–भरत चंद नायक-
भुवन भास्कर भी संध्या को अस्ताचल पहुंचकर विश्राम करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे व्यक्तित्व के धनी लोग भी होते हैं जो अपने जीवन की संध्या में लोक कल्याण की भावना से अपने ध्येय की पूर्ति में जुटे रहते है। अपने-अपने परिवार और संगे संबंधियों से अनासक्त होकर जीवन पथ पर चलते रहते हैं। जीवन में विश्राम उनके लिए विलासिता के समान होते हैं। ऐसे समर्पण भाव से जीने वालों के लिए समाज और देश ही परिवार बन जाता है। भारतीय जनता पार्टी की स्थापना से लेकर 1980 में भारतीय जनता पार्टी के गठन के साक्षी बने पितृ पुरूष कुशाभाऊ ठाकरे एक ऐसे ही महापुरूष हुए जिन्होंने अपना जीवन पुष्प राष्ट्रवाद के पोषण के लिए मातृभूमि की बलिवेदी पर आर्पित कर दिया।
कहते है कि अपनों के लिए तो संसार जीता है जो दूसरों के लिए जीते है उनका जीवन धन्य है। मध्यप्रदेश में कुशाभाऊ ठाकरे राष्ट्रवाद के प्रवर्तन और भारतीय जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी के गठन और विस्तार के प्रतीक पुरूष रहे लेकिन इस विकास यात्रा में सत्ता प्राप्ति से बढकर उनका ध्येय राष्ट्रनिष्ठ कार्यकर्ताओं का निर्माण करना रहा। कार्यकर्ता निर्माण की उनमें अद्धुत क्षमता थी। उन्हें कार्यकर्ता की क्षमता, उसके बौद्धिक स्तर की पहचान थी जिसका श्रेय उनका कार्यकर्ताओं से तादात्म्य स्थापित करने की कला को है। प्रदेश के लाखों कार्यकर्ताओं को उन्होंने संवारा। हर कार्य के लिए कार्यकर्ता और हर कार्यकर्ता को दायित्व उनकी कार्य संस्कृति थी। अविराम कार्यकर्ताओं के बीच रहना। कार्यकर्ताओं की सुनना और उन्हें संतुष्ट करना उनकी दिन चर्या थी। इससे उनके संपर्क में आने वाला अजनबी व्यक्ति भी उनका मुरीद हो जाता था। देखा गया कि कुछ लोग उनके संपर्क में आते और विचारधारा से असहमत हो जाते थे। उनकी असहमति का वे सम्मान करते हुए कहते थे कि सतत संवाद और संपर्क में वही असहमत व्यक्ति आने वाले दिनों में कार्यकर्ता बनेगा और उसका सहयोग हमें मतदाता के रूप में मिलने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है।
कुशाभाऊ ठाकरे अपने से असहमति होने वालों को विशेष तरजीह देते और कभी गांठ नहीं बांधते थे, जिससे हर विरोधकर्ता व्यक्ति उनका विश्वास भाजन बन जाता था। उन्होंने जो कार्य संस्कृति और पद्धति विरासत में छोडी यदि उसका अनुगमन किया जाता तो वास्तव में पार्टी संगठन में गुट नहीं गट बनते। कार्यकर्ता किसी व्यक्ति के प्रति नहीं संगठन के प्रति उत्तरदायी रहता। इस दिशा में आज स्थिति विचारणीय है। हम पितृपुरूष के जीवन आदर्शो के प्रति गंभीर रहेंगे तो वास्तव में संगठन का यह दावा सोलह आना सही साबित होगा कि भाजपा के लिए सत्ता साध्य नहीं। सत्ता समाज में सुखद परिवर्तन लाने का साधन मात्र है। यही ठाकरे जी का जीवन दर्शन था।
संगठन और पार्टी के विकास की दिशा में ठाकरे जी के योगदान को कुछ पृष्ठों में समेटना वास्तव में असंभव है। लेकिन यथार्थ यही है कि जब डाॅ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी पं. नेहरू के मंत्रिमंडल में रहते हुए राष्ट्रवाद के प्रवर्तन के बजाए तुष्टीकरण देखकर आहत हुए उन्होंने श्री गुरूजी से परामर्श कर राष्ट्रवाद को समर्पित दल भारतीय जनसंघ की स्थापना का बीडा उठाया। देशव्यापी संगठन और दल के गठन के लिए कार्यकर्ताओं की खोज खबर आरंभ हुई। पं. दीनदयाल, नानाजी देशमुख, दत्तोपंत ठेंगडी जैसे चुनिंदा कार्यकर्ताओं का चयन किया गया। मध्य भारत क्षेत्र के लिए कुशाभाऊ ठाकरे धुरी मान लिए गए। कुशाभाऊ ठाकरे एक थैला लिए, पैरो में टायर की चप्पल पहनकर निकल पडे। उन्होंने मध्य भारत क्षेत्र की लंबाई चैड़ाई कुछ इस तरह नापी कि गांव गांव में जनसंघ की पहचान बनी। किसानों, छोटे मोटे उद्यम में लगे लोगों मजदूरों और युवा वर्ग को अपनेपन का अहसास हुआ। संगठन शिल्प में निष्णात ठाकरेजी के समर्पण भाव ने जन जन में विश्वास पैदा किया। दिन भर यात्रा और संध्या रात्रि में जन जन की चैपाल में सुख दुख की बातों के बीच उन्होंने राष्ट्रवाद का अलख जगाया। तत्कालीन सरकार की जनविरोधी नीतियों का प्रखरता से विरोध किया और जनता की जागरूकता का विकास किया। फलस्वरूप मध्यप्रदेश में कांग्रेस का एकाधिकार समाप्ति की ओर बढा। सहयोगी दलों में संवाद ने सेतु का काम किया। पहली बार कांग्रेस से सत्ता छीनकर संविद सरकार बनाने में उनका अप्रतिम योगदान रहा लेकिन सरकार चले जाने से तत्कालीन भारतीय जनसंघ की भूमिका का इतिहास बदला हो ऐसा नहीं हुआ है।
5 मार्च 1990 में मध्यप्रदेश की पहली भारतीय जनता पार्टी की सरकार का गठन हुआ। तब भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में दो तिहाई बहुमत से सत्ता पर काबिज हुई थी। कुशाभाऊ ठाकरे सत्ता साकेत से दूर संगठन में तल्लीन रहे। उन्होंने तत्कालीन सरकार को राष्ट्रवाद की पटरी से नहीं उतरने दिया लेकिन इस दरम्यान वे सत्ता साकेत से दूर तथापि एक रेफरी की तरह व्हिसिल ब्लोवर बने रहे। यह भारतीय जनता पार्टी और पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ की पुण्याई थी कि राज्यों में सरकारे बनी। अयोध्या में ढांचा गिराए जाने पर आए राजनैतिक झंडावात में भारतीय जनता पार्टी की सरकार कुर्बान हो गयी। लेकिन नीति और नीयत जब साफ होती है तो नैतिक साहस बड़े बड़े किले ध्वस्त हो जाते है। कुशाभाऊ ठाकरे को मध्यप्रदेश संगठन से प्रथक राष्ट्रीय जिम्मेदारी सौंप दी गयी। लेकिन कुशाभाऊ ठाकरे ने जिस शिशु संगठन का संगोपन किया उसका मोह नहीं छोड़ पाए और मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और उनके कार्यकर्ताओं से संबंध विच्छेद नहीं हुआ। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में तत्कालीन एनडीए की अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार के दौर में कुशाभाऊ ठाकरे ने सत्ता से दूर रहते हुए अम्पायर की भूमि का भली प्रकार बिना रागद्वेष निर्वाह किया। शरीर से दुर्बल हो जाने के बावजूद उनकी मनस्थिति हमेशा जीवंत रही और उन्होंने मध्यप्रदेश संगठन और कार्यकर्ताओं का विस्मरण नहीं किया। उनकी रूग्णावस्था में कार्यकर्ता उन्हें देखने जब दिल्ली पहुंचे वे सभी की खैर ख्वाह लेते रहे और पूरी व्यवस्था करते थे।
कुशाभाऊ ठाकरे ने भारतीय जनता पार्टी के स्थापना दिवस पर कहा था कि जनसंघ के रूप में राजनैतिक यात्रा आरंभ करते हुए हमारी कुछ प्रतिबद्धताएं थी। राष्ट्र की एकता, प्रजातांत्रिक मूल्यों पर आधारित राजनीति और भारत को एक शक्तिशाली देश बनाना। जनसंघ छोटा दल था लेकिन कमजोर नहीं था। हमारी कोशिश प्रेशर ग्रुप बनाने की रही थी। देश की प्रमुख पार्टी न होने के बाद भी हमारी साख और इकबाल था कि बिना हमें विश्वास में लिए देश की राजनीति पर विचार संभव नहीं था। ध्येय लेकर बढे है। देश की सुरक्षा की चिंता, राष्ट्रीय अस्मिता को जिंदा रखना था और होगा। भारतीय जन संघ और भारतीय जनता पार्टी की आगे बढ़ने का कारण हमारे कार्यकर्ताओं ने भारत की आत्मा से संवाद किया है। जनता की तलित भावनाओं को समझा है उनसे तादात्म्य स्थापित किया है। आत्मा को छूने के साथ हमने अपना लक्ष्य सामने रखा है। हम राज्यों में केन्द्र में सरकार में रहे, न रहे जनता के मर्म को समझना है और उससे एकाकार होना है। जनता का विश्वास ही पूंजी है इसे ईमान की तरह संरक्षित रखना है। तो पार्टी जनमानस पर हमेशा शासन करती रहेगी। कर्तव्यबोध की चुनौती को खुले मन से स्वीकार करे और सशक्त भारत का लक्ष्य पूरा करेंगे। उनकी ध्येय निष्ठा आने वाली पीढी के लिए दीप स्तंभ का कार्य करेगी।
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