जंगलों से समृद्ध जनजीवन

ऋषभ जैन

मध्यप्रदेश में सामुदायिक भागीदारी से वन प्रबंधन, संरक्षण एवं सुधार की दिशा में वन समितियों के माध्यम से शानदार काम किया गया है जो पूरे देश में अनूठा है। इन वन समितियों से जुड़े परिवार आर्थिक रूप से भी सशक्त हुए हैं।

वन समितियों के उल्लेखनीय कामसतना की ग्राम वन समिति गोदीन ने गोंड जनजाति की महिलाओं को सॉफ्ट टॉय बनाने का प्रशिक्षण ग्रीन इंडिया मिशन में दिया है। इसी प्रकार सीधी वन मंडल की ग्राम वन समिति बम्हनमरा ने बिगड़े वन क्षेत्र में काम करना शुरू किया और अवैध कटाई, चराई, अतिक्रमण से जंगलों की सुरक्षा की। समिति को महुआ फूल, गुल्ली, अचार, जलाऊ लकड़ी मिल रही है।बालाघाट की ग्राम समिति अचानकपुर ने बाँस-रोपण क्षेत्र में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की। बाँस के दोहन से समिति को एक लाख रूपये का शुद्ध मुनाफा हुआ। वन मंडल सीधी की ग्राम वन समिति ने वन विहीन पहाड़ी में काम करना शुरू किया और अपने परिश्रम से इसे सघन सागौन वन में बदल दिया। समिति को सागौन की बल्लियों से आर्थिक लाभ भी हुआ। वन मंडल पश्चिम मंडला की ग्राम वन समिति मनेरी ने वन विहीन पहाड़ी को हरा-भरा बना दिया। इसी प्रकार अन्य समितियाँ भी अपने-अपने क्षेत्रों में सरकार के सहयोग से शानदार काम कर रही हैं।

प्रदेश का वनक्षेत्र 94 हजार 689 वर्ग किलोमीटर है जो अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है। यह देश के कुल वन क्षेत्र का 12.3% है। प्रदेश के 79 लाख 70 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र के प्रबंधन में जन-भागीदारी के लिये 15 हजार 608 गाँवों में वन समितियाँ काम कर रही हैं। पिछले एक दशक में 1552 गाँवों में वन समितियों ने 4 लाख 31 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र में सुधार किया है। जब पूरी दुनिया में वनों पर खतरा मंडरा रहा है, ऐसे समय इन समितियों ने वन विभाग के साथ मिलकर शानदार काम किया है।

राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ, वनोपज संग्रह करने वाले परिवारों को उचित मूल्य दिलाने के उद्देश्य से काम कर रहा है। संघ के नवाचारी उपायों से तेंदूपत्ता संग्राहकों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है। तेंदूपत्ता सीजन में 2021 कोविड-19 के कारण लॉक-डाउन के बाद भी तेंदूपत्ता संग्रहण कराकर दूरदराज के क्षेत्रों में रह रहे जनजातीय परिवारों को 415 करोड़ रूपये का पारिश्रमिक दिलाया गया और 192 करोड़ का लाभांश भी वितरित किया गया।

पुरानी नीति में 70 फीसदी लाभांश संग्राहकों को बोनस के रूप में दिया जाता था। साथ ही 15% राशि संग्राहकों के सामाजिक एवं आर्थिक कल्याण के लिए और 15% राशि वन क्षेत्रों में लघु वन उपज देने वाली प्रजातियों के संरक्षण एवं विकास पर खर्च की जाती थी। अब “पेसा अधिनियम” की भावना के अनुसार तेंदूपत्ता के व्यापार से होने वाले लाभ का 75% संग्राहकों को, 10% राशि संग्राहकों के सामाजिक-आर्थिक कल्याण के लिए और 10% राशि वन क्षेत्रों में लघु वनोपज प्रजातियों के संरक्षण तथा 5 प्रतिशत ग्राम सभाओं को दी जाएगी।

वन विभाग द्वारा नए संकल्प में राष्ट्रीय उद्यानों में पर्यटकों के प्रवेश से मिलने वाली राशि का 33% वन समितियों को देने का प्रावधान किया गया है । समितियों को आवंटित क्षेत्र में ईको पर्यटन का कार्य संचालित करने के लिए सशक्त किया गया है। इससे होने वाली आय वन समिति को मिलेगी। इससे स्थानीय युवाओं को आर्थिक गतिविधियाँ शुरू करने के अवसर मिलेंगे।

वन समितियों का माइक्रो प्लान

प्रदेश के एक तिहाई गाँव वन क्षेत्रों के अंदर या उसके आसपास बसे हैं। वहाँ के निवासियों की आजीविका वनों पर आधारित है।

आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश में इस साल के आखिर तक 5 हजार वन समितियों का माइक्रो प्लान तैयार करने का लक्ष्य है। इससे रोजगार के अवसर मिलेंगे। साथ ही ग्राम समुदाय अपनी आवश्यकता की वनोपज का उत्पादन कर अपने पैरों पर खड़े हो सकेंगे।

लाभांश में वृद्धि

वन समितियों को दिए जाने वाले लाभांश में वृद्धि की गई है। पहले जिला स्तर पर शुद्ध लाभ की राशि का 20 फीसदी मिलता था, जिसकी वजह से राशि का वितरण केवल कुछ ही जिलों में हो पाता था। अधिकांश समितियाँ लाभ से वंचित रह जाती थी। नए संकल्प के अनुसार प्रत्येक समिति को उसके क्षेत्र में से किए गए दोहन से प्राप्त राजस्व का 20 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा। पहले काष्ठ एवं बाँस का 50 करोड़ रूपए तक का लाभांश वितरण होता था। अब लगभग 160 करोड़ प्रति वर्ष हो रहा है।

ग्राम सभाओं को सौंपा अधिकार

वन समितियों के गठन एवं पुनर्गठन करने का अधिकार अब ग्राम सभाओं को सौंपा गया है। वन समिति की कार्यकारिणी में महिलाओं एवं कमजोर वर्गों के लोगों को शामिल करने की व्यवस्था भी की गई है। प्रदेश में अनेक प्रकार की वनोपज का उत्पादन होता है। इसमें महुआ, तेंदूपत्ता, हर्रा, बहेड़ा, आंवला और चिरौंजी प्रमुख है। पेसा कानून की भावना के अनुरूप ग्राम सभाओं को लघु वनोपजों का पूरा अधिकार सौंपा गया है।

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ऐसे निर्णय लिये गये हैं, जो वन समितियों से जुड़े संग्राहक परिवारों के लिये परिवर्तनकारी साबित हुए हैं। वन समितियों को भरपूर आर्थ‍िक लाभ हुआ है। उदाहरण के लिये 32 वनोपजों का समर्थन मूल्य निर्धारित करने से करीब 17 लाख परिवारों को लाभ हुआ है। तेंदूपत्ता व्यापार के शुद्ध लाभ का 70 प्रतिशत के स्थान पर 75 प्रतिशत देने से 17 लाख परिवारों को लाभ हुआ है।

तेंदूपत्ता संग्रहण दर में वृद्धि

तेंदूपत्ता संग्रहण दर में लगातार वृद्धि की गई है। इसी के अनुपात में पारिश्रमिक और बोनस का भुगतान भी किया गया है। तेंदूपत्ता संग्रहण दर वर्ष 2005 में प्रति मानक बोरा ₹400 थी, जो अब बढ़कर 2500 सौ रूपये प्रति मानक बोरा हो गई है। पारिश्रमिक का भुगतान वर्ष 2005 में ₹67 करोड़ रूपये होता था, जो वर्ष 2021 में बढ़कर 415 करोड़ रूपये हो गया है। संग्राहकों के बच्चों के लिए एकलव्य शिक्षा योजना पिछले ग्यारह साल से चल रही है, जिससे अब तक 1712 बच्चों को शिक्षा के लिये 2 करोड़ एक लाख रूपये की राशि उपलब्ध कराई गई है।

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