भोपाल,19 नवंबर(प्रेस सूचना केन्द्र)। छिंदवाड़ा मॉडल की शान बघारकर मुख्यमंत्री बने कमलनाथ ने सत्ता संभालते ही छिंदवाड़ा में लगभग तीन हजार करोड़ के प्रोजेक्ट मंजूर कर दिए हैं। राज्य सरकार का खजाना खाली होने का शोर मचाकर वे प्रदेश को गुमराह कर रहे हैं और अपने चुनाव क्षेत्र में प्रदेश के संसाधन झोंकते चले जा रहे हैं। मुख्यमंत्री के इस अभियान की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने वाले पीआईयू विभाग के एपीडी रमाकांत गुप्ता ने ठेकेदारों का नया गिरोह खड़ा करना शुरु कर दिया है। सबसे ज्यादा चंदा देकर वे सरकार के नीति नियंताओं के लोकप्रिय बने हुए हैं और कमाई के साथ साथ रिटायरमेंट के बाद अपनी पुर्ननियुक्ति की भूमिका भी बनाते जा रहे हैं।
कमलनाथ के अंधा बांटे रेवड़ी बार बार खुद को दे वाले अंदाज का फायदा उठाने वाले पीआईयू विभाग के एपीडी रमाकांत गुप्ता के रवैये से खासा असंतोष पनप रहा है लेकिन वे पूरी बेशर्मी से अपना भविष्य सुरक्षित करने में जुटे हुए हैं। गुप्ता के रवैये से न केवल छिंदवाड़ा बल्कि पूरे जबलपुर संभाग के अन्य विकास कार्य ठप हो गए हैं। जिन प्रोजेक्टों की समय सीमा पूरी हो चुकी है और बावजूद वे अधूरे हैं उनकी समय सीमा बढ़ाना एपीडी के अधिकार क्षेत्र में ही रहता है। मूल ठेके से जुड़े सप्लीमेंट्री सेक्शन की मंजूरी, स्टीमेट में सुधार, और लैब अप्रूवल जैसे कार्य भी एपीडी ही संपन्न कराते हैं। जाहिर है कि इन सभी कार्यों के लिए रमाकांत गुप्ता के दफ्तर में ठेकेदारों को मोटी रिश्वत देनी पड़ रही है। उगाही के इस तंत्र से जुड़े उनके करीबियों का कहना है कि इसमें माननीय मुख्यमंत्री जी के दफ्तर का खर्च भी शामिल है।
अपने पूरे सर्विसकाल में श्री गुप्ता ने ठेकों की परिपाटियों को अपनी परिभाषा की कसौटी पर कसा है। जब वे मुख्य अभियंता थे तब भी उन्होंने ठेकेदारों के कमीशन में से राजनेताओं का हिस्सा बढ़ाया था। यही वजह है कि उनके प्रमोशन धड़ाधड़ होते चले गए और अब वे अपने रिटायरमेंट के करीब आते आते सेवा वृद्धि की रणनीति पर तेजी से काम कर रहे हैं। उनके इस रवैये से ठेकेदारों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है और शर्तें पूरी न करने पर उन्हें अपने काम से भी हाथ धोना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि छिंदवाड़ा के अधिकतर निर्माण कार्य ईपीसी पद्धति से कराए जा रहे हैं। जिनमें ज्यादातर ठेकेदार दिल्ली के ही हैं और वे नक्शा बनाने से लेकर संधारण और निर्माण के सभी कार्यों का ठेका ले रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया में ठेकों की लागत अनावश्यक रूप से बढ़ाई जा रही है। कई ठेकेदारों का आतंक इतना ज्यादा है कि विभाग के अफसर भी उनकी बात काटने में हिचकते हैं। बताते हैं कि आरके गुप्ता का मार्गदर्शन पाकर वे ठेकेदार गुंडागर्दी पर उतारू हो रहे हैं।
छिंदवाड़ा माडल के नाम पर लूट का आलम ये है कि भोपाल का हमीदिया अस्पताल जहां लगभग छह सौ करोड़ रुपए में बन रहा है वहीं छिंदवाड़ा के सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की लागत 1600 करोड़ बताई गई थी। बाद में सरकार में बैठे अफसरों ने इसे घटाने का दबाव बनाया तो लागत 1100 करोड़ अनुमानित की गई। इस प्रक्रिया में आरके गुप्ता ने आंख मूंद ली और प्रदेश के खजाने से लगभग दोगुनी राशि व्यय किए जाने का राज मार्ग खोल दिया। पीआईयू के सर्वेसर्वा विजय वर्मा इस प्रक्रिया से पूरी तरह वाकिफ हैं लेकिन वे भी इसी तरह के हथकंडे अपनाते हुए अपना कार्यकाल तीन बार बढ़वा चुके हैं। ठेके की लागत घटाने के साथ साथ इस अस्पताल के लिए दुबारा टेंडर बुलाने पड़े थे, जिससे लागत भी बढ़ी और प्रोजेक्ट की समयसीमा भी बढ़ गई।
श्री गुप्ता जब पीडब्लयूडी के मुख्य अभियंता थे तब उन्होंने सड़कों के 200 करोड़ रुपए के कार्य को भी कई महीनों तक लटकाया था। ये निर्माण न्यू डेवलपमेंट बैंक से प्राप्त कर्ज से किया जाना था। गुप्ता की शर्तें पूरी नहीं होने के कारण उन्होंने इस प्रोजेक्ट को महीनों तक तकनीकी मंजूरी नहीं दी। जब विभाग में नए अभियंता की नियुक्ति हुए तब जाकर सड़कों के लिए तकनीकी मंजूरी दी जा सकी।इस तरह प्रदेश के संसाधनों से खिलवाड़ करने वालों के लिए गुप्ता एक सफल सरमाएदार बन गए हैं।
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