भोपाल,16 दिसंबर(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)। मध्यप्रदेश बीड़ी उद्योग संघ के प्रतिनिधि मंडल ने आज मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से भेंट कर बीड़ी उद्योग में रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए कारोबार में आ रही कई तकनीकी अड़चनों को दूर करने का अनुरोध किया। संघ के प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री को बताया कि बीड़ी श्रमिकों को श्रम कानूनों का लाभ दिलाने के लिए बीड़ी निर्माताओं को राज्य की ओर से आवश्यक संरक्षण प्रदान किया जाए। इससे श्रमिकों को साल भर रोजगार देने वाले इस कारोबार से प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाया जा सकेगा।
विधानसभा के मुख्यमंत्री कक्ष में उन्होंने डाक्टर मोहन यादव को बताया कि बरसों से इस उद्योग को अनदेखा किए जाने की वजह से पूरा कारोबार अराजकता का शिकार हो गया है। बीड़ी उद्योग संघ के सचिव श्री अर्जुन खन्ना के नेतृत्व में मिले प्रतिनिधि मंडल ने बताया कि बीड़ी निर्माण एक श्रम आधारित कुटीर ग्रामोद्योग है, जिसमें न्यूनतम पूंजी और बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है। संघ ने बताया कि प्रदेश के जंगलों से प्राप्त होने वाले अच्छी गुणवत्ता के तेंदूपत्ते से बीड़ी उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। प्रति मानक बोरी तेंदूपत्ते पर सब्सिडी बढ़ाकर श्रमिकों का भी भला किया जा सकता है। प्रति मानक बोरी तेंदूपत्ते पर सब्सिडी बढ़ाने से मध्यप्रदेश बीड़ी निर्यात की अपनी खोई विरासत दुबारा हासिल कर सकता है।
संघ के प्रतिनिधियों ने बताया कि उत्पादन बढ़ाने का प्रोत्साहन देकर राज्य को संगठित और स्थायी बीड़ी उत्पादन के केन्द्र के रूप में मजबूती से खड़ा किया जा सकता है। तेंदूपत्ता की स्थानीय खपत बढ़ने से प्रदेश में ही पूंजी का उत्पादन बढ़ाया जा सकेगा। बीड़ी का स्थानीय निर्माण होने से बेरोजगारी की समस्या का समाधान भी किया जा सकेगा। मुख्यमँत्री डाक्टर मोहन यादव ने प्रतिनिधि मंडल को आश्वासन दिया कि राज्य सरकार बीड़ी उद्योग संघ के सुझावों पर अमल करने के लिए आवश्यक सुधार लागू करेगी।
गौरतलब है कि राज्य में तेंदूपत्ते का राष्ट्रीयकरण के साथ ही छोटी सिगरेट को बढ़ावा मिलने की वजह से राज्य का बीड़ी उद्योग अन्य राज्यों में पहुंच गया था। इससे स्थानीय रोजगार घटा था और सिगरेट कंपनियों का मुनाफा बढ़ गया था। कांग्रेस की पूर्ववर्ती अर्जुनसिंह की सरकार ने श्रमिकों को अधिक मजदूरी का प्रलोभन देकर खूब वाहवाही बटोरी थी। राज्य का बीड़ी उद्योग समाप्त हो जाने की वजह से स्थानीय श्रमिकों का रोजगार छिन गया था। अन्य राज्यों में ट्रांसफर हुए बीड़ी उद्योग की वजह से उन राज्यों में तो श्रमिकों को लाभ होने लगा लेकिन यहां के मजदूर लाचार हो गये थे। धीरे धीरे तेंदूपत्ते की चोरी बढ़ी और स्थानीय स्तर पर स्थापित ब्रांडों की और बगैर लेवल वाली नकली बीड़ी का निर्माण बढ़ गया था। इससे राज्य को टैक्स के रूप में होने वाली आय भी प्रभावित हुई थी और अपंजीकृत मजदूरों को श्रम कानूनों का लाभ मिलना भी बंद हो गया था।
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