जीएसटी एक क्रांतिकारी आर्थिक सुधार

bharatchandra nayak

भरतचन्द्र नायक…..

भारतीय संसद ने वस्तु एवं सेवा कर विधेयक (जीएसटी) पर अपनी मोहर लगाकर आर्थिक उदारीकरण के पश्चात् आजादी के बाद एक ऐतिहासिक आर्थिक सुधार किया है। यह वास्तव में भारतीय अर्थव्यवस्था में विकासोन्मुखी बदलाव लाकर गेम चेंजर सिद्ध होगा, जिसे चलतू भाषा में पाशा पलटना कहते है। इससे ‘वन इंडिया-वन मार्केट’ की कल्पना साकार होने के साथ ही घरेलू उत्पादन पर आयात की जो मार पड़ रही है, उससे भी मुक्ति मिलेगी। आर्थिक विश्लेषक छोटी कारें महंगी और विलासितापूर्ण मंहगी कारें सस्ती होने का जो फार्मूला बता रहे है, वह एक अंकगणितीय तथ्य अवश्य है, लेकिन सरकार की मंशा आम आमदी की दैनंदिन जीवन से जुड़ी वस्तुएं जीएसटी की परिधि से बाहर रखने से जीएसटी आम आदमी को उपभोक्ता सामान मंहगा पड़ने में चेक एंड बेलेंस का काम करेगी। कारों की कीमत के बारें में तो सीधी बात है कि जीएसटी की दर यदि 16 से 18 के बीच स्थिर होती है तो सस्ती कार पर लगने वाला 8 से 10 प्रतिशत का टैक्स बढ़ जायेगा और बड़े वाहनों पर 20 से 22 प्रतिशत टैक्स 18 प्रतिशत पर स्थित हो जायेगा। लेकिन इससे चुनिंदा खरीददार ही प्रभावित होंगे। आम आदमी प्रभावित होने वाला नहीं है। उदाहरण के तौर पर पिछड़ेपन से ग्रसित राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश उपभोक्ता राज्य है, इनकी अर्थव्यवस्था पर इससे अनुकूल असर पड़ेगा। उपभोक्ता राज्यों में कर संग्रह अधिक होगा। क्योंकि मौजूदा हाल में उपभोक्ता राज्य 20 से 30 प्रतिशत कर चुकाते है, वह घटकर 16 से 18 जो भी निर्धारित होगा रह जायेगा। कर का परिमाण निर्धारित करके का काम जीएसटी परिषद करेगी। जीएसटी के प्रभावी होने पर कराधान प्रशासन की मुश्किले आसान होने के साथ प्रामाणिकता और गुणवत्ता में अनुकूल बदलाव आयेगां जीएसटी की दोहरी माॅनीटरिंग, राज्य और केन्द्र द्वारा किये जाने पर जो चिंता जतायी जा रही है, वह निर्मूल साबित होगी। अलबत्ता, राज्य और केन्द्र के बीच एक स्वस्थ स्पर्धा आरंभ होगी।

जीएसटी दर निर्धारित करते समय राजस्व संग्रह, टैक्स प्रशासन के सरलीकरण, टैक्स वसूली में प्रोत्साहन और मुद्रा स्फीति में वृद्धि न हो इस बात ऐहतियात बरता जाना है, जिससे भारत में लगने वाला जीएसटी अन्य देशों की तुलना में भारी न होकर न्याय संगत हो। सामाजिक दृष्टिकोण एवं आमजन की उपयोगिता को देखते हुए जीएसटी कव्हरेज में वस्तुओं को लाया जाना चाहिए। जीएसटी से मुक्ति वाले आइटमों का निर्धारण निहित स्वार्थ के बजाय सामाजिक उपयोगिता के आधार पर अपेक्षित होगा तथा गरीबों की आवश्यक वस्तुएं दायरें में आने से बरकायी जायेंगी। जीएसटी विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा में पारित किये जाने में भारी विलंब हुआ है, लेकिन ‘अंत भला तो सब भला’। यह भारतीय लोकतंत्र की विजय है। न तो पूर्ववर्ती यूपीए सरकार को दोष दिया जाना चाहिए और न ही मौजूदा एनडीए सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए। लेकिन इस विधेयक ने देश के राजनैतिक दलों को ‘सास भी कभी बहू थी’ की स्थिति से रूबरू जरूर करा दिया है। जो पहले विपक्ष में रहकर विरोध कर रहे थे, सत्ता में पहुंचनें के बाद जीएसटी के लाभ गिना रहे थे। जो प्रणव मुखर्जी और पी. चिदम्बरम पूर्व वित्त मंत्रियों की पेरोकारी पर मजाक उड़ा रहे थे, वे जीएसटी की प्रशस्ति करते दिखे और जो इसे ड्रीम सुधार बता रहे थे वही जीएसटी का मार्ग अवरूद्ध करते देखे गये। गोया देशहित में वक्त पर सुधार में सहमति की राय पर पार्टी हित भारी पड़ता जनता ने देखा और संसद के पावस सत्र में सहमति बनने पर वास्तविक प्रसन्नता व्यक्त की।

मजे की बात यह है कि तमिल राजनीति जीएसटी के विरोध में थी। लेकिन उसने राष्ट्रहित में समर्थन देते हुए देखने के बजाय सदन से वाॅकआउट कर दिया, ‘सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी’। यह भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता का एक नायाब सबूत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में जीएसटी विधेयक पारित होने पर सभी राजनैतिक दलों के सहयोग के लिए आभार व्यक्त करते हुए जो भरोसा सदन को दिया उसमें सबसे महत्वपूर्ण मंहगायी को 4 प्रतिशत पर स्थित करने का है, यह आम आदमी को प्रफुल्लित कर रहा है। जिस मंहगाई के सामने जाने-माने अर्थशास्त्री विश्व अर्थव्यवस्था की देन बता रहे थे उस पर काबू पाने में भारत की क्षमता वास्तव में सराहनीय मानी जायेगी। केन्द्रीय सरकार का दावा है कि आम आदमी, गरीब के इस्तेमाल की सभी वस्तुएं जीएसटी की परिधि में शामिल नहीं की जायेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जीएसटी को ‘ग्रेट स्टेप टूवर्ड ट्रांसफार्मेशन, स्टेप टूवर्ड ट्रांसपरेंसी, गे्रट स्टेप वाई टीम इंडिया’ घोषित करके राजनैतिक सहमति, राजनैतिक दलों के बीच सहयोगी संघवाद, टीम इंडिया की भावना को महिमा मंडित किया है। उपभोक्ता को बादशाह बताते हुए मोदी ने यह भी कहा कि इससे छोटे उत्पादक लाभांवित होंगे और उपभोक्ता को पारदर्शिता की गारंटी मिलेगी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इससे भारत की अर्थव्यवस्था को गति मिलने के साथ भारत दुनिया के कारोबारियों का स्वर्ग बन जायेगा। जब देश में फाईव-एम (मेन, मटेरियल, मशीन, मनी और मेथड) का अधिकतम उपयोग होगा, तब देश में रोजगार के अवसरों का स्वमेव सृजन होगा। एकीकृत कर लगने से राज्यों की आय बढ़ेगी, जिससे विकास का चक्र तेजी से घूमेगा और गरीबी उन्मूलन का अभियान तीव्र गति से आगे बढ़ेगा। आज हम कर वसूली में ही सारा समय गंवा रहे है। मालवाहक वाहन तीसों दिन अधिकांश समय बेरियरों पर खड़े रहकर समय गंवाते है और उनकी गति अवरूद्ध रहने से देश को क्षति होती है। उससे मुक्ति मिलने के साथ जो मेनपाॅवर नाकों पर तैनात रहकर जुगाड़ में लगा रहता है, उसे दीगर उत्पादनशील कार्यों में जुटाया जा सकेगा।

गरीबों के काम आने वाली औषधियों को जीएसटी से बाहर रखने का केन्द्र का इरादा जनोन्मुखी सोच उजागर करता है। जीएसटी संग्रह में टेक्नाॅलोजी का भरपूर उपयोग होने से कारोबार में शुचिता सुनिश्चित करनें में मदद मिलेगी। देश में एनडीए सरकार ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करके कर्मचारी-अधिकारियों की मुराद तो पूरी की है, अब उन्हें नयी कार्य संस्कृति का सबूत देना है। कामचोरी, भ्रष्टाचार देश की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है। जीएसटी जहां कर संग्रह के रूप में देश को प्रचुर धनराशि सुनिश्चित करेगी वहीं नया दिशा बोध भी विकसित करने मंे सहायक होगा। आर्थिक विश्लेषकों का दावा है कि जीएसटी व्यवस्था के तहत जीएसटी का संग्रह आपूर्तिकर्ता उत्पादकों और सेवा प्रदाता द्वारा कर का भुगतान प्रारंभिक बिन्दु पर किया जायेगा। इससे कर संग्रह की लागत कम होगी। जीएसटी प्रभावी होने के बाद जिस राज्य में सामान बेचा जायेगा, उसी राज्य को टैक्स मिलेगा। इससे मध्यप्रदेश जैसे उपभोक्ता राज्यों के पौ-बारह होंगे। मौजूदा अर्थव्यवस्था विकसित राज्यों के पक्ष में है। यह क्रम बदलेगा। गुजरात, महाराष्ट्र, दक्षिणी राज्य तमिलनाडू, कनार्टक जो औद्योगिक रूप से समृद्ध है, उन्हें होने वाला लाभ अब उपभोक्ता राज्यों को मिलने जा रहा है। उनकी तकदीर और तस्वीर बदलने जा रही है। असम राज्य ने संसद में विधेयक पारित होते ही विधानसभा में विधेयक पर मोहर लगा दी। मध्यप्रदेश ने भी 24 अगस्त को सदन का विशेष सत्र बुलाकर जीएसटी की उपयोगिता को रेखांकित कर दिया है। 30 दिन में कमोवेश 15 राज्य विधेयक पर मोहर लगा चुकेंगे। जिससे इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलना आसान हो जायेगा। जीएसटी लागू होने पर निर्मित वस्तुओं के दामों में कमी होगी। लेकिन कितना आर्थिक लाभ होगा यह समय ही बतायेगा। जीएसटी लागू होते ही कई लागू कानून रद्द हो जायेंगे। यदि परिस्थिति ने राज्य को अतिरिक्त कराधान के लिए विवश किया तो राज्य को इसके लिए जीएसटी कौंसिल की शरण लेना पड़ेगी, जिसका सृजन होना फिलहाल शेष है।

एमआरपी लूट का जरिया न बनें

जीएसटी से करों के मकड़जाल में उलझे उद्योगों को राहत मिलेगी। खाद्यान्न, दलहन, शक्कर शून्य दर में रहने से राहत, प्र्रसंस्कृत वस्तुएं मंहगायी का शिकार बन सकती है। दस लाख रू. से कम टर्नओवर दायरे से बाहर होगा। लेकिन जोर का झटका धीरे से कालेधन पर अवश्य लगेगा। सर्राफा में संगठित क्षेत्र सरसब्ज होगा। पुराने स्वर्णाभूषण पर इनपुट कम होगा। जिन 53-54 वस्तुओं पर जीएसटी छूट होगी, उनमें तीन दर्जन से अधिक वस्तुओं के मूल्य कम होंगे। सवाल मौजू है कि एमआरपी अब तक लूट का जरिया बना है, इसका ऐसा फार्मूला तय हो कि उपभोक्ता जान सकें कि इसमें कितना मूल्य कच्चे माल का, कितना मूल्य उत्पादन व्यय और कितना मुनाफा शामिल है। इससे जीएसटी सार्थक होगा और पारदर्शिता सुनिश्चित होगी।

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