में मनीष दत्त की ओर से प्रस्तुत झूठ तब उजागर हो गया जब उन्होंने कहा कि आरोपी ने पीडि़ता की मां को भारी रकम उधार दी है और उसे न लौटाने के लिए पीडि़ता ने उस पर आरोप लगाए हैं। जबकि हकीकत ये है कि पीडि़ता के परिवार से करीबी बढ़ाने के लिए आरोपी गुप्ता ने उनके पिता से लाखों रुपए ब्याज पर उधार लिए थे जिन्हें वो कथित तौर पर गड़प गया है।
बताते हैं कि मनीष दत्त ने आरोपी के बचाव में एक और झूठी दलील दी कि आरोपी के पिता ने एक और व्यक्ति के विरुद्ध पहले व्यभिचार की शिकायत की थी जबकि ऐसा कोई मामला कभी कहीं दर्ज नहीं हुआ है।जबकि आरोपी ने जिन सैकड़ों लोगों की जमा राशि गड़प की है उसके मुकदमे भोपाल की जिला अदालत और दिल्ली, इंदौर, कलकत्ता की अदालतों में चल रहे हैं। आरोपी संभ्रांत व्यक्ति नहीं है और आईपीसी की धारा 438 के तहत जमानत पाने के लाभ का हकदार नहीं है क्योंकि उसके विरुद्ध वर्तमान में 4 करोड़ 27 लाख रुपए की धोखाधड़ी का एक मामला तो विक्रमादित्य सिंह पुत्र श्री राजेन्द्र सिंह की ओर से चलाया जा रहा है। इस मामले में वह जेल जा चुका है और जमानत पर रिहा है। उसके खिलाफ धारा 354 के अंतर्गत एक और महिला के ऊपर अश्लील तरीके से हमला करने का प्रकरण दर्ज हुआ था जिसमें उसने समझौता कर लिया था ।अदालत की भाषा में समझौता होना अपराध होने से बरी होना नहीं होता है।
एक अन्य केस इसकी दुकान में कार्य करने वाली एक लड़की के साथ अवैध संबंध होने पर लड़की के गर्भवती हो जाने पर बलात्कार और अन्य धाराओं में दर्ज कराए गए थे। इस प्रकरण में भी प्रकाश गुप्ता ने अवैध रूप से समझौता करके लड़की के परिजनों को झांसा दिया कि मैं शादी कर लूंगा । कानून की निगाह में बलात्कार का आरोप भी समझौता होने के बावजूद बरी होना नहीं माना जाता। हिंदू विवाह अधिनिमय में दो विवाह की अनुमति भी नहीं है।
पुलिस के सूत्र बताते हैं कि प्रकाश गुप्ता जिन व्यक्तियों से जमा राशि लेकर उनसे ठगी करता रहा है उनकी मूल रकम लौटाने से इंकार करने के लिए वह उनके नकली हस्ताक्षर बना लेता है और अदालत में जाली दस्तावेज पेश करता रहा है। अदालतें उसकी ओर से प्रस्तुत तथ्यों को क्यों स्वीकार कर लेती हैं ये भी जांच का विषय है। फर्जी दस्तावेज बनाकर वह ये सिद्ध करने की कोशिश करता है कि उसे विरोधी पक्षकार से पैसे लेने हैं। देने नहीं हैं। ये इसके अपराध करने का तरीका है।
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