
-आलोक सिंघई-
बैंगलुरु की पत्रकार गौरी लंकेश की हत्यारे अभी पुलिस गिरफ्त में नहीं आए हैं। आरएसएस के क्षेत्रीय प्रचारक वी नागराज इस नृशंस हत्या पर अपना विरोध जता रहे हैं। इसके बावजूद कांग्रेस और वामपंथियों के समर्थक इसे विचारधारा की हत्या बताने में जुट गए हैं। विरोध का बाजार गर्म देखकर भाजपा के विरोध की पत्रकारिता करने वाले मीडिया कर्मी भी मैदान में कूद पड़े हैं। उन्हें गौरी लंकेश की हत्या से इतनी बैचेनी नहीं है जितना उन्हें देश में भाजपा के प्रति बढ़ते जन समर्थन ने परेशान कर दिया है। इसलिए वे इसे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के उस अभियान से जोड़कर दिखा रहे हैं जिसमें उन्होंने कार्यकर्ताओं के सामने 350 से अधिक सीट जीतने का लक्ष्य रखा है। गौरी लंकेश के माध्यम से वे कह रहे हैं कि भाजपा अपने विरोधी विचारधारा को कुचलने के लिए अब पत्रकारों की हत्याएं तक कराने लगी है।
इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए आक्रामक रणनीति अपना रही है। वह खुद के विस्तार के साथ साथ कांग्रेस मुक्त भारत की बात भी खुलेआम कहती है। इसके बावजूद गांधी की हत्या के बाद से लगातार कलंक का भार ढोती रही भाजपा हर कदम फूंक फूंककर रख रही है। भले ही गांधी वध करने वाले नाथूराम गोड़से ने वैचारिक प्रतिबद्धता को साकार करने के लिए अतिवादी कदम उठाया हो लेकिन तबसे लेकर आज तक कभी आरएसएस या भाजपा ने गांधी के वध का समर्थन नहीं किया है। गांधी का वध कभी आरएएस के एजेंडे में भी नहीं रहा।आजादी के बाद से देश में कांग्रेस की सरकारें रहीं हैं इसके बावजूद कभी ये साबित नहीं हो पाया कि गांधी का वध आरएएस की रणनीति का हिस्सा था। ये सब जानते बूझते सत्ता पर बैठी कांग्रेस की चरण वंदना करने के लिए ढेरों कथित बुद्धिजीवी भाजपा और आरएसएस को दक्षिणपंथी और गांधी के हत्यारे बताते रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं गांधी के गुजरात से आते हैं। वे बरसों से कांग्रेस के इस दुष्प्रचार के वार झेलते रहे हैं। इसके बावजूद गुजरात की जनता ने उन्हें अपने कंधों पर बिठाकर देश के शीर्ष तक पहुंचाया है। खुद गुजरात दंगों पर आरोप लगाने वाले आज तक मोदी को हत्यारा बताने में नहीं चूकते। जबकि अदालतों में कई बार साबित हो चुका है कि गुजरात दंगों के लिए मोदी दोषी नहीं हैं। तीस्ता सीतलवाड़ जैसी कथित समाजसेविका जिसे वामपंथ की आड़ में कांग्रेस पोषित करती रही है उसे भी भाजपा ने आज तक नहीं मारा। जबकि उसके खिलाफ अमेरिकी फोर्ड फाऊंडेशन से चंदा लेने और लोगों से धन जुटाने के आरोप लगे हैं। कांग्रेस की सरकारें लंबे समय से उसके एनजीओ को फंडिंग करती रहीं हैं। उनका एकमात्र लक्ष्य भाजपा के प्रति दुष्प्रचार अभियान चलाना है। कहने को तो तीस्ता सीतलवाड़ भी पत्रकार हैं लेकिन उनकी सुपारीखोर पत्रकारिता को देश की मुख्यधारा की पत्रकारिता ने कभी खबर से आगे नहीं स्वीकार किया है।
ऐसा ही कुछ कर्नाटक की स्वर्गीय गौरी लंकेश कर रहीं थीं। उनके पिता पी. के लंकेश ने लंकेश पत्रिका नाम से टेब्लायड अखबार शुरु किया था जिसे अब गौरी प्रकाशित करती थीं। इस अखबार की आय पचास लोगों के संगठन पर आधारित थी। इन पचास लोगों में जाहिर है ज्यादातर भाजपा विरोधी ही थे। इस तरह गौरी लंकेश की पत्रकारिता सामाजिक संवाद पर आधारित नहीं बल्कि संघ और भाजपा के विरोध पर आधारित थी। जाहिर है जब आप किसी एक विचारधारा के मुखपत्र बन जाते हैं तो अपने विचार को ज्यादा सफेद बताने के लिए आप सच को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करने लगते हैं। यही वजह थी कि 2008 में लिखे गए उनके एक आलेख को भाजपा के सांसद प्रहलाद जोशी ने अदालत में चुनौती दी। अपने आलेख को गौरी अदालत में सच साबित नहीं कर पाईं और उन्हें छह महीने की जेल और जुर्माने की सजा सुनाई गई। हालांकि वे जमानत पर रिहा भी हो गईं पर इस मामले की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ते हुए वे संघ भाजपा के खिलाफ कुछ ज्यादा ही तीखा लिखने लगीं थीं।
उनके संपादकीय का हिंदी में अनुवाद करके देश भर में विचारधारा की हत्या का शोर मचाने वाले पत्रकारों ने निहायत ही गैर जिम्मेदारी भरा रवैया अपनाया है। ये बात सही है कि गौरी लंकेश यदि किसी खास विचारधारा की पैरवीकोर थीं तो ये उनका निजी मामला था। जो उनके विचारों से सहमत नहीं थे वे उस विचारधारा को दरकिनार कर ही तो रहे थे। ये भी संभव है कि उनके तीखे लेखों की धार से आहत होकर किसी सिरफिरे ने हत्याकांड जैसा कदम उठाने की रणनीति अख्तियार कर ली हो। लेकिन अभी सिर्फ अनुमानों के आधार पर फतवे जारी करने लगना किसी भी तरह से उचित नहीं माना जा सकता।कौआ कान ले गया की आवाज सुनकर धरने प्रदर्शन करने चल पड़े पत्रकारों की समझ भी इस घटना से कटघरे में आ रही है।भोपाल में तो इस गौरी की हत्या का विरोध करने वाले ज्यादातर पत्रकार सरकार की निगाह में आने के लिए मैदान में उतरे।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने पुलिस आयुक्त टी सुनील कुमार को साफ निर्देश दिये हैं कि इस मामले की जांच करके दोषियों को दंडित कराया जाए। खुद गौरी के भाई इंद्रजीत ने मामले की जांच सीबीआई से कराए जाने की मांग की है।कर्नाटक की पुलिस देश के चुस्त संगठन के लिए जानी जाती है। देर अबेर हत्यारे जरूर पकड़े जाएंगे और उन्हें दंडित भी किया जाएगा। तब इस हत्या पर से पर्दा उठेगा।
केरल में तो आरएसएस के कार्यकर्ताओं की हत्याएं बाकायदा चेतावनी देकर की जाती रहीं हैं। इसके बावजूद वहां की वामपंथी सरकारें इस पाप को लगातार छुपा रहीं हैं। खुद भाजपा शासित राज्यों में विरोधियों की हत्याएं जैसे प्रसंग अब तक सामने नहीं आए हैं। विरोधियों को निपटाने के लिए छापे डालना और मुकदमों में फंसाना जैसी रणनीति तो देश की राजनीतिक पार्टियां कांग्रेस से सीख चुकी हैं पर विरोधियों की हत्याएं कराना जैसे ओछे हथकंडे कोई राजनीतिक दल नहीं अपनाता है। भाजपा को जब दक्षिण के राज्यों में अपने पैर पसारने हैं तब वह दिल जीतने के अभियान में पत्रकार की हत्या कराने जैसा कलंकित कदम कैसे उठा सकती है। जाहिर है इस विषय कपोल कल्पनाओं के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाना जल्दबाजी होगी।कम से कम इसे पत्रकारिता तो नहीं ही कहा जाएगा।
Leave a Reply