(फाईल फोटो)
मध्यप्रदेश इन दिनों अपनी विकास यात्रा नहीं बल्कि शासन शैली को लेकर चर्चाओं में है। चौदह साल बीत जाने के बाद भी मध्यप्रदेश की जनता भाजपा के सुशासन पर रीझ नहीं पा रही है। कांग्रेस को भूल चुके मतदाता भी आने वाले चुनावों से पहले भाजपा की फींच फींचकर धुलाई करने में जुट गए हैं। प्रदेश भर से जनता की जो आवाजें सुनाई पड़ रहीं हैं वो अपेक्षाओं से लबरेज हैं। उन्हें भाजपा से कुछ ऐसा करने की उम्मीद है जो पहले कभी न हुआ हो। यही वजह है कि भाजपा विरोधियों के साथ साथ उसके समर्थक भी सरकार पर गुलेल तान रहे हैं। सवालों से घिरी शिवराज सरकार के राज दरबार यानि विधानसभा के सदन में भी शासन शैली को लेकर तीखे आरोप लगाए जा रहे हैं। प्रतिपक्ष नहीं बल्कि सत्तापक्ष के भी कई सदस्य सरकार के जवाबों और कार्यशैली से खफा हैं। कई विधायक तो खीजकर सदन में ही कह चुके हैं कि जो सरकार हमारी आवाज नहीं सुनती उससे अब हमें कोई सवाल ही नहीं पूछना है। जो कर्कश विवाद पिछले दिनों सदन में देखने सुनने मिले उससे तो महाभारत काल के प्रहसन भी फीके पड़ते दिख रहे हैं। जो बात सहजता से कही जा सकती है उसे माननीय विधायकगण छिछोरे अंदाज में कहते नजर आ रहे हैं। ऐसा लगता है कि किसी को लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भरोसा ही नहीं रह गया है। विधानसभा अध्यक्ष डाक्टर सीतासरन शर्मा जब पक्ष और विपक्ष के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करते हैं तब भी विधायकगण अपनी जिद पर अड़े रहते हैं। विधायक ये गौर करने तैयार नहीं कि वे कल के इतिहास की इबारत लिख रहे हैं। कांग्रेस के जीतू पटवारी ने जब नौ मार्च को कथित तौर पर सत्ता पक्ष को चोरों की मंडली कह दिया और कहा कि ये चोरों को विज्ञापन देते हैं । अंधा अंधे को रेवड़ी बांटे बाली इस व्यवस्था जर्नलिज्म वाले परेशान हैं। जो ओरीजनल जर्नलिज्म वाले हैं वे आज भी खाली हाथ हैं। उनके इस कथन से सत्ता पक्ष के विधायक बिफर पड़े। जनसंपर्क मंत्री डाक्टर नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि ये मीडिया को चोर कह रहे हैं। उन्होंने अध्यक्ष से मांग की कि पत्रकारों को चोर कहने वाली बात सदन की कार्यवाही से विलोपित करवाईए। इस पर अध्यक्ष ने इन पंक्तियों को सदन का कार्यवाही के रिकार्ड से निकलवा दिया। बारह मार्च को विपक्ष की ओर से रामनिवास रावत ने स्पष्ट किया कि जीतू पटवारी ने मीडिया पर नहीं बल्कि उसकी आड़ में चलने वाले विज्ञापन घोटाले का उल्लेख किया है।इसके बाद भी यदि उनके शब्दों से किसी की भावनाएं आहत हुईं हों तो वे सदस्यों की ओर से माफी मांगते हैं। इसके बाद भी सत्ता पक्ष के विधायकगण मानने तैयार नहीं थे। दस सदस्यों ने इस कथन पर सदन का विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव दिया जो सत्तापक्ष के सदस्यों के दबाव में स्वीकार कर लिया गया। हालांकि इस घटना पर पत्रकारों के बीच बेचैनी का माहौल देखा गया। युवा पत्रकार संघ के अध्यक्ष दिनेश शुक्ल ने अध्यक्ष डाक्टर सीतासरऩ शर्मा के सदन संचालन में सजगता और निष्पक्षता को लेकर धन्यवाद प्रस्ताव सौंपा है। उनका कहना है कि जब सदन में दोनों पक्षों के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा था तब भी अध्यक्ष की आसंदी से सभी को अपनी बात रखने का अवसर दिया गया। विधायकों की दबावपूर्ण भाषाशैली और जिद के सामने अध्यक्ष ने पूरा धैर्य रखा और विपक्ष को अपनी बात रखने का अवसर देकर उदारता का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि अब जबकि ये मामला विशेषाधिकार हनन समिति को सौंप दिया गया है तब पक्षकार की हैसियत से हम चाहते हैं कि कथित तौर पर कहे गए चोरों की मंडली शब्द का आशय स्पष्ट हो, क्योंकि जीतू पटवारी ने अपने आरोप में कहीं भी मीडिया या पत्रकार शब्द का उल्लेख नहीं किया था। उन्होंने कहा कि यदि कतिपय माफिया तत्व सत्ताधीशों की आड़ में जन धन का अपवंचन करते रहे हैं तो उन्हें उजागर किया जाना चाहिए। इस संबंध में दोषी अधिकारियों और राजनेताओं को भी न बख्शा जाए। पत्रकारों की ओर से ये वक्तव्य तब सामने आया जब सेन्ट्रल प्रेस क्लब के अध्यक्ष गणेश साकल्ले,महासचिव राजेश सिरोठिया, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विजय कुमार दास ने राहुल गांधी को लिखे पत्र में कहा कि जीतू पटवारी की ….सरकार चोरों की मंडली मीडिया ….. को विज्ञापन दे रही ये टिप्पणी अनुचित और अवांछित है। मूल वक्तव्य में हालांकि चोर मंडली के साथ मीडिया शब्द का उल्लेख ही नहीं किया गया था। पत्रकारों की इसी नाराजगी का उल्लेख सदन में हुआ और मामला विशेषाधिकार हनन समिति को सौंप दिया गया। सदन में संसदीय कार्य मंत्री ने ये भी कहा कि पटवारी का मूल वक्तव्य सदन की कार्यवाही से नहीं निकाला गया है। अब इस शब्द संग्राम का अंत कहां होगा ये तो नहीं कहा जा सकता पर इस प्रहसन में मध्यप्रदेश के मीडिया की साख पर जरूर कीचड़ उछाला गया है। वो भी उन लोगों की आड़ में जिन्होंने विज्ञापन के नाम पर जनता के बजट की खुली लूट की है। सरकार को इस मसले का समाधान बड़ी तत्परता और प्राथमिकता से करना होगा। ये बात भी सही है कि मौजूदा भाजपा सरकार ने मीडिया को जो संसाधन उपलब्ध कराए हैं वैसे मध्यप्रदेश के इतिहास में पहले कभी नहीं उपलब्ध थे। इसके बावजूद ये भी सही है कि मीडिया की आड़ में ज्यादातर धन अवांछित तत्वों ने लूटा है। भाजपा सरकार को अब अपने कथित गोदी मीडिया और वास्तविक मीडिया के बीच अंतर करने की समझ विकसित करनी होगी। आगामी चुनावों में यही मीडिया जनता का मार्गदर्शन करेगा और जिसकी कीमत हर जनविरोधी राजनेता को चुकाना पड़ेगी। क्योंकि विचार का कहर बाढ़ नहीं सैलाब लाता है।
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