प्रदेश के एकमात्र मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय के शिक्षकों को पांच महीनों से नहीं मिला वेतन
भोपाल,20 जनवरी(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)। मध्यप्रदेश की अफसरशाही जब सुशासन की शाबासी लूटने के लिए आईएएस सर्विस मीट का उत्सव मना रही है तब जबलपुर के मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय के शिक्षक पांच महीनों से वेतन न मिलने की वजह से दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। देश के मत्स्य कारोबार में प्रशिक्षित उद्यमियों को खड़ा करने वाला ये संस्थान नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति एसपी तिवारी के उस कुशासन की सजा भुगत रहा है जो उन्होंने नौकरियां बांटने की वाहवाही लूटने की वजह से थोपी है। प्रदेश में मछुआ कल्याण तथा मत्स्य पालन विभाग होते हुए इस कॉलेज को पशुपालन विभाग के हवाले सौंपने की नादानी इसी नौकरशाही ने की है जो आज पूरे देश में सुशासन का मॉडल बनी हुई है।
चुनाव की देहलीज पर बैठी शिवराज सिंह चौहान सरकार ने अपने सभी विभागों को टारगेट दिया है कि वह अधिकाधिक भर्तियां करके युवाओं में बढ़ रही निराशा की भावना को दूर करे। इसका लाभ लेते हुए नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति ने लगभग सौ भर्तियां कर डाली हैं।कथित तौर पर भारी कमीशनखोरी में की गई इन भर्तियों ने न केवल विश्विद्यालय के बजट का भट्टा बिठाल दिया बल्कि अपने अधीन आने वाले मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय का बजट भी स्वाहा कर दिया है। लगभग ग्यारह करोड़ बजट दिए जाने के बावजूद विश्विद्यालय ने केवल सात करोड़ बीस लाख रुपए महाविद्यालय को दिए और बाकी बजट कहां लुटा दिया इसकी कोई जानकारी नहीं दी है। बजट की इस राशि का उपयोग अन्यत्र कर लिए जाने से महाविद्यालय को वेतन बांटने के लाले पड़ गए हैं।
इस संबंध में कुलपति एसपी तिवारी का कहना है कि सरकार ने सातवें वेतन आयोग की अनुशंसाएं लागू कर दीं हैं इसलिए बजट कम पड़ गया है। नई भर्तियों से नौकरी में आए युवाओं को तो वेतन दिया जा रहा है पर पुराने शिक्षकों के वेतन के लिए सरकार से और राशि मिलने का इंतजार है। वे भर्तियों में भर्राशाही के आरोपों से इंकार करते हुए कहते हैं कि हमने पारदर्शी तरीके से नौकरियां बांटी हैं। उनसे जब पूछा गया कि जब बजट नहीं था तो नई भर्तियां क्यों कर लीं तो उनका कहना था कि हम सभी के वेतन की व्यवस्था कर रहे हैं।
प्रदेश के एकमात्र मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के वैज्ञानिकों ने मछली के कारोबार की संभावनाओं को देखते हुए स्थापित कराया था। तबसे इसे इंडियन काऊंसिल आफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च की मान्यता के आधार पर ही चलाया जाता है। इस कॉलेज से पढ़कर निकले हजारों छात्र आज समुद्र तटीय इलाकों में कारोबार करने वाली इंटरनेशनल कंपनियों में कार्य कर रहे हैं। राज्य के तालाबों में किए जा रहे मत्स्यपालन कारोबार को विकसित करके इन विद्यार्थियों ने प्रदेश और देश के लिए विदेशी आय का खजाना खोल दिया है। राज्य के मछुआरों और निषाद जाति समुदाय के युवाओं के लिए जीवनरेखा बन चुके इस महाविद्यालय के विकास की संभावनाओं को देखते हुए राज्य सरकार ने अधिक ग्रांट देकर इसे संबल दिया था। इसके बावजूद कुलपति एसपी तिवारी ने महाविद्यालय में केवल चार नई भर्तियां की हैं और पुराने अधिकारियों कर्मचारियों और प्रोफेसरों का वेतन रोककर कालेज का माहौल विषाक्त बना दिया है।
नानाजी देशमुख का नाम आत्मनिर्भर विकास के फार्मूलों के लिए जाना जाता है। जबकि उनके नाम पर बना विश्वविद्यालय आज विकास की संभावनाओं में पलीता लगाने में जुटा हुआ है। सरकार से अधिक बजट की मांग करके ये स्वशासी संस्थान एक पंगु व्यवस्था का जन्मदाता बन गया है। इन हालात से ऐसा नहीं कि राज्य सरकार या उसकी प्रशासनिक मशीनरी वाकिफ नहीं है। महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने कई बार आंदोलन करके सरकार को अपनी व्यथा से अवगत कराया है। मत्स्यपालन के व्यवसाय से जुड़े राज्य के बड़े मतदाता वर्ग ने भी बार बार सरकार को अपने समुदाय की दुर्दशा की जानकारी दी है। इसके बावजूद नौकरियां बेचने में जुटे कई चमचे भाजपा सरकार को गुमराह कर रहे हैं।
मछुआ कल्याण एवं मत्स्यपालन मंत्री तुलसी सिलावट ने भी कई बार प्रशासन को निर्देश देकर इस महाविद्यालय को अपने विभाग में शामिल करने की सलाह दी है। इसके बावजूद प्रशासनिक अधिकारियों ने मत्स्य कारोबार की संभावनाओं का दोहन करने में कोई रुचि नहीं दिखाई है। मछुआ कल्याण एवं मत्स्य पालन विभाग की प्रमुख सचिव कल्पना श्रीवास्तव से इस संबंध में मुलाकात करने का प्रयास किया गया पर वे आईएएस सर्विस मीट में व्यस्त होने की वजह से उपलब्ध नहीं हो सकीं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हर मंच से दावा करते रहते हैं कि उनकी प्रशासनिक मशीनरी ने प्रदेश को सर्वश्रेष्ठ राज्य बना दिया है लेकिन इस राज्य में कई विभाग ऐसे हैं जहां शिक्षकों और अधिकारियों को वेतन के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ रहीं हैं।
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