मीडिया के शोर में प्रेस की साख आज भी कायमःकुलपति केजी सुरेश

भोपाल,07 मार्च(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)। सोशल मीडिया और डिजिटल क्रांति के दौर में पत्रकारों की समाज के प्रति संवेदनशीलता और लोक दायित्व का भाव ही प्रेस की पहचान है। प्रेस ने बड़ी हद तक अपनी इस साख को बचाकर रखा है। तकनीक और भाषा के सहारे चलने वाला दुष्प्रचार कभी लोकदायित्व से भरी प्रेस की जगह नहीं ले सकता।इसके बावजूद पत्रकारिता की मुख्य धारा यदि आज कहीं सवालों के घेरे में है तो उसे अपनी सार्थकता बनाए रखने के लिए खुद में बदलाव लाना होगा।प्रदेश के मूर्धन्य आंचलिक पत्रकार स्वर्गीय भुवन भूषण देवलिया की स्मृति में आयोजित व्याख्यान माला में पं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति के.जी. सुरेश ने प्रमुख वक्ता के रूप में ये विचार व्यक्त किए।

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय परिसर में आज रविवार को जूम एप और फेसबुक लाईव पर (पत्रकारिता का लोक दायित्व) विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में प्रोफेसर के.जी. सुरेश के अलावा अमर उजाला डिजिटल के संपादक जयदीप कार्णिक, भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी, पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर, ने अपने विचार व्यक्त किए। लगातार दसवें वर्ष हुए इस आयोजन में विषय का प्रवर्तन वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया ने किया। इसके अलावा वरिष्ठ पत्रकार राजेश सिरोठिया. और वरिष्ठ पत्रकार अजय त्रिपाठी ने श्री देवलिया जी के साथ जुड़ीं यादों के संस्मरण सुनाए।इस अवसर पर सागर के वरिष्ठ पत्रकार विनोद आर्य को स्वर्गीय भुवन भूषण देवलिया स्मृति अलंकरण से सम्मानित किया गया। इसमें आंचलिक पत्रकारों के लिए ग्यारह हजार रुपए नकद, शाल श्रीफल और स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया जाता है। मंच संचालन युवा पत्रकार आदित्य श्रीवास्तव ने किया।

प्रो.के.जी.सुरेश ने कहा कि कोई भी नागरिक अभिनंदन हमेशा प्रायोजित सम्मानों से ज्यादा मूल्यवान होता है। नागरिक अभिनंदन की कसौटी हमेशा ठोस होती है। मुझे स्वर्गीय देवलिया जी से मिलने का अवसर तो प्राप्त नहीं हुआ लेकिन उनके बारे में जो पढ़ा और उनके छात्रों में समाज के प्रति जो प्रतिबद्धता देखी उससे मालूम चलता है कि वे आंचलिक पत्रकारिता के पुरोधा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज एक शिक्षक के नाते मुझे लगता है कि पत्रकारों की चयन प्रक्रिया पर हमें विशेष गौर करना होगा। हम पत्रकारों को भाषा और तकनीक के आधार पर बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं लेकिन उनकी समाज के प्रति संवेदनशीलता पर गौर नहीं करते।

श्री केजी सुरेश ने कहा कि समाज के बीच जनसंचार कायम करने के लिए हमें सामुदायिक रेडियो को बढ़ावा देना होगा। आज बोलचाल की भाषा में कहा जाता है कि पत्रकार तो पक्षकार हो गए हैं जबकि उनका तो एक ही पक्ष होता है वो है जनपक्ष या लोकपक्ष। मैं स्वयं तीन दशकों तक पत्रकार रहा हूं इस आधार पर कह सकता हूं कि रोज शाम को टीवी की बहसें पत्रकारिता नहीं हैं। ये बात भी सही है कि टेबल टाप रिपोर्टिंग मीडिया की मजबूरी है लेकिन यदि वो जमीनी स्तर की सच्चाई उजागर नहीं करती तो उसका महत्व कुछ नहीं। मुख्यधारा का मीडिया यदि अपने भीतर बदलाव नहीं लाएगा तो आगे चलकर उसका महत्व ही समाप्त हो जाएगा। जमीनी स्तर पर मीडिया को लेकर कई प्रयोग चल रहे हैं। यदि उन मुद्दों को नहीं उठाया जाएगा तो पढ़ने देखने के प्रति लोगों का लगाव नहीं बढ़ाया जा सकेगा। आज ब्लॉगों और यू ट्यूब पर पाठकों और दर्शकों की रुचि की सामग्री बढ़ती जा रही है। पाठकों की ये बदलती अभिरुचियां प्रेस के लिए खतरे की घंटी बन गई है। उन्होंने कहा कि प्रेस की 70 फीसदी आय विज्ञापनों से होती है, ऐसे में लोक दायित्व के भाव को बचा पाना कठिन हो जाता है। जनता को भी इस मुद्दे पर गौर करना होगा कि वह ऐसे प्रेस को संबल दे जो केवल जनता के हित के लिए काम करता हो। प्रेस के हित में हमारा विश्वविद्यालय भुवन भूषण देवलिया स्मृति व्याख्यानमाला समिति के साथ काम करने के लिए तैयार है। आंचलिक पत्रकारिता को मजबूत करने के लिए यूनिसेफ के सहयोग से हम हर जिले में अच्छी पत्रकारिता को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं।

भारतीय जनसंचार संस्थान,नईदिल्ली के महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी ने कहा कि स्वर्गीय भुवन भूषण देवलिया का जीवन पत्रकारिता के लोक दायित्व का स्थापित उदाहरण है। लोकमंगल उनके संवाद का प्रमुख स्तंभ था। मीडिया की आलोचना करने से जनसंवाद का उद्देश्य पूरा नहीं होता। समाज के सभी स्तंभों में गिरावट देखी जाती है ऐसे में मीडिया अछूता नहीं रह सकता। पत्रकारिता विहीन समाज के बीच कभी भी लोक कल्याणकारी राज्य नहीं बनाया जा सकता। उन्होंने कहा कि कुछ लोग आंदोलनकारी बनकर खुद को पत्रकार बताने का प्रयास करते हैं ऐसा करके वे पत्रकारों की तपस्या पर पानी फेर देते हैं। पत्रकारिता के पीछे जनता का विश्वास प्रमुख होता है। पत्रकार तो कोई भी बन सकता है लेकिन पत्रकारिता करने वाले लोग अलग होते हैं। हमें ऐसे लोगों को संरक्षण देना होगा जो वास्तव में पत्रकारिता कर रहे हैं। इस तरह के आयोजन उन्हीं पत्रकारों को संबल देने में सहायक होते हैं। इस लिहाज से ये विमर्श बहुत मूल्यवान बन गया है।

अमर उजाला डिजिटल के संपादक जयदीप कार्णिक ने कहा कि जैसे कोई भी सच्ची खबर छुप नहीं सकती उसी तरह पत्रकारिता की गंदगी भी छुपाई नहीं जा सकती। पत्रकारिता में आत्म अवलोकन का भाव हमेशा अच्छी पत्रकारिता को जिंदा रखता है। सोशल मीडिया पर तो लोग झूठ भी प्रचारित कर देते हैं लेकिन प्रेस का संपादक केवल तथ्यों को ही प्रस्तुत करता है। यही प्रेस का महत्व भी है। उन्होंने कहा कि आज वक्त आ गया है कि हम पत्रकारिता की अर्थव्यवस्था पर भी बात करें।

पत्रकारिता का लोक दायित्व विषय पर आयोजित इस व्याख्यानमाला में विषय का प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया ने कहा कि बिल्डर माफिया और शराब के व्यापारियों ने जबसे अखबारों में घुसपैठ कर ली है तबसे समाज की जन पक्षधरता लड़खड़ाने लगी है। अच्छे अखबारों का समर्थक बाजार न होने की वजह से लोकदायित्व की लड़ाई पिछड़ जाती है। इस सबके बावजूद ये भी सच है कि यदि पत्रकार न झुकना चाहें तो कोई शक्ति उन्हें नहीं झुका सकती। आज भी पत्रकारों को थानेदार, कलेक्टर और मुख्यमंत्री को खुश करके चलना होता है, ऐसे में जो लोग समझौते नहीं करते वे पिछड़ जाते हैं। साधनों के अभाव में ये पत्रकारिता पिछड़ रही है।

अध्यक्षीय भाषण में पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि अच्छाई या बुराई हमारे ही कर्मों से निकलती हैं। हर दौर में अच्छी बुरी पत्रकारिता दोनों रहीं हैं। जो लोग किसी पार्टी के प्रवक्ता बन जाते हैं या फिर मुखबिरी करके लाभ उठाते हैं वे लोग ज्यादा खतरनाक हैं। बाजार तो हमेशा से समाज का हिस्सा रहा है,वह सहयोगी और सेवक रहे तब तक तो ठीक है लेकिन जब वह स्वामी बन जाता है तो प्रेस का लोक दायित्व भाव लड़खड़ा जाता है। उन्होंने कहा कि प्रेस काऊंसिल आज महत्वहीन हो चुकी है ऐसे में जरूरी है कि उसे समाप्त कर दिया जाए और प्रेस की स्थितियों पर नए सिरे से विचार करने के लिए तीसरे प्रेस आयोग का गठन किया जाए। प्रेस यदि साक्ष्य अधिनियम की तरह तथ्य आधारित संवाद करेगा तो उसकी विश्वसनीयता हमेशा कायम रहेगी। जनता की लोक मान्यताओं के आधार पर ही प्रेस को चौथे स्तंभ का दर्जा मिला हुआ है।

आयोजन में दैनिक दोपहर मेट्रो के संपादक राजेश सिरोठिया और आईएनएच टीवी के ब्यूरो प्रमुख अजय त्रिपाठी ने भी स्वर्गीय देवलिया जी के संस्मरण सुनाए। आभार प्रदर्शन मुख्यमंत्री प्रकोष्ठ के जनसंपर्क अधिकारी अशोक मनवानी ने किया। आयोजन में स्वर्गीय देवलिया जी की धर्म पत्नी श्रीमती कीर्ति देवलिया और पुत्र आशीष देवलिया जी ने आनलाईन भागीदारी की। उनकी बेटियों सुश्री अरुणा और अपर्णा देवलिया भी आयोजन में शामिल थीं। समिति के पदाधिकारियों ने पुष्प गुच्छ भेंटकर अतिथियों का अभिनंदन किया। इनमें श्री राजेश सिरोठिया,राजीव सोनी,बृजेश राजपूत,ओपी दुबे,राकेश पाठक,आलोक-शैलजा सिंघई एवं अन्य पूर्व छात्र भी शामिल थे।

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