भोपाल,22 नवंबर,(पीआईसीएमपीडॉटकॉम)। मध्यप्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार अपनी चौथी पारी के लिए जिन महिला वोटों की खेती कर रही है उसके कारण स्त्री प्रताड़ना के मामलों में तो बाढ़ सी आ गई है। संपत्तियों पर कब्जे के लिए महिलाओं की आड़ लेकर धड़ाधड़ मुकदमे दर्ज हो रहे हैं। इनमें वे मामले भी शामिल हैं जिनमें स्त्रियां सचमुच प्रताड़ित हुईं हैं। इसके बावजूद सरकार की सदाशयता का लाभ लेकर ढेरों प्रकरण हर दिन सामने आ रहे हैं। सरकार की नासमझी और कथनी करनी में अंतर से व्यवस्था कैसे चौपट होती है, ये उसका सटीक उदाहरण है। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुलिस मुख्यालय जाकर आपराधिक मामलों की समीक्षा की। हालांकि ये काम गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह का था। पुलिस के जागरूक अधिकारियों ने बढ़ते अपराधों की जो वजहें बताई हैं उनमें मैदान में पुलिस की सक्रियता कम होना तो एक कारण है ही साथ में पुलिस के बीच बढ़ती अड़ीबाजी की घटनाएं भी शामिल हैं।
कुछ समय से पुलिस के मैदानी पदों पर पदस्थापना के लिए चंदे की दरें जिस तरह बढ़ती रहीं हैं उससे पुलिस अपराध रोकने के बजाए खुद अपराध को बढ़ावा देने वाला संगठन बनकर रह गई है। सिपाही से लेकर तमाम मैदानी पदों पर पदस्थापना के लिए तो चंदा वसूला ही जा रहा है साथ में खामोशी से शहरों में जमे रहने के लिए बाकायदा फीस वसूली जाती है। अड़ीबाजी के मामलों की तो हालत ये है कि हवलदार और एएसआई तक इतने पावरफुल हो गए हैं कि वे टीआई या सीएसपी की फटकार को हवा में उड़ा देते हैं।जब जिले के पुलिस अधीक्षक उन पुलिसवालों के विरुद्ध कार्रवाई करते हैं तो वरिष्ठ पुलिस अधिकारी उन्हें रोक देते हैं।इन पुलिस अफसरों के भी सरकार से अच्छे संबंध बताए जाते हैं इसलिए पुलिस मुख्यालय में बैठे अफसर भी लाचारी महसूस करते हैं। सबसे बड़ी बात तो ये है कि खुद मुख्यमंत्री निवास के बाजू में स्थित श्यामला हिल्स थाने से भी अड़ीबाजी का ये काम धड़ल्ले से किया जा रहा है।
हाल में पालीटेक्निक कालेज के एक शिक्षक के विरुद्ध एक महिला ने छेड़खानी की शिकायत श्यामला हिल्स थाने में की। थाने में पदस्थ एएसआई शिवेन्द्र मिश्रा ने शिक्षक के घर जाकर पांच लाख रुपए की मांग की। धमकाते हुए कहा कि उस महिला ने बलात्कार की शिकायत की है। यदि तुमने पैसे नहीं दिए तो फिर जेल जाने के लिए तैयार हो जाओ।उस महिला के दो साथी पहले से गवाही के लिए तैयार थे। आरटीओ दलाल के रूप में काम करने वाले संजय पाठक और रेखा परिहार ने ही उस महिला को घरेलू काम के लिए भेजा था और वे ही थोड़ी देर बाद थाने ले गए। रिश्वत का दबाव बनाने के लिए दोपहर में मीडिया के कुछ कैमरामेनों को भी पुलिस ने बुला लिया और शाम के अखबारों में मुकदमा दर्ज होने की सूचना भी दे दी। जबकि खुद पुलिस ने अपने रिकार्ड में शाम को मुकदमा दर्ज होना दिखाया है।
ये गिरोह पुलिस के निर्देश में कई अन्य लोगों पर भी अड़ीबाजी का काम कर चुका है। रिश्वत की वसूली खुद पुलिस का एएसआई शिवेन्द्र मिश्रा करता है। जबकि गिरोह के सद्स्यों को सरकार से मिलने वाले हर्जाने की राशि और बाद में समझौते के नाम पर वसूली के लिए तैयार किया जाता है। इस घटना की जानकारी पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को भी दी गई लेकिन सभी लाचार थे। कई बड़े अफसरों ने तो टीआई से भी कहा कि मामले की पूरी छानबीन करके प्रकरण दर्ज करो लेकिन एएसआई ने तब तक प्रकरण दर्ज करके चालान भी अदालत में प्रस्तुत कर दिया। ये बात सही है कि अदालत में ये प्रकरण नहीं टिकेगा।साक्ष्य और परिस्थितिजन्य स्थितियों के बीच आरोपी खुद को बेगुनाह साबित कर लेगा,लेकिन तब तक वो अदालतों के चक्कर ही काटता रहेगा। इस तरह के एक नहीं सैकड़ों प्रकरण प्रदेश भर में रोज दर्ज किए जा रहे हैं। महिला अपराधों के मामलों में यदि पुलिस प्रकरण दर्ज नहीं करती है तो उसे दंड का भागी बनना पड़ता है ये भय दिखाकर अड़ीबाज पुलिस वाले दिल से प्रकरण दर्ज करने में जुट गए हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद को सख्त दिखाना चाहते हैं लेकिन उनकी पुलिस सरकार की असफलताओं को करीब से देख रही है। सरकार के कथित भ्रष्टाचारों की पोल भी सबसे पहले पुलिस के सामने ही खुलती है। इससे पुलिस की अड़ीबाजी की प्रवृत्ति खुलकर सामने आ रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गृहमंत्री भूपेन्द्र सिंह, डीजीपी ऋषि शुक्ला और तमाम बड़े अधिकारी पुलिस सुधार के नाम पर बैठकें कर रहे हैं। निर्देश जारी कर रहे हैं लेकिन हकीकत में जमीन पर स्थितियां पूरी तरह विपरीत हैं। पुलिस सड़कों पर गश्त लगा रही है। मैदानी अफसरों को कहा गया है कि अपराधियों की छानबीन करो ताकि जनता को पुलिस की मौजूदगी का भरोसा हो सके। लेकिन पुलिस को मैदान में उतारना अपराधों को और भी बढ़ाने की वजह बन रहा है। पुलिस के कामकाज का आकलन करने की व्यवस्था धराशायी होने से बदमाश पुलिस वाले तो मजा मौज कर रहे हैं जबकि हम्माली वाली ड्यूटी ईमानदार पुलिस वालों के पल्ले पड़ रही है।
गृहमंत्री भूपेन्द्रसिंह पुलिस महकमे के बजाए परिवहन महकमे की व्यवस्थाएं संभालने में ज्यादा रुचि रखते हैं। उन पर सरकार की मैदानी व्यवस्थाएं संभालने की भी जवाबदारी है। मुख्यमंत्री के चहेते मंत्री होने के नाते उन्हें हर काम की आजादी भी मिली हुई है। इसके बावजूद पुलिस मुख्यालय के अफसरों ने उनके आदेशों के बजाए सीधे मुख्यमंत्री के आदेशों पर अमल करने की नीति अपना रखी है। यही वजह है कि गृहविभाग पर सीधे मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है।
पुलिस मुख्यालय के आला अफसर भी दबी जुबान से इन स्थितियों को बयान कर रहे हैं। लेकिन उनका कहना है कि बढ़ते अपराधों की वजह पुलिस नहीं बल्कि सरकार की असफलताएं हैं। अपने लंबे कार्यकाल में सरकार रोजगार के साधन नहीं बढ़ा सकी है। आधारभूत ढांचे के विकास के नाम पर सरकार ने भारी धन व्यय किया है लेकिन इसका असर निचले स्तर तक नहीं पहुंचा है। चंद उद्योगपतियों की गिरफ्त में होने के कारण भारी बजट का अधिकांश हिस्सा बाजार में पहुंचने के बजाए सीधे उद्योगपतियों के खातों में पहुंचा है। अधिकतर उद्योगपतियों का जुड़ाव राष्ट्रीय नेताओं और प्रदेश के बाहर के औद्योगिक घरानों से है इसलिए मुनाफे की रकम भी प्रदेश में खर्च नहीं की गई है। प्रदेश पर कर्ज बढ़ा जिससे ब्याज भी बढ़ता गया है। नतीजतन आर्थिक अपराधों की संख्या में भारी इजाफा हो रहा है। किसानों की दुर्दशा और सरकार के शहरीकरण के अभियानों ने भी व्यवस्था को चौपट कर दिया है।
भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपने कुशल संगठन के भरोसे चौथी बार भी सत्ता में आने की तैयारी कर रही है। जबकि प्रमुख विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस आज भी मैदान में धराशायी है। उसका न तो संगठन है और न ही उसके नेताओं में कोई सुरताल है। मैदान में लंबे समय से पदस्थ अफसरों ने जब महसूस कर लिया कि सरकार का हर काम चंदे से जुड़ा है तो उन्होंने अपनी मनमानी शुरु कर दी है। जिसका नतीजा बढ़ते अपराधों के आंकडों से साफ महसूस किया जा सकता है। सरकार अपराध पर नियंत्रण के लाख दावे करे लेकिन आने वाले समय में अपराधों की ये परिपाटी और भी तेजी से बढ़ती महसूस होगी।
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