जेनेटिक बीमारियों के छलावे से सावधान

-डॉक्टर अरविन्द जैन भोपाल

आज कल वैसे भी नव दम्पत्ति बच्चे के जन्म के प्रति बहुत जागरूक होते हैं और कोई कोई तो इस झंझट में नहीं पड़ना चाहते .कारण महिलाये अधिकांश अपने सौंदर्य या फिगर के पीछे बच्चा पैदा नहीं करना चाहती .दूसरा आजकल अपने कैरियर की दीवानगी के कारण बच्चे न हो इससे निजात चाहती हैं .तीसरा आजकल डॉक्टरों के अलावा महिलाएं ऑपेरशन से प्रसव कराने में प्राथमिकता देती हैं .इसके अलावा आजकल जन्मजात विकृत बच्चों के जन्म होने के भय से भी बचते हैं .आर्थिक सम्पन्नता और भविष्य के प्रति निश्चिंतता के कारण महानगरों में कुछ नर्सिंग होम्स और उनमे पदस्थ शिशु रोग विशेषज्ञ और जेनेटिक बीमारियों के डर से मनोवैज्ञानिक अज्ञात भयग्रस्त करते हैं .और आर्थिक सम्पन्नता के कारण और भविष्य की चिंता से मुक्त होने के कारण जेनेटिक बीमारियों से बचने यह रास्ता अपनाते हैं जो कितना शोषण का सरल मार्ग निकाला गया हैं .

इन दिनों बच्चे के जन्म से पहले ज्यादातर पैरंट्स को प्राइवेट डॉक्टर्स यह समझाते हैं कि अगर बच्चे को कोई जेनेटिक बीमारी हो जाती है तो बच्चे का अम्ब्लिकल कॉर्ड ब्लड यूज कर बच्चे का इलाज किया जा सकता है और यही वजह से बड़ी संख्या में माता-पिता हजारों-लाखों रूपये खर्च कर अपने बच्चे के कॉर्ड ब्लड को प्राइवेट कॉर्ड ब्लड बैंक में सुरक्षित रखवाते हैं। हालांकि इंडियन अकैडमी ऑफ पीडिऐट्रिक्स IAP की मानें तो कॉर्ड ब्लड का बेहद सीमित इस्तेमाल हो सकता है। IAP की ओर से जारी एक स्टेटमेंट में प्राइवेट कॉर्ड बैंकिंग इंडस्ट्री की आलोचना करते हुए कहा गया है कि ये लोग झूठी बातों का प्रचार कर अपने प्रॉफिट और बिजनस के लिए आम लोगों का शोषण कर रहे हैं

भ्रामक होते हैं कॉर्ड ब्लड बैंक के विज्ञापन
IAP ने कहा, ‘कॉर्ड ब्लड के मामले में माता-पिता की अपने बच्चे के प्रति दायित्व की भावना का गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। ज्यादातर प्राइवेट कॉर्ड ब्लड बैंक भविष्य में होने वाली बीमारियों के इलाज के लिए कॉर्ड ब्लड को राम-बाण की तरह पेश करते हैं जबकि हकीकत यह है कि बच्चे के लिए कॉर्ड ब्लड का इस्तेमाल बेहद सीमित है। साथ ही प्राइवेट कॉर्ड ब्लड बैंक्स के विज्ञापन अक्सर भ्रामक होते हैं और उन्हें इस तरह से पेश किया जाता है मानो कॉर्ड ब्लड एक तरह का बायलॉजिकल इंश्योरेंस हो।’

कॉर्ड ब्लड से फायदे की गुंजाइश सिर्फ 0.04%
अमेरिकन सोसायटी फॉर ब्लड ऐंड मैरो ट्रांसप्लांटेशन के मुताबिक, बच्चे का अपने ही कॉर्ड ब्लड से फायदा पहुंचने की संभावना महज 0.04 प्रतिशत से 0.0005 प्रतिशत ही है। जेनेटिक बीमारियों के इलाज में अपने ही कॉर्ड ब्लड सेल्स का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि उनका म्युटेशन (तबदीली) भी सेम वैसी ही होगा। IAP की मानें तो कॉर्ड ब्लड सेल्स का इस्तेमाल हाई रिस्क सॉलिड ट्यूमर जैसी बीमारियों में ही हो सकता है।

पब्लिक कॉर्ड ब्लड बैंक विकसित करने की जरूरत
IAP का कहना है कि प्राइवेट कॉर्ड ब्लड बैंक की जगह पब्लिक कॉर्ड ब्लड बैंक विकसित किया जाना चाहिए जिसमें अलग-अलग डोनर्स के डिफरेंट जेनेटिक बनावट के कॉर्ड ब्लड को जमा कर रखा जा सकेगा जो कई अलग-अलग तरह की बीमारियों में काम आ सकता है। साथ ही इस तरह के ब्लड बैंक के लिए डोनर को किसी तरह का पैसा नहीं देना होगा।

60 प्रतिशत डॉक्टरों को नहीं है सही जानकारी
IAP के जर्नल इंडियन पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित स्टेटमेंट में डॉक्टरों के बीच करवाया गया एक सर्वे भी शामिल था। इस सर्वे के मुताबिक करीब 60 प्रतिशत डॉक्टर्स इस बात से अनजान थे कि वे कौन सी बीमारियां हैं जिसका इलाज कॉर्ड ब्लड सेल ट्रांसप्लांटेशन से किया जा सकता है। करीब 90 प्रतिशत डॉक्टरों का मानना था कि बच्चे के अपने अम्ब्लिकल कॉर्ड का इस्तेमाल थैलसीमिया के इलाज में किया जा सकता है जो पूरी तरह से गलत है

भारत में प्राइवेट कॉर्ड ब्लड बैकिंग इंडिस्ट्री करीब 300 करोड़ की है। एक बच्चे का अम्ब्लिकल कॉर्ड 20 साल तक सुरक्षित रखने में 50 हजार से 1 लाख रुपये तक का खर्च आता है।

यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक हैं की भविष्य के प्रति हमें जागरूक रहना चाहिए पर इस प्रकार के भ्रामक प्रचार से ,गुमराह कर लाखों रूपया लूटना क्या यह मानवीयता हैं ?यदि कोई इस जाल में फंस गया हैं तो भविष्य के क्या करना चाहिए ?इस पर चर्चा कर निरयण लिया जाएगा पर यह एक खुला धोखा या छलावा हैं .

पैसों के पीछे कितना ,,कैसे कैसे शोषण के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं .सावधान .

डॉक्टर अरविन्द जैन संस्थापक शाकाहार परिषद् भोपाल 09425006753

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