कोरोना वायरस के हमले ने पूरी दुनिया को भयाक्रांत कर दिया है।एक अदृश्य शत्रु के हमले से चीन से लेकर अमेरिका, इटली, फ्रांस, ब्रिटेन,स्पेन जैसे मुल्क तबाही के दौर में पहुंच गए हैं। कोरोना ने भारत में भी अपने पैर पसार लिए हैं। संकट के इस दौर में कई समाजों,वर्गों और विचारों के लोगों का चरित्र भी उजागर होने लगा है। कहा भी गया है धीरज,धर्म,मित्र अरु नारी आपतकाल परखिए चारी।वायरस का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद पूरा देश लॉक डाऊन से गुजर रहा है। ऐसा पहली बार हुआ है कि हवाई और रेल सेवाएं भी पूरी तरह बंद कर दी गईं हैं। केवल परिवहन के लिए इन संसाधनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। देश भर में खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति जारी रहे इसके लिए सरकार युद्ध स्तर पर जुटी हुई है। पूरा देश प्रधानमंत्री के आव्हान पर कोरोना महामारी को परास्त करने के उपाय ढूंढ रहा है और अपने स्तर पर अमल भी कर रहा है।इन हालात में राज्य सरकारें और उनके प्रशासनिक अमले पर काम का दबाव बढ़ता जा रहा है। किसी भी युद्ध में जिस तरह फौजों के सामने जीने और मरने की जद्दोजहद होती है उसी प्रकार इस समय सरकारी अमला भी चुनौतियों से गुजर रहा है। कई बहादुर अफसर अपनी हिकमत अमली से परिस्थितियों को नियंत्रित कर रहे हैं। कोरोना वायरस की कोई वैक्सीन अभी तक ईजाद नहीं हो पाई है। वैज्ञानिक जुटे हैं और यदि किसी देश का कोई दल वैक्सीन ईजाद भी कर लेता है तो वैक्सीन को बाजार में उतारने में लंबा समय लगने का अनुमान है। यही वजह है कि पूरी दुनिया में खौफ का माहौल है, लोगों को लगता है कि इस अदृश्य शत्रु के सामने उनकी बहादुरी टिक नहीं पाएगी। सरकार ने आम लोगों से अपील की है कि वे अपने घरों में रहें और संक्रमण फैलाने वाले वाहक न बनें। घरों में सफाई रखी जाए और वायरस के वसा से बने खोल को नष्ट करने के लिए डिटर्जेंट, साबुन, अल्कोहल युक्त हैंडवाश, ब्लीचिंग पाऊडर जैसे क्लोरीनीकरण करने वाले रसायनों, पोटेशियम परमेंगनेट जैसे आक्सीकरण एजेंटों का इस्तेमाल करके सफाई रखें। सरकारी दफ्तरों में भी इन रसायनों का प्रयोग करके सफाई रखी जा रही है। इसके बावजूद कई अफसर कोरोना की चपेट में आ गए हैं। उन्हें कोरोंटाईन करके घरों में और अस्पतालों में रखा जा रहा है उनका उपचार किया जा रहा है। शासन ने उन अफसरों की सैकेन्ड लाईन भी तैयार कर दी है। प्रथम पंक्ति के बीमार होने पर दूसरी पंक्ति जवाबदारी संभालेगी। ये व्यवस्था प्राचीन काल से हर युद्ध की परिस्थिति में अपनाई जाती है। इसके बावजूद पहली बार देखा जा रहा है कि कई अफसरों ने खुद को ड्यूटी से बचाने के लिए खुद को कोरोन्टाईन कर लिया है। वे भयभीत हैं और अपने ही घरों में रहकर जवाबदारी संभालने की बात कह रहे हैं। देश में कई स्थानों से अफसरों के आत्महत्या करने की खबरें भी आ रहीं हैं।अपनी चिट्ठियों में उन्होंने लिखा है कि काम का दबाव अहसनीय है।बेशक ये दौर बड़ा वेदनाभरा है। कोई भरोसा नहीं कि कोई व्यक्ति कब संक्रमण की चपेट में आ जाए और उसकी मौत की वजह बन जाए। संक्रमित व्यक्तियों के ठीक होने की दर भी बहुत अधिक है इसके बावजूद वैज्ञानिक इलाज न मालूम होने के कारण गारंटी नहीं है कि हर संक्रमित व्यक्ति बच ही जाएगा। अब इन हालात में अफसरों का जिम्मेदारियों से भागना कोई अचंभा नहीं है। इसके बावजूद बहाने बनाकर फर्जी सर्टिफिकेट लेकर खुद कोरेंटाईन कर लेना किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं हो सकता। हमारे देश की सरकारें अपने संसाधनों से जो आय अर्जित करती हैं उनका तीन चौथाई से भी अधिक हिस्सा सरकारी अमले को पालने पर खर्च किया जाता है। विकास योजनाओं को पूरा करने के लिए सरकारें कर्ज लेती हैं और जिसका ब्याज जनता को चुकाना पड़ता है। इसलिए जनता के खजाने से वेतन लेने वाले अफसरों की जवाबदारी और भी अधिक बढ़ जाती है। वे घरों में घुसकर इस युद्ध को नहीं जीत सकते। बेशक उन्हें शहादत देनी पड़ सकती है पर इसकी चिंता करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है। आम जनता का पेट काटकर अब तक उन्हें पाला जाता रहा है। न उत्पादकता बढ़ाने का दबाव और न ही धंधे में घाटे का खौफ,दिन भर की अफसरी और शाम को क्लब हाऊसों में मजा मौज इन अफसरों की जिंदगानी रही है। अब जबकि 21 दिनों के लॉक डाऊन में आम जनता मूलभूत जरूरतों के लिए वंचित है तब अफसरों का तंत्र यदि मैदान से रफूचक्कर हो जाएगा तो फिर जन समस्याओं का निवारण कैसे हो पाएगा।प्रदेश के जनसंपर्क सचिव पी.नरहरि ने इस मुद्दे पर चल रहीं खबरों को देखते हुए बाकायदा अपील की है कि अफसरों की बहानेबाजी की खबरें भ्रामक हैं। सभी अफसर अपना काम मुस्तैदी से कर रहे हैं। यदि वे बीमार हो जाते हैं तो इसे उनकी गैरजिम्मेदारी न बताया जाए। उनकी बात सही है अफसरों पर बेवजह लांछन लगाना उचित नहीं है। अब तक केवल सरकारी तंत्र ही तो है जो कानून और व्यवस्था संभाले हुए है। संकट के इस दौर में समस्या को समझना जरूरी है। तभी समाधान खोजा जा सकता है।अब तक सरकारी तंत्र में चापलूसों को जो महत्व दिया जाता रहा है उनकी वजह से ही सरकारी तंत्र पर अंगुलियां उठ रहीं हैं। ये समय कसावट का है। चापलूसों की भीड़ भले ही घरों में छुप जाए पर योद्धा अफसर तो मैदान में डटे ही हैं। इसलिए सिरे से सरकारी व्यवस्था को खारिज करना नाइंसाफी होगी,इसके बावजूद अफसरशाही में घुसी काली भेड़ों की पहचान तो उजागर होनी ही चाहिए।
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