कांग्रेस में समाजवादी पृष्ठभूमि का परचम लेकर चलने वाले डाक्टर गोविंद सिंह को मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सामान्य प्रशासन विभाग की जिम्मेदारी भी सौंप दी है।कमलनाथ के इस फैसले के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस की अल्पमत वाली सरकार कई दबावों और तनावों के बीच झूल रही है। सत्ता के चार बड़े केन्द्र कांग्रेस सरकार के फैसलों को फुटबाल बना रहे हैं। आगामी विधानसभा के सत्र में ये खींचतान सरकार के लिए भारी पड़ सकती है। डाक्टर गोविंद सिंह ने तो पहले शपथ लेने से ही इंकार कर दिया था बाद में जीएडी विभाग लेने पर अड़ गए जिससे लगता है कि सरकार कई धड़ों में बंट गई है।
हालांकि जो लोग डाक्टर गोविंद सिंह को जानते हैं वे समझते हैं कि लगातार जनता की पैरवी करने वाले डाक्टर साहब ने कभी ओछे दांव नहीं खेले हैं। वे जनहित के मुद्दों पर कई बार अपनी ही सरकार को घेरते रहे हैं। दिग्विजय सिंह सरकार में वे जनता के मुद्दों पर अपनी ही सरकार को खरीखोटी सुनाते रहे हैं।ऐसे में सामान्य प्रशासन विभाग लेने की उनकी जिद के क्या मायने हो सकते हैं। सामान्य प्रशासन विभाग सरकार का प्रमुख विभाग है। इसमें राजभवन सचिवालय,मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग,लोक आयुक्त एवं उप लोक आयुक्त,राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यालय,मुख्य तकनीकी परीक्षक (सतर्कता),राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो,मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग, आर.सी.वी.पी.नरोन्हा प्रशासन अकादमी मध्यप्रदेश,मध्यप्रदेश भवन,राज्य सत्कार अधिकारी का कार्यालय,विभागीय जांच आयुक्त कार्यालय,मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग,अधिनियमों के अधीन गठित मंडल तथा निगम,मध्यप्रदेश सिविल सेवा सर्विसेस खेल मण्डल, विभाग के अधीन आने वाली सेवा का नाम,भारतीय प्रशासनिक सेवा,राज्य प्रशासनिक सेवा,मध्यप्रदेश मंत्रालयीन सेवा,राजभवन, मध्यप्रदेश प्रशासनिक अधिकरण, लोक सेवा आयोग, लोक आयुक्त एवं उप लोक आयुक्त, मुख्य तकनीकी परीक्षक, राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो, प्रशासन अकादमी और राज्य निर्वाचन आयोग के कार्यालयों से संबंधित सेवा विषय,आरक्षण प्रकोष्ठ,मानव अधिकार प्रकोष्ठ,पेंशन प्रकोष्ठ,पंच-ज प्रकोष्ठ,स्थानान्तर प्रकोष्ठ,सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ,सुशासन प्रकोष्ठ,मुख्य सचिव कार्यालय,सत्कार कार्यालय जैसी महत्वपूर्ण जवाबदारी होती है।
डाक्टर गोविंद सिंह को शुरुआती विभाग आबंटन में सहकारिता और संसदीय कार्य विभाग दिए गए थे। वे पहले भी सहकारिता और गृह विभाग संभाल चुके हैं। सहकारिता आंदोलन कांग्रेस की राजनैतिक शैली का प्रमुख औजार रहा है। हालांकि ये भी सच है कि सहकारिता आंदोलन को धराशायी करने में कांग्रेस के कुछ नेताओं ने बड़ी भूमिका निभाई। सहकारिता की आड़ में पनपे माफिया ने इस आंदोलन को शोषण का माध्यम बना दिया जो आगे चलकर जन आक्रोश की वजह बना।आज जब देश पूंजीवाद की राह पर चल रहा है तब सहकारिता के क्षेत्र को आज के संदर्भों में नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है। ये काम ही अपने आप में इतना विस्तृत है कि इसे संभालने वाला व्यक्ति कोई दूसरा कार्य नहीं कर सकता। ऐसे में डाक्टर साहब को जीएडी जैसा बड़ा विभाग संभालने की जिद क्यों करनी पड़ी।
इस मुद्दे की तहकीकात करते हुए कई नई बातें सामने आ रहीं हैं। ये तथ्य गौर करने लायक है कि डाक्टर गोविंद सिंह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाते हैं। दिग्विजय सिंह सरकार की असफलता की एक बड़ी वजह उसका पंचायती राज लागू करने का फैसला भी माना जाता रहा है। पंचायती राज के नाम पर दिग्विजय सिंह की सरकार ने सरकारी तंत्र के समानांतर ऐसा ढांचा खड़ा कर दिया था जो निहायत गैर जिम्मेदार था और सरकारी खजाने पर बोझा साबित हुआ था। असामाजिक तत्वों और माफिया ताकतों ने तब कार्यपालिका का लगभग अपहरण कर लिया था। हालात इतने विपरीत हो गए थे कि नौकरशाही ने सरकार से असहयोग शुरु कर दिया और जिसकी परिणति दिग्गी सरकार के पतन के रूप में सामने आई थी। दिग्विजय सिंह सार्वजनिक मंचों पर सरकारी तंत्र को लताड़ते देखे जाते थे। आईएएस अफसर हों या आईपीएस अफसर सभी दिग्विजय सिंह के आक्रोश का शिकार बने। राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की तो कोई बिसात ही नहीं थी। दिग्विजयसिंह की कई बातें तथ्यों पर आधारित भी थीं लेकिन नेता की मंशा को भांपकर कांग्रेसियों ने नौकरशाही को जिस तरह लताड़ना शुरु कर दिया वो असंतोष की बड़ी वजह बना था।
इस बार डाक्टर गोविंद सिंह ने जिस जिद के साथ सामान्य प्रशासन विभाग की कमान हथियाई है उसके पीछे दिग्विजय सिंह से उनका तालमेल ही प्रमुख वजह माना जा रहा है। प्रशासनिक हलकों में कहा जा रहा है कि डाक्टर गोविंद सिंह के माध्यम से खुद दिग्विजय सिंह अपनी आधी अधूरी मंशा को लागू करना चाहते हैं। पिछले कार्यकाल में वे नौकरशाही पर लगाम लगाने का जो काम पूरा नहीं कर सके थे वो कमलनाथ मंत्रिमंडल में डॉ.गोविंद सिंह के माध्यम से करना चाहते हैं। जाहिर है कि खुद कमलनाथ भी इसी सोच के पक्षधर साबित होंगे। शपथ ग्रहण के बाद कार्यभार संभालने मंत्रालय पहुंचे मुख्यमंत्री ने पहली पत्रकार वार्ता में नौकरशाही पर निशाना साधा था। उनका कहना था कि आज के दौर का नौजवान लालफीताशाही को झेलने तैयार नहीं है। अफसरों को अपना सोच बदलना होगा। कार्यपालिका की जो जवाबदारी है उन कार्यों के लिए यदि कोई नागरिक शिकायत लेकर उनके पास आया तो वे बर्दाश्त नहीं करेंगे।
भाजपा सरकार के पतन की वजह भी नौकरशाही को ही माना जा रहा है। भाजपा के कार्यकर्ताओं की हमेशा से शिकायत रही है कि अफसर उनकी बात नहीं सुनते। प्रशासनिक सुधारों को लेकर भाजपा ने तमाम चिंतन,मनन और बैठकें की हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अफसरों को शासन व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग मानते थे। इसके बावजूद नौकरशाही के बीच सरकारी खजाने को लूटने की खुली होड़ पनपी वो शिवराज सिंह सरकार की कलंकित प्रशासनिक शैली की वजह बन गई थी। शिवराज सिंह सरकार के अंतिम चार सालों में जनधन खाते और केन्द्र के प्रयासों से योजनाओं का लाभ सीधे हितग्राहियों के खाते में पहुंचाने की व्यवस्था भी हुई लेकिन तब तक प्रशासनिक व्यवस्था इतनी बेलगाम हो चुकी थी कि जन आक्रोश से भाजपा का जनाधार प्रभावित भी हुआ।
कांग्रेस की अल्पमत वाली कमलनाथ सरकार के सामने असरकारी उपस्थिति दिखाने के लिए बहुत कम समय है। लोकसभा चुनाव सिर पर खड़ा है। कांग्रेस ने चुनाव में वक्त है बदलाव का नारा दिया था। जनता ने उसी बदलाव की आस में उसे सरकार में भेजा है। ऐसे में यदि कार्यपालिका ने असहयोग शुरु कर दिया तो सरकार को लेने के देने पड़ सकते हैं। जाहिर है कि सरकार कार्यपालिका से सीधा टकराव लेने की स्थिति में नहीं है। इसके विपरीत यदि सरकार जनता को जीत का अहसास कराना चाहती है तो उसे नौकरशाही के चंगुल में फंसे पड़े प्रदेश को मुक्त कराना होगा। ये काम सामान्य प्रशासन विभाग को कसे बगैर संभव नहीं होगा। इस विभाग के ज्यादातर फैसले सरकार और मंत्रिपरिषद की जद में होते हैं। जाहिर है कि डाक्टर गोविंद सिंह पर बड़ी जवाबदारी होगी कि वे किस तरह कांग्रेस के सुधारों को लागू करें और अफसरशाही के बीच विद्रोह का भाव भी न पनपने दें। दूध के जले दिग्विजय सिंह के अरमानों की छाछ को फूंक फूंक कर कैसे पिएं। कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के बीच जो विशाल कार्यपालिका का बोझ कांग्रेस की सरकारें लादती रहीं हैं भाजपा ने भी उसमें थोडी़ बहुत वृद्धि ही की है।
जाहिर है कि कांग्रेस की मौजूदा सरकार के सामने चुनौती है कि वो जनता को अनुत्पादक कार्यपालिका के बोझ से राहत कैसे दिलाए। सरकार ने सत्ता में आते ही पुलिस कर्मियों को एक दिन की छुट्टी का फैसला लागू कर दिया है। ऐसे में उसे आठ हजार पुलिस वालों को तत्काल नौकरी देने की मजबूरी का सामना करना पड़ेगा। पंद्रह सालों से सत्ता से बाहर रहे कांग्रेसी भी सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि वो उनके चहेतों को सरकारी नौकरियां दे। जाहिर है कि चाहते हुए भी कांग्रेस की मौजूदा सरकार कार्यपालिका को सुधारने का कोई बड़ा अभियान नहीं चला पाएगी। ऐसे में डाक्टर गोविंद सिंह ने सामान्य प्रशासन विभाग लेकर कार्यपालिका के चक्रव्यूह में घुसने का फैसला तो कर लिया है लेकिन वे इसे कैसे भेदेंगे ये आने वाले समय में ही देखने मिलेगा।
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