पुस्तक समीक्षा
हमारे दिमाग में जमाने से चली आ रही अपराधों की परिकल्पना में चोरी, डकैती, हत्या, आक्रमण, सेंधमारी, यौन उत्पीड़न आदि का ही समावेश हो पाता है।…
डॉ. हनुमंत यादव
हमारे दिमाग में जमाने से चली आ रही अपराधों की परिकल्पना में चोरी, डकैती, हत्या, आक्रमण, सेंधमारी, यौन उत्पीड़न आदि का ही समावेश हो पाता है। ये अपराध आमतौर पर निम्न आय वर्ग तथा गरीबी से जुड़े रहते हैं। इसके अलावा गरीबी से जुड़ी मनोविकृतियां भी अपराध को जन्म देती हैं। यह मान्यता पुरानी हो गई है कि अपराध मजबूरी में किए जाते हैं तथा भगवान ने जिसको सब कुछ दिया है उसको अपराध करने की जरूरत नहीं पड़ती। आधुनिक पूंजीवाद के उदय के साथ ही अपराध के चरित्र और स्वरूप में परिवर्तन हुआ तथा नए प्रकार के आर्थिक अपराधों का तेजी से विस्तार हो रहा है। नए प्रकार का अपराध सफेदपोश अपराध अपने विविध रूपों में सामने आया। अर्थशास्त्री डॉ. गिरीश मिश्र और राजनीतिशास्त्री डॉ. ब्रजकुमार पांडेय द्वारा लिखित प्रस्तुत पुस्तक इन्हीं धनाढयों और प्रभावशाली लोगों के अपराध के विषय पर केन्द्रित है।
सफेदपोश अपराधी, सुशिक्षित सौम्य और सुसंस्कृत है, लिहाजा उनको समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त है। इन लोगों के अपराध के विषय में अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और अन्यत्र स्थानों के समाजविज्ञानियों द्वारा शोध करके काफी कुछ लिखा गया है। किन्तु अपने देश में इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया था। इस रिक्तता को महसूसकर डॉ. गिरीश मिश्र और राजनीतिशास्त्री डॉ. ब्रजकुमार पांडेय ने सफेदपोश अपराध पर शोध कार्य प्रारंभ किया। उनकी सोच थी कि जब तक देश में सफेदपोश अपराध की जड़ों में नहीं जाएंगे और भ्रष्टाचार के स्वरूप और फैलाव को समझने का प्रयास नहीं करेंगे तब तक जड से उन्मूलन संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने अन्यत्र देशों के समाजविज्ञानियों के शोधग्रंथों के अध्ययन कर भारत में सफेदपोश अपराध के विभिन्न पहलुओं का समग्र शोध करके अंग्रेजी में ”व्हाइट कॉलर क्राइम्स” नामक पुस्तक अंग्रेजी में लिखी जो 1998 में प्रकाशित हुई। हिन्दी के जागरूक पाठकों को अपेक्षा थी कि कुछ ही वर्षों में उक्त पुस्तक का हिन्दी संस्करण का भी प्रकाशन हो जाएगा। किन्तु ऐसा नहीं हो पाया तथा अंग्रेजी न जानने वाले हिन्दी भाषी पाठक उक्त पुस्तक को पढ़ने से वंचित रहे। अंतत: हिन्दी पाठकों की भावनाओं को ध्यान में रखकर एवं जागरूक मित्रों के अनुरोध पर लेखकद्वय ने अद्यतन सामग्री शामिल करते हुए हिन्दी में ”सफेदपोशों के अपराध” पुस्तक लिखी, जो अभी हाल में दानिश बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है। इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए लेखकद्वय डॉ. गिरीश मिश्र और डॉ. ब्रजकुमार पांडेय धन्यवाद के पात्र हैं।
पुस्तक की प्रस्तावना में सफेदपोश अपराध का अर्थ समझाते हुए आम अपराध एवं सफेदपोश अपराध में उदाहरणों सहित अंतर समझाया गया है। इसके साथ ही दोनों प्रकार के अपराधियों के प्रति हमारे समाज का नजरिया भी बताया गया है। सफेदपोशों के अपराध को समाजशास्त्री अल्बर्ट मौरिस ने ”अभिजात्य वर्गीय अपराध” का नाम दिया है। ऊंचे लोगों का गुनाह व्यक्ति और समाज में दोमुंहेपन का सूचक है। यह सफेदपोश अपराधी की कथनी और करनी का अंतर है तो दूसरी ओर अभिजात्य वर्ग के अपराधों को समाज की अनदेखी करनी व मौन स्वीकृति की प्रवृत्ति का भी द्योतक है। उद्योग-व्यवसाय में कारपोरेट क्षेत्र के बढ़ते प्रभाव के साथ ही कारपोरेट अर्थात् संगठित क्षेत्र की सफेदपोश अपराधों की भागीदारी भी लगातार तेजी से बढ़ती जा रही है। कारपोरेट जगत के अपराध को विश्वास हनन के अपराध की संज्ञा दी जा सकती है।
लेखकद्वय के अनुसार धंधे-पेशों के विस्तार के साथ हर क्षेत्र में सफेदपोश अपराध फैल रहा है। चोरी को प्राचीनतम अपराध माना जाता है। गुपचुप तरीके से बिना किसी धमकी या हिंसा को सहारा लिए व्यक्तिगत व सार्वजनिक धन-सम्पत्ति हड़पना चोरी की श्रेणी में आता है। हेराफेरी, भ्रष्टाचार, गबन, घोटाले, सार्वजनिक सम्पत्ति का निजी उपयोग व दुरूपयोग आदि चोरी के विभिन्न स्वरूप हैं। वर्तमान भूमंडलीकरण के दौर में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तनों के फलस्वरूप गैर-परम्परागत चोरी के आयामों का विस्तार हुआ है। पुस्तक में मीडिया की दुनिया, शिक्षा जगत, प्रशासन तंत्र और राजनीति में भ्रष्टाचार अध्यायों के पड़ने से पता लगता है कि सफेदपोश अपराध हमारे देश में हर क्षेत्र में प्रवेश कर गया है, कोई क्षेत्र अछूता नहीं बचा है। धार्मिक पाखंडी लोगों की धार्मिक आस्था व श्रध्दा का फायदा उठाकर देवता का बाना पहन कर शैतान के रूप में कारगुजारियां कर रहे हैं। आश्चर्य है कि पढ़े-लिखे समझदार बड़े लोग भी इनके चंगुल में स्वेच्छा से फंस जाते हैं।
धमकी व हिंसा माफिया की कार्यशैली के अंग होते हैं। जिस संदर्भ में माफिया शब्द का प्रयोग आज किया जाता है उस का उद्भव इटली में हुआ तो कालान्तर में अनेक देशों में फैला। भूमंडलीकरण ने माफिया के राष्ट्रीय सीमाओं से निकलकर विरूव के पैमाने पर अपनी गतिविधियां चलाने को अनुकूल परिस्थितियां पैदा कीं। अब तो यह दूसरे विश्व में फैल चुका है। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है। पुस्तक के अंतिम चार अध्यायों में माफिया के उद्भव, भूमंडलीकरण के प्रभाव तथा भारत में माफिया का विस्तार से वर्णन किया गया है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत में नवपूंजीवाद में राजनेताओं, अधिकारियों और व्यवसायियों- इन तीन वर्ग के श्रीमान लोगों का गठजोड़ से सफेदपोश अपराध फलता-फूलता जा रहा है। उदाहरण के लिए वस्तुओं के भंडार और कीमतों में कानून के तहत फेरबदलकर बेहिसाब मुनाफा कमाना, उच्च सरकारी अधिकारियों द्वारा नियमों की अनदेखी करना, सरकारी धन राशि का अन्यत्र व्यय करना, राजनेताओं द्वारा नियमों को तोड़-मरोड़ कर अपने लोगों का निजी हित करना आदि कुछ उदाहरण हैं।
सरल हिन्दी भाषा में लिखी गई शोध पर आधारित ”सफेदपोशों के अपराध” यह पुस्तक आजादी के बाद, विशेषकर नवउदारवादी चिंतन को अंगीकार करने के बाद, भारत में क्या हुआ और क्या हो रहा है, को समझने में मददगार होगी। जो अध्येता सफेदपोश अपराध पर आगे शोध कार्य करना चाहते हैं उनके लिए यह पुस्तक उपयोगी संदर्भ ग्रंथ साबित होगी।
पुस्तक: सफेदपोशों के अपराध
लेखक द्वय:गिरीश मिश्र एवं ब्रजकुमार पांडेय
प्रकाशक: दानिश बुक्स
25 सी, स्काइलार्क 450 रूअपार्टमेट्स
गाजीपुर, दिल्ली-110096
मूल्य: 450 रूपए
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