भोपाल, 23 दिसंबर(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर) राज्य के वन विभाग ने पिछले कुछ सालों में जिस तरह से वन मेलों का आयोजन किया है,उसके सकारात्मक नतीजे सामने आने लगे हैं। जंगलों से लघुवनोपज एकत्रित करने वाले वनवासी हों या बीज बैंक बनाकर खेती को बढ़ावा देने वाले आदिवासी सभी ने प्रोत्साहन पाकर अपना कारोबार विकसित कर लिया है। इनमें से कुछ तो अपना माल विदेशों में भी भेजने लगे हैं। वनमेलों के आयोजन से आम जनता का रुझान भी जड़ी बूटियों की ओर बढ़ा है और इनकी खपत स्थानीय बाजार में भी बढ़ती जा रही है।
जड़ी बूटियों का एक्सपोर्ट करने वाले इटारसी के बनवारी राठौर ने बताया कि शुभांशु हर्बल्स नाम से उन्होंने एक फर्म बनकर जड़ी बूटियों का एकत्रीकरण और विपणन शुरु किया था। आज उनका माल पूरी दुनिया के कई देशों में बिक रहा है। उनकी सर्वाधिक कमाई डालरों में हो रही है जिसकी वजह से वे अपने कारोबार को बढ़ाने में सफल हुए हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास एनपीओपी, एनोडी, एफएफएल, और इयू जैसे आवश्यक आर्गेनिक सर्टिफिकेट हैं। वे विश्व की सभी बड़ी मंडियों में अपना माल बेच सकते हैं। इस कारोबार से उन्होंने सैकड़ों वनवासियों और किसानों को आत्मनिर्भर बनाया है। वे हर साल मुंबई में भी इसी तरह के वन मेले में शामिल होते हैं। यहां सतपुड़ा और विंध्याचल पर्वतों से एकत्रित कराई गई जड़ी बूटियों की बहुत डिमांड होती है।वन विभाग ने वन मेलों के आयोजन से उन्हें अपना कारोबार विकसित करने की राह सुझाई थी जिस पर चलकर वे अब एक सफल व्यवसायी बन गए हैं।उनके पुत्र शुभम राठौर ने इस कारोबार को वैश्विक प्लेटफार्म पर स्थापित करने में सफलता पाई है।
जैन महिला गृह उद्योग नामक स्व सहायता समूह की सुजाता जैन ने बताया कि उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए किचिन के जरूरी व्यंजनों को तैयार करने का कारोबार शुरु किया है। उन्होंने बताया कि उनकी कोई दूकान नहीं है लेकिन उनके उत्पाद इतने लोकप्रिय हो रहे हैं कि लोग आनलाईन आर्डर देकर या घर से स्वयं आकर ले जाते हैं। उन्होंने बताया किवे अपना कारोबार महिलाओं की सुविधा को देखकर चलाती हैं जिससे वे अपने घर के कामकाज के बाद बचे समय का उपयोग करके पैसे भी कमा लेती हैं। वन मेले ने उन्हें अपना माल विक्रय करने और लोगों तक पहुंच बनाने के लिए सुलभ मंच प्रदान किया है। वन मेले से हमें लोगों को अपना हुनर दिखाने का मौका मिला है। शहरों में आमतौर पर शुद्ध तेल और छने पानी से निर्मित पापड़ ,खीचले, नमकीन ,केला चिप्स, जीरामन नमक आदि तैयार करना कठिन होता है। ऐसे में हमारे उत्पाद लोगों के लिए सहूलियत साबित होंगे।
अनूपपुर जिले की पुष्पराजगढ़ तहसील के बीजापुरी गांव से आए बीज संरक्षक सेवकराम मरावी ने बताया कि उन्होंने वन विभाग और कृषि विभाग के सहयोग से सामुदायिक बीज बैंक विकसित किया है। इस बीज भंडार में उनके पास भारत के वे तमाम बीज उपलब्ध हैं जिन्हें मूल बीज कहा जाता है। इन बीजों में गुणात्मक सुधार करके ही आज के बीज बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि देशी बीजों के सरंक्षण और संवर्धन से उन्होंने समाज के प्रति अपना दायित्व पूरा करने में सफलता पाई है। उन्होंने बताया कि अब वे इस बीज बैंक को और विशाल रूप प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास काला नमक चावल और लुचई चावल जैसी पारंपरिक बीज भी उपलब्ध हैं। लुचई चावल की किस्म बहुत खुशबूदार होती है और पोषण के मामले में भी बेजोड़ है।
वन मेले के आयोजन में आम जन की बढ़ती भागीदारी ने जल, जंगल, जमीन के साथ मानव सभ्यता के कदमताल को सुरीले संगीत के रूप में विकसित किया है।जिस तरह कांतारा(Kantara) फिल्म ने पिछले साल आम जनमानस का ध्यान आकर्षित किया था उसी तरह वनमेले में आम जनता की रुचि बढ़ती जा रही है। आम जन का जंगलों से दोस्ताना बढ़ाने में ये वन मेला जिस तरह सफल हो रहा है उसे देखकर उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में भारत अपनी प्रचुर वन संपदा का एक नया खजाना बनकर दुनिया में प्रतिष्ठा अर्जित करेगा।
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