प्रकाश चंद्र गुप्ता ने पीएनबी के अफसरों को कैसे ठगा


भोपाल, 29 अक्टूबर,(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर).पंजाब नेशनल बैक से बत्तीस लाख रुपयों की ठगी करके दुगुने रुपए वसूल करने वाले ठग प्रकाश चंद्र गुप्ता को बचाने में किस तरह कानून के रखवालों ने ही अपनी भूमिका निभाई इसकी कथा आधुनिक ठगों की कार्यप्रणाली का नमूना बन गई है । इसका अध्ययन अब कानून के विशेषज्ञ भी कर रहे हैं ।कूट रचित दस्तावेजों के आधार पर कानून की आड़ लेकर गुप्ता ने इस बार केनरा बैंक की मैनेजर को अपना शिकार बनाया है । पंजाब नेशनल बैंक की कथा पढ़कर गुप्ता के आपराधिक चरित्र को आसानी से समझा जा सकता है।

पंजाब नेशनल बैंक का वो वसूली नोटिस जिसमें प्रकाश चंद्र गुप्ता की रखैल रीना गुप्ता और उसके पिता शंभुदयाल मालवीय की गिरवी रखी संपत्तियों का उल्लेख है.


भोपाल के मेसर्स बूटकाम सिस्टम्स के प्रोप्राईटर प्रकाश चंद्र गुप्ता ने पंजाब नेशनल बैंक की हबीबगंज शाखा से नकद उधार खाते और ओवरड्राफ्ट के जरिए बत्तीस लाख रुपए का ऋण लिया था। इस लोन को चुकाने से बचने के लिए गुप्ता ने अनेकों हथकंडे अपनाए । वर्ष 2006 में बैंक ने लिए गए लोन की वसूली के लिए जब पत्राचार किया तो गुप्ता ने बैंक में जाकर 15 अप्रैल 2006 को दो लाख रुपए जमा कराए । बैंक की जमा पर्ची भरते समय गुप्ता ने जालसाजी करते हुए ग्राहक की जमा पर्ची पर हेरफेर करते हुए दो लाख को बत्तीस लाख रुपए बना लिया। जिस पर बैंक सील लगा चुका था। बैंक की काऊंटर फाईल में मात्र दो लाख रुपए की इंट्री लिखी गई थी। स्वयं प्रकाश चंद्र गुप्ता ने बैंक की शाखा में जाकर शाखा प्रबंधक सुधीर शर्मा को दो लाख रुपए दिए जिसकी रसीद उन्होंने स्वयं सील लगाकर गुप्ता को दी थी। इसने आपराधिक षड़यंत्र करते हुए दो लाख को अपनी पर्ची पर बत्तीस लाख बना लिया और परची सुरक्षित रख ली। जब बैंक ने बत्तीस लाख रुपयों में से दो लाख रुपए काटकर ब्याज समेत लगभग चालीस लाख रुपयों की वसूली के लिए पत्र लिखा तो गुप्ता अपनी कूटरचित जमा पर्ची दिखाते हुए बैंक के ऊपर दबाब बनाया कि वह बत्तीस लाख रुपए नकद जमा कर चुका है इसलिए उसे नोड्यूज प्रमाण पत्र प्रदान किया जाए। तब बैंक को अपने साथ की गई धोखाघड़ी का पता चला।


शातिर प्रकाश चंद्र गुप्ता ने अपनी सोची समझी साजिश को अंजाम देने के लिए बैंक अधिकारियों के विरुद्ध झूठी प्राथमिकी दर्ज करवाने पहुंच गया। उसने बैंक के चार अधिकारियों के खिलाफ सिविल रिकवरी प्रकरण भोपाल जिला न्यायालय में दर्ज करवा दिया। इस ठगी को उसने स्थानीय अखबारों के माध्यम से बैंक की घोखाघड़ी बताना शुरु कर दिया। उसने अपनी परची को सही और बैंक की परची को झूठ बताने के लिए निजी हस्तलिपि विशेषज्ञ एच.एस.तोमर का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया । कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर बैंक के अधिकारियों को कानून और सजा का डर दिखाना शुरु कर दिया। कुछ भ्रष्ट न्यायिक अधिकारियों और एक कर्मचारी नेता के माध्यम से बैंक अधिकारियों को समझौते के लिए तैयार करना शुरु कर दिया। कुछ भ्रष्ट पुलिस के अधिकारियों ने भी बैंक के लोगों को डराया कि उनके विरुद्ध कई अन्य जांच भी शुरु हो सकती हैं। सभी बैंक अधिकारी रिटायरमेंट की सीमा के करीब पहुंच चुके थे। उन्हें भय था कि यदि उनके विरुद्ध ये प्रकरण लंबे समय तक चलता रहा तो उनका रिटायरमेंट में कई अड़चनें आएंगी।


अदालती दबावों और पुलिस व प्रकाश गुप्ता की प्रताड़ना से तंग आकर आखिरकार उन्होंने समझौते के लिए अपनी हामी भर दी। इस प्रकरण में अदालत ने दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते को मान्य करते हुए आदेश पारित कर दिया। इस तरह बैंक अधिकारियों ने उस अपराध के प्रति अपने घुटने टेक दिए जो उन्होंने कभी किया ही नहीं था।ये राशि उन्होंने अपनी जेब से चुकाई। इस तरह कानून की खामियों और पुलिस व न्यायपालिका के अधिकारियों की मिलीभगत से प्रकाश गुप्ता अपराध करने में सफल हुआ।

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