कमलनाथ सरकार को दलालों ने घेरा

राज्य मंत्रालय में रोज सुबह से देर शाम तक इसी तरह आगंतुकों का जमघट लगा रहता है। दलालों और सुरक्षा कर्मियों के बीच आए दिन बहसें होती रहती हैं।

आगामी लोकसभा चुनावों के लिए राजनैतिक जमावट में जुटी कमलनाथ सरकार न चाहते हुए भी दलालों से घिर गई है। मुख्यमंत्री कमलनाथ जगह जगह वित्तीय कुप्रबंधन को रोकने के उपाय करते नजर आ रहे हैं जबकि कांग्रेस संगठन से जुड़े पदाधिकारी अपने लाव लश्कर समेत सत्ता की मलाई सूंतने में जुट गए हैं। सरकार के महत्वपूर्ण विभागों को खंगालने के लिए उन्होंने भाजपा शासनकाल के दलालों को भी अपने खेमे में शामिल कर लिया है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि पिछले पंद्रह सालों के भाजपा शासनकाल में सुशासन की जो कवायद की गई थी वो अब ताक पर धर दी गई है और मंत्रालय के गलियारे दलालों की दौड़भाग से गुलजार हो चले हैं। एक मलाईदार विभाग के मंत्री के विशेष सहायक इतनी जल्दी में हैं कि उन्होंने पूरे प्रदेश के अफसरों को धमकाकर वसूलियां शुरु कर दीं हैं। लोगों ने भी उनकी डिमांड के फोन टेप कर लिये हैं और उचित समय का इंतजार कर रहे हैं।

ऐसा नहीं कि मुख्यमंत्री कमलनाथ इस सच से अनजान हैं। उनके खबरची लगातार ये फीडबैक दे रहे हैं। इसके बावजूद मुख्यमंत्री सचिवालय से वेट एंड वाच की सलाह ही दी जा रही है। इसकी वजह कांग्रेस संगठन का बिखरा स्वरूप है। अलग अलग धड़ों में बंटी कांग्रेस के तमाम नेतागण और उऩके समर्थक लंबे समय से कह रहे हैं कि पिछले पंद्रह सालों से वे सत्ता की मलाई खाने से वंचित रहे हैं। ऐसे में उन्हें अगला आम चुनाव भी लड़ना है। जनता के बीच दौड़ भाग के लिए रसद पानी का इंतजाम करने के लिए उन्हें भी अवसर चाहिए। इसलिए मंत्रालय के दरवाजे कांग्रेस समर्थकों के लिए खोल दिए गए हैं। रोज सुबह से मंत्रालय के गलियारों में दौड़ भाग करते कांग्रेस समर्थकों की भीड़ देखी जा सकती है। इनके साथ आने वाले दलाल बाजार से आवेदन बनाकर लाते हैं और मंत्रियों के स्टाफ से नोटशीट बनवाकर आदेश जारी करवाने में जुट जाते हैं।

लंबे समय से सत्ता की गुंडागर्दी भूल चुके अफसरों के लिए ये एक नया अनुभव साबित हो रहा है। एक कमाऊ विभाग के प्रमुख को पिछले दिनों बड़ी कड़वी हकीकत से रूबरू होना पड़ा। उन्होंने जब मंत्री के दफ्तर से धड़ाधड़ आ रही नोटशीट डंप करना शुरु कर दिया तो मंत्री के समर्थकों ने उन्हों फोन पर गरियाना शुरु कर दिया। कुछ समर्थकों ने तो अफसर की माता बहिनों की सलामती की दुआ करते हुए कहा कि अब अच्छे से समझ लो ये कांग्रेस की सरकार है। यहां ना नुकुर की तो हम कांग्रेसी अपने नेताओं को भी नहीं छोड़ते,अफसरों की बिसात ही क्या है। अफसर को ये प्रेम भरा प्रस्ताव जल्दी समझ में आ गया और सारी नोटशीट एक ही झटके में आदेश बन गईं।

सत्ता बदलते ही प्रशासन में आई इस तब्दीली से अफसर हक्के बक्के हैं वे मुख्यमंत्री से शिकायत नहीं कर सकते क्योंकि पद संभालते ही उन्होंने साफ कह दिया था कि किसी भी कार्यकर्ता का काम अटकना नहीं चाहिए। यदि मेरे पास शिकायत आएगी तो मैं उसे बख्शूंगा नहीं। अब ऐसे में भला कांग्रेस के शेरों पर लगाम लगाने का साहस भला कौन कर सकता है। लगभग अराजकता के दौर में प्रवेश कर चुकी प्रशासनिक व्यवस्था को देखकर अफसरों ने भी वेट एंड वाच की ही शैली अख्तियार कर ली है। एक आला अफसर ने कहा कि हम तो प्रदेश हित को ध्यान में रखकर व्यवस्था बनाने की कोशिश कर रहे थे। अब जब सरकार ही नहीं चाहती कि नियमों और कानूनों का पालन हो तो हम क्या कर सकते हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट आफ गुड गवर्नेंस एंड पालिसी एनालिसिस के प्रशासन प्रबंधक ग्रुप केप्टन एचपी शर्मा कहते हैं कि कोई भी सरकार बदलती है तो प्रशासन उसकी नीतियों के साथ कदमताल करने की कोशिश करता है।धीरे धीरे जब सरकार और अफसरों की कार्यशैली में साम्य स्थापित हो जाता है तो प्रशासनिक व्यवस्था आकार ले लेती है। पिछली सरकार लंबे समय तक रही ऐसे में जाहिर है कि सरकार और अफसरों ने एक दूसरे की प्राथमिकताओं को समझ लिया था। अब नई सरकार के सामने चुनावी चुनौतियां भी हैं ऐसे में प्रशासन की शैली को स्थिर होने में थोड़ा वक्त लग सकता है।

दरअसल पिछली भाजपा सरकार ने तो कार्यकर्ताओं को हितग्राहियों की सूची में शामिल कर दिया था। तबादलों और पोस्टिंग के लिए भाजपा संगठन की राय जरूर ली जाती थी लेकिन प्रशासनिक प्रक्रिया मंत्रिमंडल के सदस्य ही पूरी करते थे। इससे जहां विकेन्द्रित भ्रष्टाचार पर लगाम लग जाती थी वहीं प्रशासनिक आधार पर कसावट लाने में भी भाजपा सरकार सफल थी। यही वजह है कि खनिज, वाणिज्यकर, आबकारी, जैसे आय बढ़ाने वाले विभागों से सरकार ने खासा वित्त जुटाया जिससे उसे विकास कार्यों के लिए पर्याप्त धनराशि मिलती रही थी।

मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रदेश के वित्तीय प्रबंधन में कसावट लाकर विकास योजनाओं के लिए धन की व्यवस्था करने की बात कहते रहे हैं। उन्होंने मीडिया का बजट रोककर दो टूक कह दिया है कि मुझे अपनी छवि चमकाने की जरूरत नहीं है। हालांकि ये बात भी सही है कि दो लाख करोड़ के बजट में मीडिया पर खर्च की जाने वाली धनराशि सौ करोड़ भी नहीं होती है। जबकि सड़कों, फ्लाईओवर और अन्य योजनाओं पर खर्च की जाने वाली धनराशि हजारों करोड़ की होती है। इसके बावजूद मीडिया पर प्रहार करने से जनता को ये संदेश देने में सफलता मिल रही है कि सरकार वित्तीय प्रबंधन सुधार रही है।

कांग्रेस के विभिन्न गुटों के बीच सत्ता की मलाई लूटने की जो होड़ इन दिनों पावर गेलरी में देखी जा रही है उससे तो साफ समझ में आता है कि कमलनाथ सरकार आगे चलकर गंभीर वित्तीय संकट का सामना करने की तैयारी कर रही है। आज जब प्रदेश के विकास के लिए संसाधन जुटाने की जरूरत है तब तबादलों और पोस्टिंग के धंधे को फलने फूलने का अवसर देकर नई सरकार अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है। जब सरकार के विभाग अपने वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाएंगे तो वह अपनी नोटशीट पर कर्ज लेने की हैसियत भी खो देगी। प्रदेश के नागरिकों को निश्चित रूप से गहरे वित्तीय संकट का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।

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