कांग्रेस की अराजक सरकारों से मुक्ति के दो दशक बाद तक मध्यप्रदेश किताबी प्रयोगों से गुजरता रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने जिस पंच ज अभियान की नींव रखी थी वह साकार हो पाती इसके पहले ही अंतर्राष्ट्रीय सूदखोरों के एजेंटों ने मध्यप्रदेश की सत्ता हथिया ली थी। बाबूलाल गौर हों या शिवराज सिंह चौहान और थोड़े समय के लिए आए कांग्रेस के कमलनाथ सभी कर्ज आधारित अर्थव्यवस्था के पक्षधर रहे हैं। यही वजह है कि सरकारों का आकलन करने में जनता को खासी परेशानी महसूस होती थी। भाजपाई उन्हें एक तरह से कांग्रेसी ही नजर आते थे। जाहिर है कि जब विकास की अवधारणा कर्ज लेकर घी पीने के सूत्रवाक्य पर टिकी हो तो राज्य की उत्पादकता बढ़ाने की ओर किसका ध्यान जाता।कर्ज लेना और फिर सत्ता के इर्द गिर्द जुटे माफिया के माध्यम से उसे हड़प लेना सरकार की शैली बन गई थी। पहली बार महाकाल ने एमपी में सुशासन के लिए अपने ऐसे भक्त को भेजा है जो सुशासन की पाठशाला में तपकर सामने आया है।
मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज सिंह चौहान ने किसानों का नाम जपना शुरु किया था। एमपी की कृषि ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जो बगैर निवेश किए खासी उत्पादकता देता है। औद्योगिक विकास में तो भारी निवेश करने के बाद भी उत्पादकता की कोई गारंटी नहीं होती। फिर जब उद्योगों को जबरिया थोपा गया हो तब तो वे अपनी स्थापना के समय ही उपसंहार का अध्याय भी लिख देते हैं। ऐसे में प्रदेश को आत्मनिर्भरता की परंपरा की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। शिवराज सिंह चौहान के होनोलुलु शासन से हर कोई खफा था लेकिन कांग्रेस न आ जाए इस भय से सभी खामोश रहते थे। हवाई जहाजों में फुदककर गांव खेड़ों में जाना और मैं हूं न कहकर लोगों को हूल देना कोई शिवराज सिंह चौहान से सीख सकता है।अभी ये भ्रम फैलाया जा रहा है कि मामा के जाने से लाड़ली बहना योजना बंद कर दी जाएगी,जबकि ये तो शासन की योजना है। ये बात लाड़ली बहनों को थोड़े दिनों में जरूर समझ में आ जाएगी।
भाजपा के नेता रघुनंदन शर्मा ने तो शिवराज जी को घोषणावीर का तमगा देकर उनकी कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा दिया था लेकिन अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के समर्थन से उनकी नैया चलती रही। क्या भाजपा और क्या कांग्रेसी सभी उनके समर्थन में खामोश रहे। शिवराज सिंह चौहान विनम्र शासक रहे हैं और बीस सालों बाद भी उनमें अहंकार नहीं पनप पाया है इसी वजह से उनकी सारी नाकामियों पर पार्टी और संगठन दोनों परदा डालते रहे। खोखली ललकार के सहारे उन्होंने सत्ता चलाने की कोशिश जरूर की लेकिन वे शुरु से लेकर अंत तक नौकरशाही और पुलिस प्रशासन पर लगाम नहीं लगा सके।
भारतीय जनता पार्टी कार्यालय में जब विधायक दलकी बैठक हो रही थी तब पार्टी का संगठन और सरकार के नुमाइंदे सभी अपनी नाकामियों का सबूत पेश कर रहे थे। भारतीय जनता पार्टी संगठन ने कोई प्लान नहीं बनाया था कि जब नए नेता की घोषणा होगी तो किस तरह वो आने वाले नागरिकों, पदाधिकारियों या प्रेस को संबोधित करेंगे। बैठक समाप्त होते ही प्रेस के प्रतिनिधियों को जब फैसले की जानकारी मिली तो वे पार्टी कार्यालय में भीतर घुस गए। भारी धक्कामुक्की और अव्यवस्था के बीच जनता तक जानकारी पहुंचाने की कोई व्यवस्था नहीं थी।
ऐसा लगता है कि ये अराजकता पार्टी के प्रदेश हाईकमान के निर्देश पर ही की गई थी। व्यवस्थित चुनाव प्रचार अभियान चलाने वाला भाजपा का संगठन फैसला सुनने के बाद ऐसा शून्य हो गया था कि उसने अव्यवस्था का लांछन नए नेता पर थोपने की तैयारी पहले से ही कर रखी थी। महिलाएं और युवा पत्रकार इसी धक्कामुक्की के बीच जनता को जानकारियां पहुंचा रहे थे। नाकाम पुलिस प्रशासन भी तैयार नहीं था। वह तय ही नहीं कर पाया कि किस तरह वह उत्साहित कार्यकर्ताओं के इस सैलाब का प्रबंधन कर पाएगा। माईक संभाले पुलिस के अधिकारी स्वयं अपनी अव्यवस्था के शिकार बने और भीड़ ने उन्हें धकेलकर गिरा दिया।
डॉ.मोहन यादव सख्त प्रशासक माने जाते हैं। वे स्वर्गीय वीरेन्द्र सखलेचा की तरह आदर्शवाद के तले दबने वाले व्यक्ति भी नहीं हैं। उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि समाज और भीड़ का प्रबंधन कैसे करना होता है। उज्जैन में लगने वाले कुंभ की व्यवस्था संभालने का उन्हें लंबा अनुभव है। ऐसे में जनता को क्या सुविधाएं कब उपलब्ध करवाना है वे अच्छी तरह जानते हैं। किन पाखंडियों की सत्ता में घुसपैठ रोकना है वे ये भी अच्छी तरह समझते हैं।समर्पित भाव से जनसेवा करने का उनका लंबा इतिहास है। पार्टी को जाति या वर्ग के दायरे से बाहर निकलकर व्यवस्था संभालने में भी उनकी युक्तियां सदैव से चर्चित रहीं हैं।
भारत सरकार की योजनाएं हों या फिर राज्य सरकार की उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों को मुहैया कराने में रिकार्ड स्थापित किया है। योजनाओं को जरूरतमंदों तक पहुंचाना और इनमें घोटाला करने वालों को उनकी हैसियत बताना उनका प्रिय शगल है। इसलिए अराजकता के दौर के आदी हो चुके मध्यप्रदेश के सत्ता माफिया को अब सावधान हो जाना चाहिए। सत्ता की आड़ में बजट की चोरी करने वालों का गिरोह भी अब सावधान हो जाए तो ही बेहतर होगा क्योंकि सत्ता के लुटेरों की खाल खींचने वाला जांबाज अब मैदान पर आ गया है। ऐसे ठग समझ लें कि उनका सामना अब तक शिवराज जी जैसे भलेमानस से पड़ा था। पहली बार उन्हें जाणता राजा मिला है। जो एमपी को नई ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए कमर कसकर तैयार है।फिर मोदीजी का डबल इंजन तो पहले ही उनके साथ मौजूद है।
Hope for the best………….
👍 प्रदेश की भलाई के लिए यह आवश्यक है👍