कृषि को लाभदायी बनाने का मॉडल बना मध्यप्रदेश

सुरेश गुप्ता
किसानों की अथक मेहनत से आज प्रदेश कृषि विकास के क्षेत्र में सर्वोपरि है। प्रदेश को कृषि उत्पादन तथा योजना संचालन क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन के लिए सात कृषि कर्मण अवार्ड प्राप्त हुए हैं। प्रदेश आज दलहन-तिलहन के क्षेत्र और उत्पादन में देश में प्रथम है। सोयाबीन, उड़द के क्षेत्र एवं उत्पादन में प्रदेश, देश में प्रथम है। गेहूँ, मसूर, मक्का एवं तिल फसल के क्षेत्र एवं उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर है। सम्पूर्ण खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में प्रदेश का देश में तीसरा स्थान है।
मध्यप्रदेश ने देश में सबसे पहले कृषि को लाभदायी बनाने की दिशा में कदम बढ़ाये थे। मुख्यत: पाँच आधार बिन्दु क्रमश: कृषि लागत में कमी, उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि, कृषि विविधीकरण, उत्पाद का बेहतर मूल्य और कृषि क्षेत्र में आपदा प्रबंधन पर संकल्पित होकर कार्य किया गया। वर्ष 2004-05 में प्रदेश का कुल कृषि उत्पादन मात्र 2 करोड़ 38 लाख मी.टन था जो वर्ष 2020-2021 में बढ़कर 6 करोड़ 69 मी. टन हो गया है।
प्रदेश में जैविक खेती का कुल क्षेत्र लगभग 16 लाख 37 हजार हेक्टेयर है जो देश में सर्वाधिक है। जैविक उत्पाद का उत्पादन 14 लाख 2 हजार मी.टन रहा, जो क्षेत्रफल की भाँति ही देश में सर्वाधिक है। जैविक खेती को प्रोत्साहन स्वरूप प्रदेश में कुल 17 लाख 31 हजार क्षेत्र हेक्टेयर जैविक प्रमाणिक है, जिसमें से 16 लाख 38 हजार एपीडा से और 93 हजार हेक्टेयर क्षेत्र, पी.जी.एस. से पंजीकृत है।
प्रदेश ने पिछले वित्त वर्ष में 2683 करोड़ रूपये के मूल्य के 5 लाख मी.टन से अधिक के जैविक उत्पाद निर्यात किये हैं। प्रदेश में जैविक वनोपज भी ली जा रही है। इस वर्ष प्रदेश में 99 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती का लक्ष्य है। प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में जैविक/ प्राकृतिक खेती को शामिल करने की योजना है। दोनों कृषि विश्वविद्यालय में कम से कम 25 हेक्टेयर भूमि को प्राकृतिक खेती प्रदर्शन श्रेत्र में बदला जायेगा।
वर्ष 2016 से प्रारम्भ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए प्रदेश के वार्षिक बजट में 2200 करोड़ रूपये की राशि का प्रावधान है। प्रदेश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कुल वर्षवार 4 करोड़ 43 लाख 61 हजार 570 किसान खरीफ 2016 से रबी 2021-22 तक (पाँच वर्षों में) पंजीकृत हुए। वर्तमान समय तक 73 लाख 69 हजार 614 किसानों को रबी 2019-20 तक की राशि 16 हजार 750 करोड़ 87 लाख रूपये का दावा राशि का वितरण किया गया है। यह प्रीमियम से दावा राशि का 93.41 प्रतिशत है।
फसल बीमा का एंड-टू-एंड कम्‍प्‍युटराईजेशन प्रक्रियाधीन है। बीमा इकाई निर्धारण की प्रक्रिया भू-अभिलेख के साथ एकीकृत कर पूर्णत: ऑनलाईन है। औसत उपज उत्पादन के आकलन में रिमोर्ट सेंसिंग तकनीक के उपयोग की परियोजना प्रारंभ की गई है। पंजीयन की प्रक्रिया को आधार कार्ड से लिंक किया है, जिससे एक रकबे का एक ही बार बीमा हो सकेगा और दोहरीकरण की स्थिति निर्मित नहीं होगी।
प्रदेश देश में बीज प्रमाणीकरण में अग्रणी है। बीज की गुणवत्ता के लिये क्यू.आर. कोड के प्रयोग का नवाचार किया गया है। किसानों की भागीदारी से संकर बीजों का उत्पादन कर प्रदेश को हाइब्रीड बीज उत्पादन का हब बनाया जा रहा है। प्रत्येक संभाग में एक के मान से दस उर्वरक और बीज परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है। उन्नत बीजों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए रोलिंग प्लान को अद्यतन किया गया है। तीन हजार नये बीज ग्राम विकसित किये जा रहे हैं।
जिला स्तर पर 50 मृदा परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित की गई हैं और विकासखण्ड स्तर पर 265 मृदा स्वास्थ्य परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित की जा रही हैं। प्रदेश के 90 लाख किसानों को नि:शुल्क स्वाईल हेल्थ कार्ड वितरित किये जा चुके हैं।
कृषि अधोसंरचना में सुधार के क्रम को प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता देने की भारत सरकार की कृषि अवसंरचना निधि के उपयोग में प्रदेश, देश में अग्रणी है। इस निधि के अंतर्गत बैंकों द्वारा 1558 करोड़ रूपये से अधिक की राशि के 2129 आवेदन सत्यापित कर 1107 करोड़ रूपये के ऋण वितरित कर दिये गये हैं।
पिछले डेढ़ दशक में सिंचाई का बजट 1005 करोड़ से बढ़ाकर 10 हजार 928 करोड़ रूपये किया गया है। यही वजह है कि 7.5 लाख हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता 6 गुना बढ़कर आज की स्थिति में 43 लाख हेक्टेयर है। इस क्षमता को अगले तीन वर्ष में 65 लाख हेक्टेयर तक करने का लक्ष्य है। अकेले पिछले 2 वर्ष में 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता निर्मित की जा चुकी है। वर्तमान में 60 हजार करोड़ से अधिक की लागत की 361 सिंचाई योजनाएँ निर्माणाधीन हैं। आने वाले तीन साल में 30 हजार करोड़ की परियोजनाओं को स्वीकृति दी जायेगी। जिन क्षेत्रों में पारम्परिक माध्यमों से सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराना संभव नहीं है, वहाँ भी पर ड्राप मोर क्राप कार्यक्रम सिंचाई सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है।
़ राज्य सरकार प्रदेश को आवंटित 18.25 एमए एफ नर्मदा जल का वर्ष 2024 तक उपयोग सुनिश्चित करने की दिशा में तेजी से काम कर रही है। वर्तमान में साढ़े 12 लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा के‍लिए 35 हजार करोड़ रूपये की परियोजनाओं का निर्माण प्रगति पर है।
राज्य सरकार के प्रयासों से प्रदेश बिजली के क्षेत्र में आत्म-निर्भर है। प्रदेश की उपलब्ध क्षमता बढ़कर 21 हजार 451 मेगावॉट हो गयी है। कृषि उपभोक्ताओं को प्रतिदिन 10 घंटे बिजली दी जा रही है।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति के एक हेक्टेयर तक भूमि वाले 5 हार्सपावर तक के स्थायी कृषि पंप उपभोक्ताओं को मुफ्त बिजली दी जा रही है। योजना में 9 लाख 41 हजार कृषक लाभान्वित हो रहे हैं। इस वित्त वर्ष में इन्हें कृषि कार्यों के लिए 5 हजार करोड़ रूपये की नि:शुल्क बिजली उपलब्ध करायी गई।
अटल किसान ज्योति योजना में 10 हार्सपावर तक के अनमीटर्ड स्थायी कषि पंप कनेक्शनों को 750 रूपये और 10 हार्सपावर से अधिक के अनमीटर्ड स्थायी पंप कनेक्शनों को 1500 रूपये प्रति हार्सपावर प्रतिवर्ष के फ्लेट दर से बिजली प्रदाय की जा रही है। साथ ही 10 एच.पी. के मीटर युक्त स्थायी, अस्थायी पंप कनेक्शनों को भी ऊर्जा प्रभार में रियायत दी गई है। योजना से लगभग 26 लाख कृषि उपभोक्ता लाभान्वित हो रहे हैं। योजना के लिए इस वित्त वर्ष में 11 हजार 300 करोड़ रूपये की सब्सिडी का प्रावधान है।
किसानों के स्वावलंबन, आय और आत्म-निर्भरता बढ़ाने के लिए कुसुम योजना का लाभ भी किसानों को सुलभ कराया जा रहा है। योजना में प्रदेश को आवंटित 300 मेगावाट लक्ष्य के विरूद्ध 296 मेगावाट क्षमता के लिए 139 किसानों का चयन किया जा चुका है। कुसुम ‘घ’ में 1500 मेगावाट की परियोजना के लिए निविदा की कार्यवाही की जा रही है। योजना में किसान अपनी कम उपजाऊ या बंजर जमीन पर सोलर संयंत्र की स्थापना कर शासन अपने घर, सिंचाई के उपयोग के बाद बची बिजली शासन को बेच सकते हैं। मुख्यमंत्री सोलर पंप योजना में लगभग 25 हजार किसानों ने पंजीयन करवाया है। कुसुम ‘सी’ योजना में ग्रिड कनेक्टेड पंपों को सौर ऊर्जा से उर्जीकृत किया गया है।
प्रदेश में किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर फसल ऋण दिया जा रहा है। वर्ष 2003-04 में कृषकों को खेती के लिए मात्र 1273 करोड़ का फसल ऋण मिला था। इस वर्ष किसानों को रुपये 14 हजार 428 करोड़ के ऋण उपलब्ध कराये जा चुके है। विगत दो वर्ष में किसानों को 26 हजार करोड़ के ऋण शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर दिये गये हैं।
समर्थन मूल्य पर इस साल 16 लाख 16 हजार 671 किसानों से 128 लाख 15 हजार 970 मी.टन गेहूँ और 6 लाख 61 हजार 619 धान उत्पादक किसानों से 45 लाख 85 हजार 512 मीट्रिक टन धान का उपार्जन किया गया है। इसके अलावा प्रदेश में ज्वार, बाजरा, चना, सरसों, मसूर, मूंग एवं उड़द का उपार्जन भी किया जा रहा है। वर्ष 2020 में लगभग 15 लाख 81 हजार किसानों से 1 करोड़ 29 लाख 42 हजार 131 मी.टन गेहूँ का उपार्जन कर पंजाब को पीछे छोड़ते हुए मध्यप्रदेश देश का नंबर वन राज्य बना था।
अपेक्स एवं जिला सहकारी केन्द्रीय बैंकों की शाखाओं में कोर-बैंकिंग सेवाएँ प्रारंभ करने के साथ एनईएफटी, एसएमएस एवं डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की सुविधा उपलब्ध कराई जा चुकी है। एटीएम की सुविधा भी है। प्राथमिकी कृषि सहकारी साख समितियों के सदस्य कृषकों को भी बैंकिंग से जोड़ा जा रहा है।
अब तक प्रदेश में निजी क्षेत्र में लगभग 3150 कस्टम हायरिंग सेंटर की स्थापना की गई है। इससे किसानों को सस्ती दर पर आधुनिकतम कृषि यंत्र किराए पर सुलभ हो रहे हैं।
प्रदेश में उद्यानिकी के विकास की विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन के फलस्वरूप क्षेत्र विस्तार, उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई है। उद्यानिकी फसल क्षेत्रफल वर्ष 2005 के 4 लाख 69 हजार से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 23 लाख 43 हजार हेक्टेयर और उद्यानिकी फसलों का उत्पादन वर्ष 2005 के 42 लाख 9 हजार मी. टन से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 340 लाख 31 हजार मी. टन तक पहुँच गया है। उद्यानिकी फसलों का क्लस्टर में विस्तार कराया जा रहा है। उत्पादन एवं उत्पादकता की वृद्धि को बनाये रखने के लिये उत्पादकों को गुणवत्ता युक्त पौध रोपण सामग्री प्राप्त होने पर विशेष ध्यान दिया जाकर उद्यानिकी नर्सरियों का उन्नयन किया जा रहा है। फसलोत्तर प्रबंधन के दिशा में विशेष प्रयास से आज प्रदेश में नश्वर उत्पादों के भण्डारण के लिये 8 लाख 81 हजार मी. टन शीत भण्डारण एवं 3 लाख 79 हजार मी. टन से ज्यादा प्याज भण्डारण क्षमता उपलब्ध है। वर्ष 2007-08 में प्याज भंडारण क्षमता मात्र 8530 मी. टन थी। उद्यानिकी में यंत्रीकरण को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
कृषि एवं उद्यानिकी फसलों पर आधारित लघु एवं मध्यम प्र-संस्करण उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रदेश में तेजी से विकसित हो रहे खाद्य प्र-संस्करण उद्योग से नवीन रोजगार के अवसर भी सृजित हो रहे हैं।
प्रदेश का दुग्ध उत्पादन पिछले वर्ष 7.52 प्रतिशत वृद्धि के साथ बढ़कर 17.1 मिलियन टन हो गया है। राष्ट्रीय स्तर पर यह वृद्धि लगभग साढ़े पाँच प्रतिशत है। प्रदेश दुग्ध उत्पादन और पशुधन में 4 करोड़ 6 लाख 37 हजार 375 की संख्या के साथ आज देश में तीसरे स्थान पर है। पशुओं की स्वास्थ्य रक्षा के लिये व्यापक तौर पर नि:शुल्क पशु टीकाकरण किया जा रहा है। बकरी दूध विक्रय की भी शुरूआत की गई है। पशुपालन के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाने के लिये 7 हजार युवाओं को जागरूक किया गया। 25 हजार 124 पशुपालकों को क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराये गये हैं। राष्ट्रीय पशुधन मिशन में प्रदेश में सर्वाधिक 530 आवेदन स्वीकृति के लिये बैंकों को भेजे गये हैं, जो देश में सर्वाधिक है।
प्रदेश के सिंचाई जलाशयों एवं ग्रामीण तालाबों के कुल उपलब्ध जल-क्षेत्र के 99 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में मछली पालन हो रहा है। किसानों की तरह मछुआरों को भी शून्य प्रतिशत ब्याज पर ऋण सुविधा उपलब्ध कराने फिशरमेन क्रेडिट कार्ड बनाये जा रहे हैं। अभी तक कुल 16 हजार 320 मछुआ क्रेडिट कार्ड बनाये जा चुके हैं। मत्स्योपादन में वृद्धि के लिये पंगेशियस एवं गिफ्ट तिलापिया जैसी आधुनिक पद्धति का उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।

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