खेतों में किसान जो बीज बोता है धरती उसे कई गुना बढ़ाकर लौटा देती है। बात जब जीवित इंसानों की हो तो ये फलन कल्पनातीत होता है। एक व्यक्ति का सकारात्मक विचार पूरी मानवता को ऊंचाईयों के नए धरातल तक पहुंचा देता है ।इसके विपरीत एक नकारात्मक विचार करोड़ों लोगों के लिए जीवन मृत्यु का सबब भी बन जाता है। ये जानते बूझते भी कई विचारधाराएं अभिमान की पूर्ति के लिए स्वयं को संशोधित करने को तैयार नहीं हैं। भारत में अप्रासंगिक हो चली कांग्रेस भी अपनी गलतियों से सबक लेने को तैयार नहीं है। उसके नेता और कार्यकर्ता सभी अपने इतिहास से चिपटे हुए हैं और पार्टी को रसातल में जाते देख रहे हैं। कई समझदार समाजसेवी तो वक्त पर जाग गए और वैकल्पिक उपकरणों की ओर चले गए पर जड़ सलाहकारों की वजह से आज भी ढेरों कांग्रेसी पुराने ढर्रे पर ही चलते जा रहे हैं। उन्हें ये सब करने की पूरी आजादी है पर समस्या ये है कि वे अपनी नकारात्मकता भरा वोट बैंक बढ़ाने के लिए कई चिरपरिचित उपायों का सहारा ले रहे हैं। देश के जनमत को संवारने का कोई बड़ा प्रकल्प न होने की वजह से वे अपने उद्देश्यों में थोड़े बहुत सफल भी होते दिख रहे हैं। इस नकारात्मक अभियान से देश की तरुणाई का बहुमूल्य वक्त जरूर बर्बाद हो रहा है।
इसे समझने के लिए हमें इतिहास की कुछ घटनाओं का विश्लेषण करना होगा। श्रीलंका में एक सिंहली सिपाही ने परेड का निरीक्षण करते समय राजीव गांधी के सिर पर अपनी बंदूक के बट से प्रहार किया था । सिंहलियों को लगता था कि तमिलनाडू में तमिलों के वोट कबाड़ने के लिए भारत की कांग्रेसी सरकार लिट्टे को हथियार और पैसा देकर उनके देश में अशांति फैला रही है। लिबरेशन टाईगर्स आफ तमिल ईलम ने राजीव गांधी को केवल इसलिए बम से उड़ा दिया था क्योंकि उसका मानना था कि उन्होंने सिंहलियों और तमिलों के बीच जारी संघर्ष में तमिलों की पीठ में छुरा घोंपा है। श्रीमती इंदिरा गांधी को उनके अंगरक्षक ने इसलिए गोली मार दी थी क्योंकि सिखों को लगता था कि श्रीमती गांधी ने अपने पैदा किए भस्मासुर जनरैल सिंह भिंडरावाला की आड़ में सिखों की आस्थाओं के केन्द्र स्वर्ण मंदिर को नेस्तनाबूत किया था। आपरेशन ब्लूस्टार के घावों ने सिखों की आत्मा को छलनी कर दिया था। जब श्रीमती गांधी की हत्या उनके ही अंगरक्षक सिख ने कर दी तो देश भर में हजारों सिखों को घरों से निकालकर जिंदा जला दिया गया । इस तरह की प्रतिक्रियावादी घटनाओं से देश का इतिहास भरा पड़ा है। महात्मा गांधी को एक सिरफिरे नाथूराम गोडसे ने केवल इसलिए गोलियां मार दीं थीं क्योंकि उसे लगता था कि महात्मा गांधी भारत विभाजन और लाखों हिंदुओं के कत्लेआम के दोषी हैं।
ऐसी ढेरों घटनाएं कांग्रेस की कार्यशैली के स्याह पक्ष को दस्तावेजी प्रमाण के साथ प्रस्तुत करती हैं। इसके बावजूद आज की सोनिया राहुल कांग्रेस 137 साल पहले बनी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्थापित उद्देश्यों का वारिस होने का ढोंग छोड़ने तैयार नहीं है। तब सर ए ओ ह्यूम ने तत्कालीन ब्रिटिश शासकों को जन आक्रोश से बचाने के लिए 72 भारतीयों का एक जत्था तैयार किया था जिसकी आड़ में वे अपनी काली करतूतों पर पर्दा डालने का काम करते थे। समय बीतते ये जत्था इतना सफल हुआ कि दि्वतीय विश्वयुद्ध के बाद जब अंग्रेज अपने नियंत्रण वाले देशों को आजादी देने लगे तो उन्हें अपनी बनाई कांग्रेस ही सबसे अनुकूल नजर आई। आज की कांग्रेस अंग्रेजों के प्रभाव से इसलिए मुक्त नहीं होना चाहती क्योंकि केरल के समुद्री तटों से पुर्तगाल ,जिब्राल्टर, स्पेन और फिर इंग्लैंड होते हुए पौंड खरीदने के बड़े मार्ग पर वो अपना नियंत्रण नहीं खोना चाहती। जाहिर है इसीलिए इन दिनों चल रही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कश्मीर से कन्याकुमारी नहीं बल्कि केरल से दिल्ली की ओर चल रही है।
कांग्रेस के इस सत्ता अनुष्ठान की अघोषित प्रायोजक पीएफआई यानि पापुलर फ्रंट आफ इंडिया को बताया जा रहा है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानि एनआईए के छापों और प्रवर्तन निदेशालय की जांच में पाया गया है कि पीएफआई कई आतंकवादी गतिविधियों से भी जुड़ा है। प्रवर्तन निदेशालय यानि ईडी को अब तक की जांच में पीएफआई के खातों से लगभग साठ करोड़ रुपयों के गैर कानूनी लेनदेन के सबूत मिले हैं। खाड़ी देशों में काम करने वाले मजदूरों के खातों का इस्तेमाल करके भारत जो रकम बुलाई जाती थी उसका उपयोग आतंकवादी गतिविधियों और राजनीति में खुद को मजबूत बनाने के लिए किया जाता था। पीएफआई के विभिन्न कैडर इस राशि का इस्तेमाल करके युवाओं को बम बनाने का प्रशिक्षण देते थे और युवाओं को बरगलाकर उन्हें आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों में भर्ती करवाते थे।अब इस तरह की अलगाववादी कार्यशैली को कथित संरक्षण देने वाली राहुल गांधी कांग्रेस यदि देश को जोड़ने का नारा दे रही है तो आसानी से समझा जा सकता है कि वह देश के कैसे लोगों को और क्यों जोड़ने का ख्वाब देख रही है।
राष्ट्र संत श्री श्री रविशंकर जी ने श्रीलंका में भेदभाव के शिकार तमिलों और सत्ता पर इठलाते सिंहलियों के बीच सद्भाव कायम करने के लिए लगभग दस सालों तक जोखिम भरा अभियान चलाया था। उनके योग प्रशिक्षण कार्यक्रम द आर्ट आफ लिविंग को सिंहली सरकार और तमिलों दोनों का समर्थन मिलता था। श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे ने सद्भाव कायम करने की पहल करते हुए अपने हैलीकाप्टर से श्री श्री रविशंकर जी को लिट्टे प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरन से चर्चा करने भेजा था। टूटा टाईगर पुस्तक के लेखक स्वामी विरुपाक्ष लिखते हैं कि हमारे प्रयास निष्पक्ष और पवित्र थे हम शांति की इबारत लिखने जा रहे थे। इसके विपरीत अशांति चाहने वालों ने लिट्टे के खुफिया विभाग को षड़यंत्र पूर्वक संदेश पहुंचाया कि जब प्रभाकरन गुरुदेव से मिलेगा, तब भारत उसकी लोकेशन मालूम कर लेगा और उस पर बमबारी करके श्रींलंका की मदद करेगा।इस तरह शांति वार्ता में खलल डालने का ये प्रयास भारत की तत्कालीन कांग्रेस सरकार के उन्हीं लोगों ने किया था जो नहीं चाहते थे कि श्रीलंका में कभी शांति स्थापित हो। कांग्रेस को लगता था कि समुद्री सीमाओं और अपेक्षाकृत मुक्त सोच की वजह से सोने की लंका बन गई तो भारत के विकास की तस्वीर धुंधली पड़ सकती है।
कांग्रेस की तत्कालीन सरकारें सिंहलियों और तमिलों को आपसी झगड़े में उलझाने के लिए लिट्टे को गुपचुप हथियार और धन मुहैया कराती थीं वहीं वे सिंहलियों को भी कारोबार में मदद करती थीं। जब 1987 में राजीव गांधी ने भारतीय शांति सेना को श्रीलंका भेजा तो घोषित रूप से उसे दोनों समुदायों के बीच शांति स्थापित करनी थी लेकिन निर्देशों की घुटन के बीच भारत की सेना सिंहलियों की पैरवीकोर बन गई और गौरिल्ला युद्ध लड़ रहे तमिलों का संहार करने लगी। इससे नाराज लिट्टे ने भारतीय शांति सेना पर हमले शुरु कर दिए। नतीजतन भारत की सेना को लगभग बारह सौ जवानों की शहादत झेलनी पड़ी। 1990 में वीपीसिंह की सरकार ने शांति सेना के मिशन को असफल करार दिया और सेना को वापस बुला लिया। श्रीलंका की सरकार, लिट्टे और भारत के बीच हुई संधि की वजह से लिट्टे को अपने समर्पित सैनिकों की भारी क्षति उठानी पड़ी थी। तब लिट्टे की ओर से अलग राष्ट्र की मांग की जा रही थी और उसे वैश्विक समर्थन भी मिल रहा था। लिट्टे को लगता था कि यदि राजीव गांधी दुबारा सत्ता में लौट आएंगे तो वे उसके पृथक राष्ट्र के अभियान में बाधक बन सकते हैं। यही वजह थी कि लिट्टे ने 1991 में श्रीपेरंबुदूर में राजीव गांधी को आत्मघाती बम हमले से उडा दिया।
राजीव गांधी की हत्या के बाद भले ही देश में कांग्रेस की सरकार आ गई थी लेकिन हत्या का षड़यंत्र उजागर हो जाने के बावजूद पार्टी ने दुबारा भारतीय सेना का इस्तेमाल नहीं किया। इधर श्रीमती सोनिया गांधी ने भी घोषित रूप से भले ही राजीव गांधी के हमलावरों को माफ करने की बात कही पर उनके चीनी सलाहकारों ने श्रीलंका में दखल शुरु कर दिया। चीनी हथियारों, प्रशिक्षण और गोलाबारूद के सहारे सिंहली सेना ने वर्ष 2009 में लिट्टे प्रमुख वी प्रभाकरन को घात लगाकर उड़ा दिया। तबसे श्रीलंका में चीन का जो सैन्य हस्तक्षेप शुरु हुआ वह आज भारत के लिए सामरिक दृष्टि से चुनौती बन गया है।
समुदायों ,जातियों में फूट डालकर उन्हें लड़ाने और राज करने की नीति कांग्रेस ने अंग्रेजों से सीखी है। इस बार वह कथित तौर पर पीएफआई के माध्यम से भारत में तख्ता पलट की रणनीति पर काम कर रही थी। ये तो गनीमत है कि चौकन्ने भारतीय सुरक्षा तंत्र ने समय से पहले आतंक की आहट को महसूस कर लिया और भांडा फूट गया। भारत में मुसलमानों और हिंदुओं में फूट डालकर अंग्रेजों ने जो खाई खोदी थी उसे कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीतियां अब तक सींचती रहीं हैं। हिंदू एकता को खंडित करने के लिए जाति के नाम पर आरक्षण की विषबेल भी भारत में अंग्रेजों के अघोषित हस्तक्षेप से पुष्पित और पल्लवित हुई है। बैलेंस शीट पर 2.66 लाख करोड़(ट्रिलियन डॉलर) के सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) वाला भारत आज 13.6 लाख करोड़ के सकल घरेलू उत्पाद वाले चीन से बहुत पीछे है।जबकि चीन की विकास यात्रा भारत से दो साल बाद शुरु हुई थी। कांग्रेस की पीव्ही नरसिम्हाराव सरकार ने जो फैसले लिए उन्हें कांग्रेसी आज तक स्वीकार नहीं कर पाए हैं। जाति और धर्म के नाम पर लड़ाने की चालें भारत को लगातार नाकाम बनाती रहीं हैं। जाहिर है इस बार देश जागरूक है और सुरक्षा एजेंसियों की कार्रवाई को देशव्यापी जनसमर्थन मिल रहा है। फूट डालने के इन प्रयासों पर प्रहार समय की मांग भी है। एकजुट होते आतंक का अंत करने के लिए देश पहले से ही हाथों में हाथ डालकर साथ खड़ा है।
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