भोपाल,22 अगस्त(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)। वैश्विक राजनीति में बढ़ते दखल को सफल बनाने के लिए मोदी सरकार ने पंडित दीन दयाल उपाध्याय के जिस अंत्योदय वाले फार्मूले पर अमल करके प्रति व्यक्ति आय बढ़ाना शुरु कर दिया है उससे देश की राजनीति में नया भूचाल आ गया है। देश को अब तक जिन बड़े राजनीतिक कदमों ने प्रभावित किया है उसमें हर प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने का फार्मूला कारगर साबित हो रहा है। मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों, महिलाओं और विभिन तबकों को अर्थव्यवस्था में सीधे तौर पर जोडने की जो विधि अपनाई है उससे तमाम राजनीतिक दलों के दावे धराशायी हो गए हैं।
मध्यप्रदेश में किसान सम्मान निधि और लाड़ली बहना योजना ने शिवराज सरकार के प्रति बढ़ती सत्ता विरोधी लहर को ठंडा करना शुरु कर दिया है। मोदी सरकार भले ही तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का दावा कर रही है लेकिन वास्तव में देश प्रति व्यक्ति आय के पैमाने पर 142 वें नंबर पर है। अर्थशास्त्रियों की इस राय पर गौर करते हुए भाजपा ने अपने शासित राज्यों में लोगों को राहत के कई पैकेज दिए हैं।
लाल किले से दिए गए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण में ये तमाम दावे किए गए थे। इस पर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के जाने-माने अर्थशास्त्री, रिटायर्ड प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री जिन आंकड़ों के आधार पर ये बात कह रहे हैं वे संगठित क्षेत्र के सर्वे पर तैयार किए गए हैं।अरुण कुमार ने कहा, “10वें नंबर से 5वें नंबर पर और 5वें से तीसरे नंबर पर पहुंचने के लिए जिन आंकड़ों को आधार बनाया जा रहा है, वे आंकड़े सही नहीं है. क्योंकि नोटबंदी के बाद असंगठित क्षेत्र के आंकड़े सही नहीं हैं. सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था इस की वृद्धि दर को 8%, 7% और 6% बताती रही है, लेकिन 2016 के बाद से दरअसल यह 2 से 3 प्रतिशत या 0% से ज्यादा नहीं रही है, खासकर तब जब नोटबंदी के कारण सब बंद पड़ा था.”
उन्होंने कहा, “सरकार केवल आंकड़ों का खेल कर रही है. हम 10वें नंबर से 5वें नंबर पर नहीं पहुंचे हैं. अभी तो हम 10वें नंबर के आस-पास ही हैं, जहां हम पहले थे.”कुमार ने कहा कि, “सरकार के आधिकारिक आंकड़े के मुताबिक कोविड महामारी के पहले हमारी ग्रोथ रेट, 2017-18 की चौथी तिमाही (क्वार्टर 4) में 8 प्रतिशत थी जो गिरकर 3 प्रतिशत हो गई. लेकिन इसमें असंगठित क्षेत्र शामिल नहीं है, इसलिए यह वृद्धि 0% या उससे कम हो सकती है. इसलिए हम 5वें नंबर पर नहीं, बल्कि 8वें, 9वे नंबर होंगे.”
उन्होंने कहा, “आखिर जब नोटबंदी से अर्थव्यवस्था गिर गई थी, तब कहा गया था कि हम 8 प्रतिशत के साथ वृद्धि कर रहे हैं. तो हम आकलन कर सकते हैं कि यह कितना सच और कितना झूठ है. और फिर जीएसटी ने असंगठित क्षेत्र को ध्वस्त किया. एफएमसीजी सेक्टर कि रिपोर्ट, टेक्सटाइल सेक्टर, लेदर गुड्स सेक्टर, लगेज इंडस्ट्री की रिपोर्ट्स इसे साबित करती हैं.”वहीं पीएम मोदी ने कहा, “अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां भी कह रही हैं कि भारत में अत्यधिक गरीबी खात्मे के कगार पर है, जो दिखाता है कि 9 सालों में सरकार के फैसले और नीतियां देश को सही दिशा में ले जा रही हैं.”
कुमार इस पर कहते हैं, “दरअसल विश्व बैंक, ईडीबी और आईएमएफ खुद से आंकड़े इकट्ठा नहीं करता. वह सरकार के आंकड़े के आधार पर ही अपनी रिपोर्ट बनाता है. इसलिए जो सरकार के आंकड़ों में गड़बड़ी है, वही उसके आंकड़ों में भी गड़बड़ी होती है. वह एक इंडिपेंडेंट डेटा कलेक्टिंग (स्वतंत्र आंकड़े जुटाने वाली) एजेंसी नहीं है.” हालांकि, अरुण कुमार ने कहा, “55% संगठित क्षेत्र के आंकड़े को आधार बनाए तो वृद्धि की बात सही हो सकती है, लेकिन अंसगिठत क्षेत्र जो कि 45% है, जिसमें 14 प्रतिशत कृषि और बाकी 30 प्रतिशत अन्य असंगठित क्षेत्र है. 30 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में गिरावट है. असंगठित क्षेत्र के आंकड़े न मौजूद होने से 7-8 फीसदी की वृद्धि की बता गलत है, 30 फीसदी में गिरवाट के आधार पर आकलन करें तो हमारी ग्रोथ रेट, 0% 2%, 3% ही चल रही है, 7-8% नहीं.”
कुमार ने कहा कि, “11 अक्टूबर 2022 को जय प्रकाश नारायण (जेपी) के जन्मदिन पर हमने एक रिपोर्ट निकाली, जिसके मुताबिक हमारे देश में 32 करोड़ लोगों के पास तो कोई ढंग काम है, लेकिन 28 करोड़ लोगों के पास ढंग का काम नहीं है, या बिलकुल काम नहीं है. इनमें 19 करोड़ ने काम ढूंढ़ना बंद कर दिया था. अगर 140 करोड़ की जनसंख्या में 32 करोड़ के पास ही ढंग का काम है. तो हर एक व्यक्ति 4 व्यक्ति को सहारा दे रहा है.”
उन्होंने कहा, “नवंबर 2022 में ई-श्रम पोर्टल का डेटा आया है, प्रधानमंत्री ने भी इसका जिक्र किया है. नवंबर 2022 तक, 28 करोड़ असंगठित क्षेत्र के लोगों ने इस पोर्टल पर रजिस्टर कराया. उसमें से 94 प्रतिशत ने बताया कि हमारी आमदनी 10 हजार रुपये से कम है, जो कि गरीबी रेखा के आस-पास ही हैं.”
अरुण कुमार ने कहा कि, “विश्व बैंक का गरीबी रेखा का जो पैमाना है वह 2.15 डॉलर है. यानि 5 लोगों के परिवार को 25 हजार महीने की आमदनी चाहिए. हालांकि, यदि मोटे तौर पर समझें तो हर व्यक्ति को कम से कम 13 हजार रुपये चाहिए. लेकिन 94 प्रतिशत लोग तो कह रहे हैं हमारी आमदनी 10 हजार रुपये से कम है. विश्व बैंक की रेखा से भारत की गरीबी नापें तो ये इस पोर्टल में दर्ज कराने वाले 94% लोग गरीब हैं. इसलिए हम 5वीं अर्थव्यवस्था हैं और तीसरी अर्थव्यवस्था हो जाएंगे, इसका कोई मतलब नहीं है. असली बात हमारे आंकड़ों में आ नहीं रही है.”वहीं पीएम ने इस कार्यक्रम में नीति आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि, “भारत गरीबी को खत्म कर सकता है. पिछले 5 सालों में 13.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं.”
इस पर कुमार कहते हैं, “इसे मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी कहते हैं. जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और लिविंग स्टैंडर्ड होता है. लेकिन इसमें भी गड़बड़ी है. सरकार कह रही है कि ये 2019-21 के आंकड़े हैं. 2019-20 की बात तो ठीक थी, लेकिन 2020-21 में तो भयंकर कोविड महामारी फैली थी. इस दौरान कितने लोगों ने पलायन किया. बच्चे स्कूल नहीं जा रहे थे, कितने लोग मर गए, जिनके आंकड़े भी ठीक से नहीं पता हैं. ऐसे में यह कहना कि 13.5 करोड़ लोग मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी से निकल आए हैं, यह भी गलत है.”
उन्होंने कहा कि, “रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी स्कीम आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक कोविड महामारी के समय सिर्फ 47 दिन का काम मिल रहा था. जो कि साल में 9 दिन होता है, साल में 9 दिन के काम से पूरे साल का काम कैसे चल सकता है? इसलिए 135 मिलियन यानि 13.5 करोड़ लोग गरीबी से निकल आए हैं ये भी आंकड़ा सही नहीं है.”
‘अर्थशास्त्री कुमार ने कहा कि, “प्रति व्यक्ति आय में तो हम अभी भी दुनिया में 142वें स्थान पर हैं. जो कि ज्यादा महत्वपूर्ण है. अगर हम थोड़ी देर के लिए मान भी लें कि हमारी अर्थव्यवस्था ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था से बड़ी हो गई है. लेकिन हमारे यहां तो 140 करोड़ लोग हैं, उनके यहां साढ़े 7 करोड़ लोग हैं. वो हमसे 15 गुना छोटे हैं. वास्तव में हमें प्रति व्यक्ति आय के आधार पर अपने देश की गरीबी को देखना चाहिए.”
सरकार के दावों के समर्थन में बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस कहते है कि , “जिस तरह भारत की सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दे रही है, इन्वेस्टमेंट हो रहा है और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट पर इन्सेंटिव दिया जा रहा है, इससे तीसरी अर्थव्यवस्था बनना काफी संभव है.”सबनवीस ने कहा जहां तक असंगठित क्षेत्र के डेटा की बात है तो उसके लिए भी प्रॉक्सी डेटा का इस्तेमाल किया जाता है. इसके लिए आईआईपी ग्रोथ नंबर का इस्तेमाल होता है. ये काफी सालों से चल रहा है इसलिए मुझे नहीं लगता कि इसको लेकर बहुत बड़ी गड़बड़ी होगी.(प्रोफेसर अरुण कुमार के इंटरव्यू पर आधारित)
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