भोपाल,(पीआईसीएमपीडॉटकॉम)।नीति आयोग की पहल पर मध्यप्रदेश को प्रयोगभूमि बनाने वाली भावांतर भुगतान योजना किसानों के शोषण और लूट का हथियार साबित हो रही है। लगातार संशोधनों के बाद योजना का मूल उद्देश्य कुचल गया है और अब इसने मंडियों में माफिया के हाथ मजबूत कर दिए हैं। बाजार से सरकार का नियंत्रण छूट गया है और मंडियों का प्रशासन व्यापारियों से गठजोड़ करके किसानों की फसलों से भारी कमीशन कबाड़ रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार इस कुशासन के सामने लाचार साबित हो रही है।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के अध्यक्ष पं.शिवकुमार शर्मा इसे किसान हितैषी होने का पाखंड रच रही शिवराज सिंह सरकार की असफल योजना बता रहे हैं। उनका कहना है कि इस योजना के माध्यम से किसानों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। उनका कहना है कि इस योजना की असफलता के कारण किसान आगे बढ़कर सरकार के खिलाफ आंदोलन पर उतारू हो गए हैं। जब खुद मुख्यमंत्री, उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी, पार्टी और किसान कल्याण विभाग किसानों को इस योजना से सहमत नहीं करा पाए तो प्रमुख सचिव स्तर के 25अधिकारियों को मंडियों में भेजा जा रहा है। वे भी किसानों के आक्रोश को नहीं रोक पा रहे हैं और राधेश्याम जुलानिया जैसे अफसर अब किसानों को मजदूरी करने की सलाह देने लगे हैं।
दरअसल अपने सबसे बड़े वोट बैंक किसान को खुश करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने योजना आयोग की इस योजना को पहली बार मध्यप्रदेश में लागू किया है। जबकि इससे पहले इस योजना का पायलट प्रोजेक्ट गोवा में लागू किया गया था। जब व्यावहारिक कठिनाईयां सामने आईँ तो सरकार ने आनन फानन में संशोधन किए और पंद्रह संशोधनों के बाद भी मंडी माफिया पर लगाम लगाना संभव नहीं हो पाया है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि किसानों की फसलों को सीलिंग सीमा में बांधकर रखा गया है। जिसके चलते अधिक फसलें उपजाने वाले किसानों की फसलें औने पौने दामों पर मंडी माफिया छीन रहा है।
खुद को किसान हितैषी बताने वाली शिवराज सिंह चौहान की सरकार की नीतियों से एक ओर जहां किसान को उसकी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है वहीं आम नागरिकों को कृषि उत्पादों के लिए मंहगी कीमत चुकानी पड़ रही है। किसानों के शोषण की नींव एक दशक पहले ही पड़ गई थी। जब शिवराज सिंह चौहान सरकार ने मंडी एक्ट पारित करके किसानों पर अपरोक्ष नियंत्रण करने का प्रयास किया था। पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकार के मंडी एक्ट में किसान अपने वोट से मंडियों के अध्यक्ष का चुनाव करता था। जबकि एक में संशोधन के बाद मंडी अध्यक्ष के पद करोड़ों रुपयों में बिकने लगे। यानि जिस किसान के पास ऋण पुस्तिका है वो केवल अपने वार्ड के सदस्यों का चुनाव करते हैं. अब ये वार्ड मेंबर मिलकर अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। इस अप्रत्यक्ष चुनाव से मंडियों पर माफिया की सत्ता स्थापित हो गई है। अब जबकि मंडियों में पदाधिकारी और व्यापारी मिलकर किसानों की फसलों को लूटने लगे हैं तब एक्ट में बदलाव के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं।
सबसे बड़ी बात तो ये है कि मंडियों के इस माफिया ने सरकारी तंत्र के नेफेड(भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ मर्यादित) जैसे संगठनों को भी अपने कब्जे में ले लिया है। पिछली फसल की खरीद के दौरान नेफेड ने किसानों से एक जिले में लगभग90 हजार क्विंटल मूंग 2022 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदी थी। जब किसान आंदोलन के बाद दबाव में आई सरकार ने घोषणा की कि वो किसानों की फसलों को खरीदेगी तो नेफेड ने वही दाल व्यापारियों को बेच दी। व्यापारियों ने वही दाल सरकार को 5250 रुपए की दर पर बेच दी। इस तरह फसलों की बार बार खरीदी बिक्री ने आढ़तियों और माफिया को तो लाभ पहुंचाने के लिए सरकार को चूना लगाया है। राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के नेता पं. शिवकुमार शर्मा कहते हैं कि सरकार को झूठी शान छोड़कर इस योजना को तत्काल बंद करना चाहिए, तभी किसानों को माफिया के चंगुल से छुड़ाया जा सकता है।
इस योजना को लेकर जो भ्रम फैले हैं उनके चलते किसान योजना में अपना पंजीयन नहीं करा पा रहे हैं। सरकार ने पंद्ह दिनों का समय बढ़ाकर आधार कार्ड, समग्र आईडी, फोटो, खसरे की प्रति, और ऋण पुस्तिका जैसे दस्तावेजों के आधार पर पंजीयन कराने के निर्देश दिए हैं पर इससे फर्जी किसानों का पंजीयन तो हो गया पर जरूरत मंद छोटा किसान अब भी वंचित ही रह गया है। मजबूरन सरकार को फसलों के रिकार्ड खंगालना पड़ रहे हैं कि खाद्यान्न लेकर मंडी में आने वाले किसान के पास जमीन है भी या नहीं। या फिर उसने वह खाद्यान्न खेत में बोया भी है या नहीं।
मंडी एक्ट में स्पष्ट प्रावधान है कि सरकार व्यापारी से जो खाद्यान्न खरीदेगी उसका भुगतान वो उसी दिन कर देगी। इसके विपरीत सरकार ने किसान को तीन महीने में भुगतान करने का वादा किया है जो सीधे तौर पर मंडी एक्ट का उल्लंघन है। प्याज, मूंग, उड़द और तुअर जैसी फसलों के भुगतान किसानों को छह महीनों में भी नहीं किए गए हैं जिससे किसानों में नाराजगी बढ़ती जा रही है।
मोदी सरकार ने सत्ता में आने के लिए किसान को उसकी फसल के पचास फीसदी हिस्से पर लाभकारी मूल्य देने का वायदा किया था।अब जबकि उसकी ही एक प्रदेश सरकार भावांतर योजना पर किसानों को मंडी माफिया से नहीं बचा पा रही है तब मोदी सरकार खामोश है और विपक्षी राजनीतिक दलों के लिए ये योजना एक अच्छा राजनीतिक हथियार साबित हो रही है।
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