भोपाल,27 अगस्त(प्रेस सूचना केन्द्र)। कमलनाथ सरकार ने जनता की सहानुभूति हासिल करने के लिए जो शुद्ध के लिए युद्ध चलाया उसका नतीजा टांय टांय फिस्स साबित होने लगा है। खोदा पहाड़ और निकली चुहिया जैसी कहावत इस अभियान को देखते हुए सटीक साबित हो रही है। प्रदेश भर में जिन 3840 व्यापारियों के प्रतिष्ठानों से खाद्य नमूने जब्त किए उनमें से मात्र छह नमूने प्रतिबंधित निकले हैं। जबकि सरकार ने प्रदेश में बिक रहे 70 फीसदी खाद्य पदार्थों के नकली होने का शोर मचाया था।
अधिकृत सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले महीने 19 जुलाई से कथित तौर पर मिलावट के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के जो नतीजे सामने आए हैं उनमें मात्र छह नमूनों में प्रतिबंधित पदार्थ पाए गए हैं। आज 28 अगस्त तक जिन 723 नमूनों की जांच रिपोर्ट सामने आई है उनमें से 374नमूने मानक स्तर के पाए गए हैं। नमूनों में से 277 जांच में अवमानक निकले हैं। ब्रांड की कसौटी पर 27 को मिथ्या ब्रांड पाया गया है। यानि कि उन्हें बेचने के लिए ब्रांड नाम की अनुमति नहीं ली गई थी। 23 सैंपलों में मिलावट पाई गई है, यानि उनमें पाम आईल या अन्य खाद्यान्नों के अंश पाए गए हैं। सोलह नमूनों को असुरक्षित पाया गया है उनमें यूरिया या डिटर्जेंट पाऊडर जैसे पदार्थों के अंश पाए गए हैं।
केवल छह नमूनों में प्रतिबंधित पदार्थों की मौजूदगी पता चली है।ये नमूने उन्हीं व्यापारियों से बरामद हुए हैं जिनके बारे में लंबे समय से नकली खाद्यान् बनाने की शिकायतें मिलती रहीं थीं। इन्हीं की आड़ में सरकार ने धड़ाधड़ छापेमारी करके पूरे प्रदेश में भय का वातावरण निर्मित कर दिया। बीते राखी के त्यौहार के दौरान या तो उपभोक्ताओं ने इन खाद्यान्नों का इस्तेमाल नहीं किया या फिर उन्होंने ब्रांडेड कंपनियों के खाद्य पदार्थ खरीदकर त्यौहार मनाया।
गौरतलब है कि राज्य सरकार के पास इतने बड़े अभियान को चलाने लायक अमला नहीं है। फूड लेबोरेटरी में रेंडम सैंपल लेने और जांच करने की व्यवस्था है लेकिन एक साथ हजारों नमूनों की तत्काल जांच की सुविधा नहीं है। इसके बावजूद सरकार ने न केवल अभियान चलाकर व्यापारियों पर हल्ला बोला बल्कि कई जिलों के कलेक्टरों ने व्यापारियों के विरुद्ध रासुका के अंतर्गत कार्यवाही करके भय का माहौल बना दिया है।
राखी के अवसर पर व्यापारियों ने ज्ञापन देकर अनुरोध किया था कि खादय नमूनों को दूकानों से लिया जाए। परिवहन के दौरान जो नमूने लिए जाते हैं उनसे विक्रेताओं की धरपकड़ नहीं हो पाती है। इससे न ही खाद्यान्न निर्माताओं की पहचान संभव हो पाती है। व्यापारियों का कहना है कि खाद्य अमले ने इसके बाद रणनीति बदली थी लेकिन इस पूरे अभियान से कच्चा धंधा करने वाले व्यापारियों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जबकि ये अभियान ईमानदार व्यापारियों को परेशान किए बगैर भी चलाया जा सकता था।
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