रबर की गुड़िया और खिलौनों से खेलने वाले बच्चे पूरी जिंदगी उस साए से मुक्त नहीं हो पाते हैं। चाहे वे कितनी ही बड़ी जवाबदारी क्यों न संभाल लें लेकिन उन्हें लगता है कि वे गुड़िया से ही खेल रहे हैं और वह कोई जवाब नहीं देगी। उसके जवाब भी उन्हें ही देना होंगे। ऐसा ही कुछ राजगढ़ की कलेक्टर निधि निवेदिता और डिप्टी कलेक्टर प्रिया वर्मा के साथ घट रहा है।जिला दंडाधिकारी का पद पाने के बाद भी उन्हें लगता है कि वे बच्चों का खेल खेल रहीं हैं। गलती करने पर उन्हें लाड़ से डपटने वालों को छोड़कर किसी का सामना नहीं करना पड़ेगा। वे भूल रहीं हैं कि वे जनता की अनुबंधित नौकर हैं। उन्हें जनता ने अपनी व्यवस्थाओं की जवाबदारी निभाने के लिए नौकरी पर रखा हुआ है। अफसरी का ज्यादा अनुभव न होने की वजह से उन्हे लगता है कि उनकी जवाबदारी जनता के प्रति नहीं बल्कि शासकों के प्रति है। अंग्रेजों की प्रेरणा से बनी अफसरशाही शुरु से ही शासकों के प्रति झुकाव रखती रही है।इस समस्या के निदान के लिए ही स्वर्गीय राजीव गांधी ने पंचायती राज की अवधारणा को पूरे देश में लागू किया था। जिस दिग्विजय सिंह ने पंचायती राज व्यवस्था को प्रदेश में सख्ती से लागू किया वही आज बिगड़े दिमाग वाली अफसरों का बचाव कर रहे हैं। उन्हें तो अपनी सरकार केवल इसलिए गंवानी पड़ी थी क्योंकि पंचायती राज व्यवस्था अराजकता की भेंट चढ़ गई थी और अफसरशाही ने उनकी सरकार का वध कर दिया था। इसी अफसरशाही की असफलताएं गिनाकर कांग्रेस की मौजूदा सरकार सत्ता में आई है। इसके बावजूद सत्ता में आने के बाद वह अफसरों की गुलामी करने लगी है। राजगढ़ के कुछ जागरूक नागरिक जब नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन कर रहे थे तब उन्हें जरा भी भान नहीं था कि जिस सरकारी अमले पर कानून लागू करवाने की जिम्मेदारी है वे ही उनके ऊपर हमला कर देंगे।उस समय वे शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जता रहे थे। उनके हाथों में तिरंगा झंड़ा था। कमलनाथ सरकार ने चूंकि राजनीतिक एजेंडे के तहत विरोध प्रदर्शन को अनुमति न देने का अघोषित आदेश दिया है इसलिए खुद को सरकार का सिपाहसालार बताने के लिए कुछ अफसरों में होड़ सी लग गई है। जाहिर है कि राजगढ़ की कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर को भी राज्य सरकार की चिलम भरने में जुटना ही था। जिस बेखौफ अंदाज में कलेक्टर ने नारे लगाते कार्यकर्ता को झांपड़ रसीद किया और जिस गुंडई भरे लहजे में डिप्टी कलेक्टर ने तिरंगा धारियों को घसीटा उससे तो ऐसा ही लग रहा था मानों अंग्रेजों के टुकड़खोर आजादी के परवानों पर जुल्म ढा रहे हों। इस बदतमीजी का जवाब खून खराबे से भरा भी हो सकता था। भीड़ चूंकि हिंसक नहीं थी और न ही हिंसा का उसका कोई इरादा था इसलिए किसी शैतान प्रदर्शनकारी ने डिप्टी कलेक्टर की चोटी खींचकर उसे याद दिलाया कि वह सीमा लांघ रही है। पुलिस के बीचबचाव से भले ही दोनों अफसर बच गईं हों लेकिन जनता के बीच इसकी प्रतिक्रिया अच्छी नहीं है। इस घटना से नाराज भाजपा के कार्यकर्ता जब प्रदर्शन कर रहे थे तो पूर्व मंत्री बद्री यादव ने भावनाओं के अतिरेक में कुछ ज्यादा ही काल्पनिक कहानी सुना डाली। उन्होंने कहा कि यहां की कलेक्टर कांग्रेसियों को तो गोदी में बिठाकर दूध पिलाती है लेकिन भाजपा के कार्यकर्ताओं को थप्पड़ मारती है। हंसी ठिठोली के अंदाज में कही गई इस बात ने तूल पकड़ लिया और डिप्टी कलेक्टर की शिकायत पर बद्रीयादव की गिरफ्तारी और जमानत की प्रक्रिया भी की गई। दूध दुहना और लोगों को पिलाना बद्रीयादव का खानदानी काम रहा है। इसी वजह से उन्होंने कलेक्टर के कांग्रेस प्रेम को दर्शाने के लिए इस जुमले का इस्तेमाल कर डाला। जब प्रतिक्रियाएं आईं तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने यह कहते हुए माफी भी मांग ली कि उनकी बात का गलत अर्थ न निकाला जाए। हालांकि जब बात बिगड़ती है तो उसकी कई तस्वीरें सामने आती हैं।एक एएसआई और पटवारी ने कलेक्टर के दुर्व्यवहार को लेकर ही शिकायत कर डाली। जिसमें कलेक्टर ने उन्हें भी थप्पड़ मारा था। अब कलेक्टर साहिबा की मानसिक दशा का दूसरा ही पक्ष सामने आने लगा है। जाहिर है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के आला अधिकारियों और उन्हें मध्यप्रदेश कैडर में भेजने वाले केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय को ऐसी मानसिकता वाली अफसर की कार्यशैली पर गंभीरता से विचार करना चाहिए जो जनता के प्रति असहिष्णु हो। फौरी प्रतिक्रिया के तौर पर निधि निवेदिता और प्रिया वर्मा को निलंबित किया जाना चाहिए। राज्य सरकार से फिलहाल ये उम्मीद इसलिए नहीं की जाती क्योंकि भाजपा की ओर से इस घटना को लेकर अफसरों का विरोध किया जा रहा है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि अफसरों को नसीहत देने वाले मुख्यमंत्री कमलनाथ महिला अफसरों के मामले में थोड़े ज्यादा सहिष्णु हैं। शायद यही वजह है कि उनकी कांग्रेस भाजपा के प्रदर्शन को महिलाओं का अपमान बताने में जुटी है। वीडियो क्लीपिंग्स में जो हकीकत सामने आई है उसमें साफ दिख रहा है कि किसी भी प्रदर्शन कारी ने महिला अफसरों से बदतमीजी नहीं की थी। इसके बावजूद महिला अफसरों ने सीमाएं लांघकर कार्यकर्ताओं पर हमला किया। प्रिया वर्मा तो अपनी अफसर से जुगलबंदी करने की रौ में इतना बह गईं कि उन्होंने भीड़ में घुसकर तिरंगा लिए व्यक्तियों को चुन चुनकर घसीटना शुरु कर दिया। गैर जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई करने की जवाबदारी निश्चित रूप से राज्य सरकार की है। उसे इन अफसरों को तत्काल हटाकर निलंबित करना चाहिए। उनके व्यवहार की जांच कराई जानी चाहिए और केन्द्र को सूचित किया जाना चाहिए।ये भी सुनिश्चित किया जाए कि जो अफसर भीड़ को नियंत्रित करने के बजाए उसे भड़काने की मानसिकता रखते हों उन्हें भविष्य में कभी मैदानी पोस्टिंग न दी जाए। कमलनाथ सरकार से फिलहाल ऐसे किसी सख्त कदम की उम्मीद नहीं की जा सकती। जो सरकार नागरिकता संशोधन कानून जैसे संसद से पारित व्यवस्था को लेकर अनर्गल बयानबाजी कर रही हो उससे जिम्मेदाराना व्यवहार की अपेक्षा भी क्यों की जाए। केन्द्र सरकार ने आईएएस अफसरों की व्यवस्था सुधारने की दिशा में कई प्रयास किए हैं। निश्चित रूप से ऐसे बिगड़े अफसरों के भविष्य का फैसला उसे करना चाहिए। सबसे बड़ी जवाबदारी तो भाजपा जैसे राजनीतिक दलों और आम नागरिकों की है।जनता के प्रति सड़ांध भरी मानसिकता लेकर नौकरी में आ गए इन अफसरों की शैली को अदालत में चुनौती दी जानी चाहिए। उनकी योग्यता की छानबीन कराई जाए और उन्हें पदमुक्त किया जाए ताकि सरकार और जनता के बीच संवादहीनता की स्थितियां न बनें। जिन अफसरों को जनता और सरकार के बीच संवाद की कड़ी बनना चाहिए यदि वे रोड़ा बन रहे हों तो बेहतर है इस रोड़े को जल्दी से जल्दी रास्ते से हटाया जाए। क्योंकि कलेक्टरी कोई रबर के गुड्डे गुड़ियों का खेल नहीं है। कमलनाथ सरकार इस पर गौर करे तो अच्छा ही होगा।
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