खजाने के लुटेरों पर लगे अंकुश

बजट सत्र का शुभारंभ करते हुए महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक बार फिर भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का संकल्प दुहराया है। कल पेश होने जा रहे आम बजट से पहले आज वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया। इसमें दर्शाया गया है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार आज 450 बिलियन डॉलर का ऐतिहासिक स्तर छू रहा है। देश में आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी बताते हुए शेयर बाजार ने ना नुकुर शुरु कर दी है। बजट को लेकर कार्पोरेट सेक्टर सरकार पर दबाव डालने का भरपूर प्रयास कर रहा है।इसके बावजूद नरेन्द्र मोदी की सरकार भारत की इकानामी को बढ़ाने के दावे पर अटल है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस लगातार देश में ये संदेश देने का प्रयास कर रहा है कि मानों देश डूब गया हो और उसकी अर्थव्यवस्था को मोदी सरकार ने मटियामेट कर दिया है। हकीकत इससे ठीक उलट है। जबसे देश में नोटबंदी हुई है तबसे कांग्रेस ये जताने की कोशिश करती रही है कि मोदी सरकार ने बगैर सोचे समझे एक गलत फैसला लिया था जिसकी वजह से देश के उद्योग धंधे और कारोबार तबाह हो गए थे। नोटबंदी से कई सच उजागर हुए हैं। आयकर विभाग ने देश के उन कारोबारियों को नोटिस दिए हैं जिन्होंने नोटबंदी के दौरान बड़ी रकम के पुराने नोट जमा किए थे। उनसे पूछा जा रहा है कि वे बैंकों में जमा कराए गए नोटों के स्रोत उजागर करें। रिजर्व बैंक भी ये जानने को बेताब है कि आखिर जितनी तादाद में उसने नोट छापे उससे भी ज्यादा संख्या में नोट बैंकों में जमा कैसे करा दिए गए। डुप्लीकेट नोटों की खेप कहां कहां से आई। वे कौन लोग थे जिन्होंने जाली नोटों की खेप जमा कर रखी थी। सरकार के इस कदम से बाजार में खलबली मच गई है। काला धन बैंको में जमा करने का अपराध कर चुके लोगों के लिए अब सामने अंधी गली नजर आ रही है। वे अपनी गलती अब सुधार नहीं सकते हैं। यही वजह है कि वे करवट लेते बाजार के कारण पिट रही कंपनियों की आड़ लेकर अर्थव्यवस्था की तबाही का रोना रो रहे हैं। रोने वाले राज्यों में वे सबसे आगे हैं जिन राज्यों में कांग्रेस सत्तासीन है। छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने तो वे तमाम योजनाएं बंद कर डाली हैं जिन्हें पिछली रमन सरकार चलाती रही थी। भाजपा पर विज्ञापनों की खैरात बांटने वाली कमलनाथ सरकार भी कटौतियों पर उतारू है। कमलनाथ ने तो भुगतानों पर रोक लगाने के बजाए बजट की ही कैपिंग कर दी है। निर्धारित बजट की मात्र साठ फीसदी राशि ही विभागों को दी जा रही है। राशि की कमी की वजह से भुगतान लंबित हैं और लोग इसी प्रत्याशा में धीरज बांधे हुए हैं कि जल्दी ही उन्हें भुगतान प्राप्त होगा। पूर्व वित्तमंत्री जयंत मलैया के उस बयान को कमलनाथ ने अपना सूत्र वाक्य बना रखा है कि प्रदेश का खजाना खाली है। जबकि हकीकत ये है कि दिग्विजय सिंह सरकार की नालायकियों के बाद से प्रदेश का वित्तीय प्रबंधन बहुत कारगर हो चुका है। उमा भारती के वित्तमंत्री रहे राघवजी भाई ने जिस तरह प्रदेश की आय बढ़ाने का प्रयास किया वह उल्लेखनीय रहा है। बाद के वर्षो में शिवराज सिंह चौहान की मैं हूं न वाली रट ने अनाप शनाप खर्चे चालू कर दिए थे। ठाकुर लाबी की शह पर सिंधिया महाराज को गाली देते शिवराज सिंह चौहान दिग्विजय सिंह की शतरंज के जाल में बुरी तरह उलझ गए थे। उन्होंने दिग्गी की उन सभी नीतियों का चुग्गा शान से चुगा जिनकी वजह से दिग्गी ने प्रदेश का बंटाढार किया था।मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों में पलीता लगाने में जुटे शिवराज को इसीलिए केन्द्र ने सलाह देना बंद कर दिया और गलत टिकिट वितरण ने भाजपा की लुटिया डुबो दी। अब कमलनाथ तो इससे भी आगे बढ़कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। उनकी निगाह में प्रदेश के सारे लोग अपराधी हैं। सारे लोग लुटेरे हैं। इतनी वैमनस्यता से भरी सरकार इसके पहले कभी नहीं देखी गई। जिन रेत के ठेकों में वे प्रदेश को बारहसौ करोड़ रुपए आय का लालीपाप थमा रहे हैं वह सिर्फ दिवा स्वप्न साबित होने जा रहा है। सीहोर, होशंगाबाद और भिंड में रेत खनन के लिए हैदराबाद की जिस पावर मेक प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को ठेका दिया गया है वह बैंकों का कर्ज गड़पने के आरोपों से घिरी है।एमपी, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में इस कंपनी के मालिकों ने हजारों लोगों को चूना लगाकर बैंकों के करोड़ों रुपए गड़प किए हैं। इसी तरह अन्य कई कंपनियां रेत के ठेकों की आ़ड़ में अपने घोटाले छुपा रहीं हैं। बेशक कमलनाथ सरकार कहे कि उनका वास्ता तो केवल रेत के ठेकों से आय बढ़ाने तक ही सीमित है लेकिन कंपनियों के आड़ में जिन्होंने देश का धन लूटा है उन्हें संरक्षण देना देश से गद्दारी करना है। कानून व्यवस्था भले ही राज्य का विषय हो लेकिन वित्तीय अनुशासन केन्द्र का सबसे प्रमुख अस्त्र है। भारत सरकार को उन कंपनियों के विरुद्ध भी कार्रवाई करनी चाहिए जिन्हें राजनैतिक वैमनस्य के जरिए कांग्रेस की राज्य सरकारें संरक्षण दे रहीं हैं। इन पर अंकुश लगाए बगैर पांच ट्रिलियन डालर की इकानामी का लक्ष्य नहीं पाया जा सकेगा।

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