नागरिकता कानून विरोधियों के साथ खड़ी होगी कमलनाथ सरकार

भोपाल,21 दिसंबर(प्रेस सूचना केन्द्र)। नागरिकता अधिनियम 1955 में हुए संशोधन के बाद लागू नए नागरिकता कानून का विरोध करने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने पूरे देश में कानून का विरोध करने का फैसला लिया है। मध्यप्रदेश में भी कमलनाथ सरकार 25 तारीख को इस विरोध प्रदर्शन को अपना समर्थन देगी। संवैधानिक तौर पर चुनी हुई राज्य सरकार ने केन्द्रीय कानून का विरोध करने के लिए जो रणनीति अपनाई है उससे नए नागरिकता कानून को लेकर उठ रहीं भ्रांतियों को दूर करने में भी मदद मिलेगी।

कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि वह कानून को लेकर जनमत संग्रह (Referendum) भी करेंगे. दिल्ली में केंद्र सरकार के नए कानून के खिलाफ (Protest against CAA) पार्टी के हल्लाबोल के बाद ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने कांग्रेस-शासित सभी राज्यों में प्रभावी तरीके से प्रदर्शन करने का निर्देश दिया है।

CAA को लेकर कांग्रेस ने दिल्ली में केंद्र सरकार के खिलाफ हल्ला बोला था. अब दिल्ली के बाद कांग्रेस शासित राज्यों में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन की तैयारी है. एआईसीसी ने सभी राज्यों में इस कानून के विरोध में प्रदर्शन करने के लिए निर्देश दिए हैं. ऐसे में कांग्रेस शासित मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस सरकार का पूरा फोकस इस प्रदर्शन को प्रभावी बनाने में है. दिल्ली के बाद भोपाल में भी कमलनाथ सरकार इस कानून के विरोध के बहाने शक्ति प्रदर्शन करेगी.

प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने सरकार के इस फैसले से असहमति जताई है। पार्टी का कहना है कि नागरिकता कानून देश के किसी भी नागरिक के खिलाफ नहीं है, इसके बावजूद विरोध को स्वर देकर कांग्रेस सरकार अपने संवैधानिक दायित्वों से मुंह मोड़ रही है।

प्रदेश में जब अधिकतर लोग नए नागरिकता कानून से सहमति जताते हुए खुलकर बात रख रहे हैं तब कमलनाथ सरकार कानून के विरोध में खड़े होकर क्षुद्र राजनीतिक प्रतिद्वंदिता का उद्घोष करने जा रही है।

नए नागरिकता कानून को समझना जरूरी

कई लोग इस वजह से विरोध कर रहे हैं कि उन्हें लगता है इस कानून से उनकी नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी. कुछ को लगता है कि असम में जिस तरह एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के चलते लाखों लोगों की नागरिकता खतरे में पड़ गई है, वैसा ही उनके साथ भी होगा, लेकिन सचाई बिल्कुल अलग है. नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी अलग-अलग चीजें हैं.

नागरिकता कानून 2019 भारत के तीन पड़ोसी देशों से धार्मिक उत्पीड़न ही वजह से भारत आने वाले अल्पसंख्यकों को सिटिजनशिप देने के लिए है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे भारत के पड़ोसी देशों में सिख, जैन, हिंदू, बौद्ध, इसाई और पारसी अल्पसंख्यक हैं. ये तीनों देश मुस्लिम राष्ट्र हैं, इस वजह से उनमें धार्मिक अल्पसंख्यक को उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है.नागरिकता संशोधन अधिनियम में प्रावधान है कि अगर इन तीन देशों के छह धर्म के लोग भारत में 31 दिसंबर 2014 तक आ चुके हैं तो उन्हें घुसपैठिया नहीं माना जाएगा. उन्हें इस कानून के तहत भारत की नागरिकता दी जाएगी.

अगर इसे सीधे शब्दों में समझें तो एनआरसी जहां देश से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालने की कवायद है, वहीं नागरिकता कानून 2019 देश में आ चुके छह धर्म के लोगों को बसाने की कोशिश है.जिन लोगों के नाम एनआरसी में शामिल नहीं हैं, वह अवैध नागरिक कहलाए जाएंगे. एनआरसी के हिसाब से 25 मार्च 1971 से पहले असम में रह रहे लोगों को भारतीय नागरिक माना गया है.

एनआरसी और सीएए में ये हैं मुख्य अंतर नागरिकता संशोधन कानून 2019 जहां धर्म पर आधारित है, वहीं राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. सीएए के तहत मुस्लिम बहुल आबादी वाले देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भागकर भारत आए हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है. सीएए में मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है. एनआरसी में अवैध अप्रवासियों की पहचान करने की बात कही गई है, चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग या धर्म के हों. ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर भेजने का प्रावधान है. एनआरसी फिलहाल सिर्फ असम में लागू है जबकि सीएए देशभर में लागू होगा. सीएए भारतीय मुसलमानों को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा सकता. सीएए को लेकर एक गलत धारणा बन गई है कि इस वजह से भारतीय मुसलमान अपने अधिकारों से वंचित हो जाएंगे. सच यह है कि अगर कोई ऐसा करना चाहे तो भी इस कानून के तहत यह संभव नहीं है. पूर्वोत्तर राज्यों में सीएए का विरोध इसलिए हो रहा है कि क्योंकि लोगों को आशंका है इससे उनके इलाके में अप्रवासियों की तादाद बढ़ जाएगी जिससे उनकी संस्कृति और भाषाई विशिष्टता को खतरा हो सकता है. केरल, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में सीएए का विरोध इस कानून में मुसलमानों को शामिल नहीं किए जाने पर हो रहा है, उनका तर्क है कि यह संविधान के विरुद्ध है.

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