भोपाल 3 अगस्त(प्रेस सूचना केन्द्र)। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट नागरिकों की चाहे जो चिंता करे पर कार्यपालिका के मैदानी अफसरों को सिर्फ अपनी कमाई की चिंता सताती है। न्यायपालिका के मुखिया प्रदेश के चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला ने कोरोना काल में कंगाल हुए नागरिकों को राहत देने के लिए बैंकों को कुर्की करने पर रोक लगाई है लेकिन तहसीली का अमला दुष्ट साहूकार की तरह गुंडई पर उतर आया है। एमपी नगर वृत्त के तहसीली दफ्तर में तो बैंकों के वसूली एजेंटों ने बाकायदा अपना अड्डा बना लिया है। ये एजेंट पुलिस की वर्दी पहनकर कर्जदारों के घर जाते हैं और उन्हें वारंट थमाकर कुर्की का भय दिखा रहे हैं। हाईकोर्ट को झांसा देने के लिए एजेंटों ने कर्जदारों को नए लोन मंजूर करा दिए हैं। इस टॉपअप राशि से वे पुराना कर्ज जमा कर देते हैं और नए कर्ज की वसूली के लिए कुर्की आदेश जारी करवा देते हैं।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच ने रिट याचिका क्रमांक- 8820-2021 का निपटारा करते हुए 15.07.2021 को कोरोना जैसी आपदा से प्रभावित कर्जदारों को राहत देने का प्रयास किया है । अपने फैसले में मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने अंतरिम आदेश की समय सीमा 25 अगस्त 2021 तक बढ़ा दी है। हाईकोर्ट ने कहा है कि वित्तीय संस्थान कोरोना की आपदा को देखते हुए मजबूर डिफाल्टरों को नए लोन दें और वसूली की समय सीमा कम से कम एक महीने तक बढ़ाएं।
बैंकों ने अपनी गड़बड़ाई कर्ज वसूली को लाईन पर लाने के लिए नए ऋण तो मंजूर किए हैं लेकिन मुनाफा बढ़ाने के लिए राजस्व अमले को साथ लेकर कुर्की का हथकंडा इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है। बैंकों की वसूली एजेंसियों ने साहूकारों के गुंडों की तरह डिफाल्टरों का जीना हराम कर दिया है। जिला प्रशासन का साथ होऩे के कारण पुलिस का अमला भी एजेंटों को संरक्षण देता है। डिफाल्टरों से मारपीट और दुर्वयवहार की शिकायत लिखने के बजाए पुलिस वाले नागरिकों को डरा धमकाकर भगा देते हैं।
गांधीनगर के 42 सेक्टर के निवासी शहनवाज खान ने गाड़ी के लिए आईडीएफसी फर्स्ट बैंक लिमिटेड से डेढ़ लाख रुपयों का लोन लिया था। पेशे से मैकेनिक शहनवाज का कामकाज लॉकडाउन की वजह से ठप हो गया। इसकी वजह से वह लोन की किस्तें वक्त पर जमा नहीं कर पाया। बैक के अधिकारियों ने पुराने रिकार्ड के आधार पर नया लोन मंजूर कर दिया। अब बैंक के वसूली एजेंट कथित पुलिस वालों को लेकर उसके घर जा रहे हैं और घर की कुर्की करने की धमकी दे रहे हैं।
इसी तरह इतवारा निवासी मोहम्मद नावेद के नाम पर मंगलवारा पुलिस से 5000 रुपए का वारंट भिजवाया गया है। उसे घर की कुर्की किए जाने की धमकी दी जा रही है। जबकि उसका लोन तो कंज्यूमर सामान के लिए था। जिसकी वसूली के लिए वारंट जैसी प्रक्रिया का उपयोग ही नहीं किया जा सकता।
कर्जों की वसूली के लिए बैंकों से आरआरसी जारी होने के बाद कलेक्ट्रेट दफ्तर को भेजी जाती है। यहां से संबंधिक एसडीएम के माध्यम से तहसील के ऋण वसूली अमले को मांग सूची जारी करने की अनुमति प्रदान की जाती है। भोपाल में इस प्रक्रिया का पालन नहीं हो रहा है। तहसील दफ्तर में अड्डा जमाए बैठे वसूली एजेंट खुद की सील ठप्पे लगाकर फर्जी हस्ताक्षरों से मांग सूची जारी कर देते हैं। फर्जी पुलिस वालों को भेजकर डिफाल्टरों को धमकाया जाता है। आईडीएफसी बैंक से जुड़ी कुछ वसूली एजेंसियों ने तो कर्ज वसूली के लिए गुंडों को नौकरी पर रख लिया है। इनमें सहयोग ,विसर्प, श्री जैसी एजेंसियों के मुश्ताक खान,लोकेश शर्मा और उनके सहयोगियों ने छीना झपटी के साथ माफियागिरी भी शुरु कर दी है। बताते हैं कि रूपाली यादव नाम की एक डिफाल्टर की कार इन्हीं एजेंटों ने धमकाकर कुर्क कर ली और उसे बाजार में बेच दिया। इसी तरह से आईडीएफसी बैंक के यार्ड में खड़ी तीन अन्य कारें भी कोरोना काल के बाद कुर्क की गईं हैं। सहयोग नाम की एजेंसी के अमित ठाकुर के ससुर पुलिस में थे और इसका लाभ लेकर वह लोन वसूली के लिए पुलिस का झांसा दिखाता रहता है। आईडीएफसी बैंक के मैनेजर सुजीत सिंह और रोहित शर्मा कथित तौर पर इन एजेंटों को संरक्षण भी देते हैं और जरूरत होने पर उनके लिए वित्तीय मदद भी मुहैया कराते हैं। कंज्यूमर प्रोडक्ट के लोन की वसूली के लिए तो आरआरसी जारी करने का प्रावधान ही नहीं है लेकिन ये एजेंट कथित तौर पर फर्जी कुर्की वारंट बनाकर लोगों को धमका रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि गुरु एसोसिएट नाम की वसूली एजेंसी के फरीद और गुरु भाई अपने पार्टनरों के साथ मिलकर लंबित किस्तों वाले वाहनों को तहसील से बाहर ही बेच देते हैं। तहसील के नोटिसों के आधार पर डिफाल्टरों को धमकाया जाता है। कई ग्राहकों ने तो राजधानी के पुलिस थानों में इस गुंडागिरी के विरुद्ध प्रकरण भी दर्ज कराए हैं। अशोका गार्डन समेत कई पुलिस थानों में ये प्रकरण जांच के बाद दर्ज किए गए हैं ।तहसीलदार को अनाप शनाप जानकारियां देकर सहयोग एजेंसी के सुजीत सिंह ने तो कथित तौर पर आठ दस ग्राहकों के बैंक खाते भी सीज करवा दिए हैं ।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी एजेंटों के माध्यम से की जा रही इस अवैध वसूली और गुंडागर्दी के बारे में पूछे जाने पर तहसीलदार मनीष शर्मा ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश की वजह से कुर्की की प्रक्रिया रोक दी गई है। डिफाल्टरों को मांग पत्र जरूर भेजे जा रहे हैं क्योंकि हम किसी को कर्ज जमा करने से रोक नहीं सकते। श्री शर्मा ने कहा कि बैंकों की वसूली पर हमें प्रोत्साहन राशि मिलती है जो कि बाकायदा शासन की ओर से वेतन के अलावा जारी होती है। कलेक्टर के ब्रिक्स फंड में भी कर्ज वसूली का एक हिस्सा जमा होता है। इस वजह से हम लोग कर्ज वसूली को प्राथमिकता देते हैं। हाईकोर्ट जब अनुमति देगा तो कुर्की की कार्रवाई वसूली नियमों के अनुसार ही की जाएगी।
This matter fully Court of competent.
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