सैडमैप में सेंध लगाकर सरकार गिराने में जुटा नौकरी माफिया

डॉ.नवनीत कोठारीःसत्ता माफिया के दबाव में सरकार के रोजगार अभियान की गति गड़बडा़ई


भोपाल,10 सितंबर(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर).देश में उद्यमिता को जनांदोलन बनाने में जुटे उद्यमिता विकास केन्द्र मध्यप्रदेश (सेडमैप) में एक बार फिर नौकरी माफिया ने घुसपैठ का प्रयास किया है।इस बार सरकारी तंत्र में सेंध लगाने के लिए सरकार में दखल रखने वाले एक संगठन की आड़ ली गई है।सूक्ष्म एवं लघु उद्योग मंत्री चेतन काश्यप को अंधेरे में रखकर रचा गया ये षड़यंत्र कामयाब भी हो सकता था लेकिन जिस तरह इस प्रयास की परतें खुल रहीं हैं उससे सरकार की बदनामी का एक नया शिलालेख तैयार होने लगा है।


इस षडयंत्र का सूत्रधार कथित तौर पर रमन सिंह अरोरा नामक नौकरी माफिया बताया जा रहा है।ये व्यक्ति कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह के बेटे अजय सिंह के केरवा डैम स्थित रिसार्ट टचवुड का व्यवस्थापक भी बताया जाता है। इसने खुद की फर्म रतन एम्पोरियम बना रखी है जो सरकारी प्रतिष्ठानों में सिक्योरिटी गार्ड सप्लाई करने का ठेका लेती है। उसकी ये फर्म कथित तौर पर सरकारी दफ्तरों में फाईलें चोरी करवाने और अफसरों को रिश्वत देकर सरकारी धन को साईफन करवाने में जुटी रहती है।इसी वजह से कई सरकारी संस्थानों ने रीढ वाले अफसरों ने इसे ब्लैकलिस्टेड कर दिया है। खुद को उद्योगपति दर्शाने के लिए इसने कुछ समय पहले एक राष्ट्रीय अखबार से खुद को सम्मानित कराया था तभी से ये अफसरों और नेताओं पर दबाव बनाकर ठेके कबाड़ने की जुगाड़ कर रहा है।बताते हैं कि इसने अपने कई चमचों को प्रदेश के प्रमुख अखबारों में पे रोल पर नोकरी दिलवाई है जिनके माध्यम से ये सरकार को धमकाने के लिए उलटी सीधी खबरें प्लांट करवाता रहता है।


जब इसकी फर्म को फर्जी बिलिंग और सुरक्षा गार्डों के वेतन में चिल्लरचोरी के आरोप में धरा गया तो इसने सूक्ष्म एवं लघु उद्योग विभाग के एक आला अधिकारी को बदनाम करने के लिए एक महिला अधिकारी से अश्लील चैट बनाकर वायरल किया था। इसकी पुलिस जांच हुई तो इसके कर्मचारी ने स्वीकार किया कि रमनवीर अरोरा ने ही उससे ये फर्जी चैट लिखवाया था।इस मामले में पुलिस जांच में सारे तथ्य उजागर हो गए हैं और संभावित जेल यात्रा से ये बुरी तरह बौखलाया हुआ है। इस षड़यंत्र के सूत्र विपक्ष के नेताओं से भी जुड़ रहे हैं इसलिए खुद को बचाने और सरकार को बदनाम करने के लिए इसने पूरा जाल बिछाया है।


रमनवीर की रतन एम्परियम समेत जिन फर्मों और व्यक्तियों को एमएसएमई विभाग की निगरानी में चलने वाले सैडमैप संस्थान ने ब्लैकलिस्ट किया था उन्होंने इस बार सरकार को झांसा देने के लिए एक सांस्कृतिक संगठन से कथित तौर पर जुड़े हुए मंच की आड़ ली है।इस कहानी की पोल तब खुली जब एमएसएमई विभाग के सचिव डॉ.नवनीत कोठारी ने अचानक एक आदेश निकाला जिसमें सैडमैप की ईडी श्रीमती अनुराधा सिंघई(शर्मा) से लगभग सवा लाख पृष्ठों की जानकारी दो दिनों में देने का उल्लेख किया गया था। वे जवाब दे पातीं इसके पहले सचिव ने अनुराधा सिंघई को निलंबन का आदेश थमा दिया। एमएसएमई विभाग के एक जूनियर अधिकारी को आनन फानन में कार्यभार भी दिला दिया गया। इस अधिकारी ने सैडमैप पहुंचकर ईडी से कार्यभार छीन लिया और निगरानी के लिए लगाए गए कैमरे बंद करवा दिए। इस बदलाव को लोकप्रिय फैसला दर्शाने के लिए पर्दे के पीछे से सक्रिय रमनवीर और इसके गेंग में शामिल षड़यंत्रकारियों ने कर्मचारियों के बीच मिठाई बंटवाई और फटाके फोड़े। हालांकि इस असंवैधानिक कदम को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया है और केविएट लगाने पहुंचे सरकारी कानूनविदों को जमकर फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि जब सैडमैप ने सारी कार्रवाई पारदर्शी तरीके से की है और अपने पिछले फैसले में हाईकोर्ट तमाम आरोपों की जांच करके ईडी को क्लीनचिट दे चुका है तब इस आपराधिक षड़यंत्र को छुपाने के लिए सरकार क्यों हाईकोर्ट पहुंच गई।


गौरतलब है कि सैडमैप की ईडी अनुराधा सिंघई एक कुशल कंपनी सेक्रेटरी हैं और उन्होंने मोदी सरकार के मेक इन इंडिया अभियान को सफल बनाने के लिए अपने विभाग की मंशा अनुरूप पचास लाख रोजगार सृजित करने की मुहिम चला रखी है। उन्होंने इतने कम समय में CEDMAP जैसे संगठन को पूरी तरह बदलकर रख दिया है।उनके नेतृत्व में सैडमैप ने आधुनिक प्रबंधन के पारदर्शी तरीकों को अपनाकर वो कर दिखाया है जो पिछले तैतीस सालों के इतिहास में कभी नहीं हो सका था। उसी स्टाफ और वही अधिकारियों को साथ लेकर उन्होंने निजी क्षेत्र को रोजगार विस्तार के लिए आगे लाने में अभूतपूर्व योगदान दिया है।इस कार्य में उनका कंपनी प्रबंधक और कानूनी सलाहकार होने का सुदीर्घ अनुभव काम आ रहा है। मेक इन इंडिया अभियान हो या स्टार्टअप के माध्यम से देश की पूंजी और रोजगार के अवसर बढ़ाने का तरीका सिखाकर वे उद्यमियों को सफल बनाने में कारगर साबित हो रहीं हैं।उनके प्रयासों की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने अपने ही स्वशासी निकाय सैडमैप को भंडार क्रय नियम के अंतर्गत सरकारी विभागों और उपक्रमों के लिए अनुबंध आधारित सेवा कर्मी उपलब्ध कराने को अधिकृत कर दिया है।


जब अनुराधा सिंघई की नियुक्ति की गई थी तो फर्जी बिलिंग और ठगी में धरे गए इस नौकरी माफिया ने आरोप लगाया कि उन्होंने फर्जी दस्तावेज दिए हैं। हाईकोर्ट ने अपनी जांच के बाद आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। जब सैडमैप लगभग बंद होने की कगार पर था और कर्मचारियों को लगभग दस दस महीनों से वेतन नहीं दे पा रहा था तब अनुराधा सिंघई की नियुक्ति की गई थी। इस संगठन को सरकार के बजट में से वेतन और प्रशासनिक खर्च नहीं दिया जाता है। ऐसे में उन्हें एक महीने का वेतन पाने के लिए, पहले पिछले 10 महीनों के लिए सभी कर्मचारियों के लिए राजस्व अर्जित करना था।श्रीमती सिंघई ने कुशल प्रबंधन की तकनीकें अपनाकर नियुक्ति के बाद अगस्त 2021 से ही पूरे स्टाफ को नियमित वेतन दिलवाना शुरु कर दिया। जब तक कर्मचारियों का बकाया भुगतान नहीं हो गया तब तक उन्होंने खुद का वेतन भी नहीं लिया। लगभग चार महीनों बाद उन्होंने खुद का वेतन लेना शुरु किया।


इंडो यूरोपियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (IECCI) और कंपनी सेक्रेटरी प्रैक्टिस में सुश्री अनुराधा सिंघई के 21 वर्षों से अधिक का अनुभव रहा है। ये संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है और वे खुद संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद की विशेष सलाहकार रहीं हैं। उन्हें डब्ल्यूटीओ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में शामिल होने का अवसर भी मिला। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र कार्यालय की ओर से बनाए गए भ्रष्टाचार विरोधी समीक्षा तंत्र के साथ विभिन्न मंचों पर विदेश में 4 बार भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है। कुआलालंपुर, मलेशिया में ड्रग एंड क्राइम (यूएनओडीसी) और आयात संवर्धन केंद्र, हेग, नीदरलैंड। जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में काम कर चुकी इस कंपनी सेक्रेटरी ने न केवल सैडमैप बल्कि प्रदेश के उद्योग जगत में भी सरकार के भरोसे को जीवित करने में योगदान दिया है।


फिलहाल तो सरकारी जांच एजेंसियां अब ये जानने का प्रयास कर रहीं हैं कि सैडमैप को चूना लगाकर खुद का घर भरने वाले षड़यंत्रकारी आर डी मंडावकर, शरद मिश्रा, दिनेश खरे, मनोज सक्सैना, आर के मिश्रा, प्रमोद श्रीवास्तव की संपत्ति उनकी आय से कई गुना अधिक कैसे हो गई । आरोप लगाया गया कि अनुराधा सिंघई ने कई पदों पर जैन लोगों को नियुक्त कर दिया है।श्रीमती सिंघई खुद जन्मजात ब्राह्रण हैं और वे अपनी टीम में केवल ईमानदार और योग्य लोगों का ही चयन करने पर जोर देती हैं। जब सभी आरोप फर्जी और ओछे साबित हुए और अदालती जांच में ये साबित हो गया कि वे एक कुशल प्रबंधन विशेषज्ञ हैं तो उन्हें पद से हटाने के लिए इस बार नया षड़यंत्र रचा गया है।


अनुराधा सिंघई एक परिणाम प्रेरित कुशल शख्सियत हैं । उन्होंने भ्रष्टाचारियों के गिरोह में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया।भ्रष्टाचार के सभी रास्ते जब बंद कर दिए तो CEDMAP के कुछ अत्यधिक भ्रष्ट कर्मचारी उन्हें पद से हटाने में घटिया स्तर के नए षड़यंत्र रचने लगे। अब, जब CEDMAP अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर पहुंच गया है, तो भ्रष्ट लोगों के इस समूह को काली कमाई का भारी स्कोप नजर आने लग गया है। उन्हें लगता है कि CEDMAP उनकी निजी दुकान है।

अनुराधा सिंघई ने अपनी कुशल टीम के माध्यम से CEDMAP के इन भ्रष्ट कर्मचारियों के कई घोटालों और उनकी कार्यप्रणाली को बार बार उजागर किया है। घोटालों का खुलासा होने पर बाकायदा निदेशक मंडल की मंजूरी से इन काली भेड़ों की परियोजनाओं का विशेष फोरेंसिक ऑडिट कराया गया, जिसमें करोड़ों रुपये का घोटाला और गबन पाया गया। ये सभी कार्रवाई पूरे पारदर्शी तरीके से कराई गई जिसके मिनिट्स अब सभी जांच एजेंसियों और अदालत के सामने चीख चीखकर सत्ता माफिया की काली करतूतों की पोल खोल रहे हैं।

कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने कर्मचारियों की हेराफेरी के खिलाफ कई सख्त फैसले लिए थे, कुछ कर्मचारियों को निलंबित और बर्खास्त भी किया गया।सभी भ्रष्टाचारों पर रोक लगायी गई,कर्मचारियों को अपने वेतन के बदले अपना दायित्व पूरा करने के लिए जवाबदेह बनाया गया। इससे नौकरी माफिया को रिश्वत देकर भर्ती हुए मक्कार कर्मचारियों ने कपोल कल्पित बातें करनी शुरु कर दीं।कुछ भ्रष्ट मीडिया कर्मियों को मिलाकर बदनामी का बवंडर खड़ा किया गया जो बार बार जांच की कसौटियों पर औंधे मुंह गिरता रहा है।


सभी सरकारी एजेंसियों ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त और फिर हाईकोर्ट में सवाल उठाए गए,आरोप लगाए गए। जांच में वे निर्दोष और बेदाग पाई गईं। हाईकोर्ट ने 2022 और 2024 में ही नियुक्ति में अनियमितता को लेकर उनकी याचिका खारिज कर दी है। झूठी खबरें छाप चुके मीडिया संस्थानों की जब भद पिटी तो वे चुपके से दाएं बाएं होने लगे हैं। एमएसएमई विभाग के सचिव डॉ.नवनीत कोठारी ने जिस अधिकारी को कार्यभार संभालने भेजा है उसने जाते ही वहां से निकाले गए आरडी मांडवकर एवं अन्य अधिकारियों की फाईल निकलवाईं हैं बताया जाता है कि वे संस्थान से निकाले गए भ्रष्ट अधिकारियों को दुबारा नौकरी पर रखवाने का प्रयास कर रहे हैं।


गौरतलब है कि सैडमैप उद्यमियों को प्रशिक्षण देकर उनका परिचय औद्योगिक संस्थानों से करवाता है। इस प्रक्रिया में जिन कर्मचारियों को नौकरी पर रखा जाता है उसका एक तयशुदा कमीशन सैडमैप को मिलता है। इस राशि से ही संस्थान के कर्मचारियों और अधिकारियों का वेतन दिया जाता है। अनुराधा सिंघई ने आते ही कर्मचारियों से किसी भी प्रकार का कमीशन लिया जाना निषिद्ध कर दिया था जिसकी वजह से औद्योगिक संस्थानों को अच्छे और प्रशिक्षित कर्मचारी मिलने की राह प्रशस्त हो गई थी।अब सरकारी नौकरियों में भी गुणवत्ता पूर्ण वर्कफोर्स आसानी से उपलब्ध होने लगा है। कंपनियों ने अपने एचआर डिपार्टमेंट में सैडमैप को सहयोगी बनाकर उससे अपने संस्थानों के अन्य कार्य भी करवाने शुरु कर दिए हैं। जिसकी वजह से संस्थान की आय बढ़ी है। ऐसे में कमीशनखोर नियुक्ति माफिया को लगने लगा है कि वह यहां अब अच्छी कमाई कर सकता है। केन्द्र और प्रदेश की सरकार जब युवाओं को रोजगार मुहैया कराने में हैरान परेशान घूम रही है तब सैडमैप उनके लिए आशा की किरण बनकर उभरा है।ऐसे में यदि नौकरी लगवाने के कार्य में रिश्वतखोरी की परंपरा फिर शुरु कर दी जाएगी तो ये सरकार की बदनामी का कारण तो बनेगी ही साथ में रोजगार दिलाने के सरकारी संकल्प पर भी कुठाराघात करेगी। नौकरी माफिया के माध्यम से विपक्ष तो सरकार गिराने के इस षड़यंत्र में खुलकर सामने खड़ा है,लेकिन एमएसएमई विभाग और सरकार दोनों कई महत्वपूर्ण मंचों पर अपनी जग हंसाई किस मजबूरी के तहत करवा रहे हैं, इसका खुलासा होना अभी बाकी है।

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