कोरोना संकट के बाद चल रहे लंबे लॉक डाऊन ने सरकारों की धूल निकाल दी है। खुद को प्रदेशों और देश का भाग्य विधाता कहलाने वाली सरकारों की चूलें हिल गईं हैं। अधिकतर राज्यों की सरकारें अब लोगों को घरों पर बैठकर नहीं खिला पा रहीं हैं। उनके पास अनाज के तो भंडार हैं लेकिन उन्हें सप्लाई करने वाला ढांचा नहीं है। वे किसानों से खरीदा गया अनाज फोकट में नहीं बांट पा रहीं हैं। इसकी वजह से निम्न मध्यमवर्गीय लोगों में भगदड़ मच गई है। देश में असंतुलित विकास के ढांचे की वजह से महाराष्ट्र को निर्माण का हब तो बना दिया गया लेकिन उसमें आजादी के 73 सालों बाद भी जिम्मेदारी का भाव नहीं आया है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों ने यूपी, बिहार,झारखंड, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में उद्योगों को अनुमति देने के बजाए महाराष्ट्र से समुद्र तटीय इलाकों में उद्योगों की भरमार कर दी थी। यही वजह है कि देश भर के कई राज्यों से करोड़ों लोग इन क्षेत्रों में कामकाज की तलाश में पहुंच गए। मुंबई और महाराष्ट्र में यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश,पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से करीबन तीस लाख मजदूर रह रहे हैं। जब तक उद्योगों को सस्ते मजदूरों की जरूरत थी महाराष्ट्र ने उन्हें गले लगाया लेकिन अब जबकि लॉक डाऊन चल रहा है तब महाराष्ट्र की शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी सरकार मजदूरों से पल्ला झाड़ रही है। ऐसे ही औरंगाबाद से लौट रहे 16 मजदूरों की रेल की पटरियों पर मालगाड़ी से कुचलकर मौत हो गई है। सड़क मार्ग बंद होने की वजह से वे रेल की पटरियों के सहारे अगले स्टेशन पर किसी रेलगाड़ी की उम्मीद में जा रहे थे। थकान की वजह से वे पटरियों पर ही बैठ गए और थकान की वजह से उनकी आंख लग गई। इस बीच मालगाडी आ गई और वे मारे गए। इस दुर्घटना के बाद उद्धव सरकार की अमानवीय सोच की पूरे देश में निंदा हो रही है। अभी दो दिन पहले ही शिवसेना के मुखपत्र सामना ने संपादकीय में लिखा था कि राज्यों की सरकारें अपने मजदूरों को वापस नहीं आने दे रहीं हैं वे कह रहीं हैं कि सरकारें मजदूरों का कोरोना टेस्ट कराएं और फिर अपने खर्चे से उन्हें घर भेजें। वोट बैंक का कचरा अब किसी को अपने आंगन में नहीं चाहिए।जिन मजदूरों ने महाराष्ट्र के विकास में उसकी समृद्धि के लिए अपना जीवन नारकीय परिस्थितियों में होम कर दिया उन्हें शिवसेना की सोच आज वोट बैंक का कचरा बता रही है। ये शर्मनाक है। जब सरकारें उद्योगों को मंजूरी देती हैं तब वे उनके लिए आवश्यक मजदूरों की व्यवस्था करने की छूट भी देती हैं। उन मजदूरों के निवास भोजन की व्यवस्था करने की जवाबदारी भी लेती हैं। जब तक विकास की लोरियां सुनीं सुनाई जा रहीं थीं तब यही मजदूर महाराष्ट्र को अच्छे लग रहे थे और जब संकटकाल में उन्हें पालने की जवाबदारी आई है तो सरकार हाथ ऊंचे कर रही है। सरकार को ये होश ही नहीं है कि वह अपने मजदूरों के भोजन निवास की व्यवस्था कर पाए। वे अभागे मजदूर रेल की पटरियों पर जा रहे थे या उन्हें किसी ने मारकर पटरी पर फेंक दिया इसकी जांच होनी अभी बाकी है। पर इतना तो साफ है कि महाराष्ट्र सरकार अपना दायित्व निभाने में असफल रही है। अपने राज्य में निवास कर रहे मजदूरों का पालन करना उसकी जवाबदारी है। कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए उन्हें मौजूदा स्थान पर ही रोकना जरूरी है। 135 करो़ड़ की आबादी वाले देश में केवल 56 हजार संक्रमितों को देखें तो केन्द्र सरकार की रणनीति कारगर रही है। लेकिन अब राज्य सरकारें यदि अपनी जवाबादारी नहीं निभाएंगी तो ये संक्रमण देश के अनेक राज्यों में गांव गांव तक फैल सकता है। एम्स के विशेषज्ञों ने भी चिंता व्यक्त की है कि जून जुलाई का महीना संक्रमण को फैलाने वाला साबित हो सकता है। जाहिर है कि सरकारों को दीर्घ रणनीति बनानी होगी और मजदूरों को सामाजिक दूरी बनाकर रोजगार और उत्पादन की कड़ी शुरु करनी होगी ताकि देश में भगदड़ न मचे और कोरोना से होने वाली संभावित मौतों को टाला जा सके।
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