विचारधारा की कंगाली से डूबती कांग्रेस

भोपाल,12 मार्च(प्रेस सूचना केन्द्र)। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने और फिर राज्य सभा भेजे जाने की तैयारी ने देश के तमाम राजनैतिक पंडितों को चकित कर दिया है। अपने समर्थक विधायको के साथ कांग्रेस छोड़ने से मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार संकट में घिर गई है। सरकार को पतन से बचाने के लिए जो डैमेज कंट्रोल के प्रयास किए जा रहे हैं उन पर गौर करें तो साफ तौर पर यही उभरता है कि कांग्रेस ने अपनी हार मान ली है और वह एक लूजर की तरह कुतर्क गढ़ने का प्रयास कर रही है।

बैंगलोर के रिसार्ट में ज्योतिरादित्य सिंधिया के जिन विधायकों को प्रशिक्षण सत्र में रखा गया है वहां जाकर सरकार बचाने की गुहार लगाने पहुंचे कमलनाथ कैबिनेट के सदस्य जीतू पटवारी ने एक पुलिस अधिकारी से बदतमीजी शुरु कर दी। प्रायोजित कैमरे के सामने की गई इस बहस को जीतू पटवारी से दुर्व्यवहार करना बताया गया। यहां प्रेस वार्ता में दिग्विजय सिंह ने कहा कि विधायकों को बंदी बनाकर रखा गया है ये लोकतंत्र की हत्या है। जबकि उनके कानूनी सहयोगी विवेक तन्खा ने कहा कि विधायकों के अपहरण को लेकर उनकी पार्टी अदालत जाएगी।

अपना सबसे बड़ा स्तंभ भरभराकर गिर जाने पर सफाई देते राहुल गांधी ने कहा कि ज्योतिरादित्य मेरे साथ पढ़े हैं मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूं। वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो गए थे इसलिए उन्होंने भाजपा में जाने जैसा कदम उठाया। वहां न तो उन्हें आदर मिलेगा और न ही वे आत्मसम्मान बरकरार रख पाएंगे।

राजनीति की इस चौपड़ पर भाजपा ने कांग्रेस को न केवल शह दी बल्कि एमपी में उसकी सरकार की नींव खोदकर उसे मात भी दे दी है। जिस विचारधारा की बात राहुल गांधी कह रहे हैं उसे देश की जनता ने बहुत पहले ही छोड़ दिया था। तभी तो देश के कई राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं और केन्द्र में लगातार दूसरी बार जनता ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को दूसरी बार सत्ता में भेजा है। जाहिर है कि उसी कड़ी में ज्योतिरादित्य का कांग्रेस छोड़ना विचारधारा के इसी पतन का उद्घोष बन गया है।

कांग्रेस की जिस विचारधारा की बात राहुल गांधी कर रहे हैं उसे तो पीवी नरसिम्हाराव की सरकार ने 1991 में ही छोड़ दिया था। तब तत्कालीन वित्तमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने जिस मुक्त बाजार वाली अर्थव्यवस्था को हरी झंडी दिखाई थी उसने कांग्रेस की खैरात बांटने वाली नीति को समाप्त कर दिया था। इंस्पेक्टर राज की समाप्ति की घोषणा करके उन्होंने ये तो बता दिया था कि देश अब नई दिशा में चल पड़ा है। देश के लोगों को पूंजी बनाने में अपना योगदान देना होगा। खैरात के नाम पर देश के गले में मुर्दा बनकर लटकने का दौर खत्म हो गया है। ये बात जरूर है कि कांग्रेस की पुरानी साम्यवादी, समाजवादी छाया वाली मानसिकता,अवसरवाद और अंग्रेजों की गुलामी भरी चापलूसी की सोच की कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार सार्वजनिक रूप से निंदा नहीं की थी। उन्होंने सिर्फ यही कहा कि आने वाले भारत के निर्माण के लिए हमें अब नए मार्ग पर चलना होगा।

इसके विपरीत राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के फैसले पर सवालिया निशान लगाते समय उनके उन समर्थक विधायकों मंत्रियों को भी दोषी ठहरा दिया जिन्होंने कांग्रेस की सोच को ठुकराने का फैसला लिया। ऐसा कहकर वे देश के उन करोड़ों लोगों की मानसिकता को भी दोषी ठहरा रहे हैं जिन्होंने भाजपा को सत्ता में भेजकर देश चलाने का अवसर दिया है। एक अपरिपक्व नेता की तरह बचकानी भूमिका निभाते राहुल गांधी ने तो लोकसभा चुनावों के दोरान बदतमीजी की सीमाएं लांघ डालीं थी। उनकी ही शैली की नकल करते हुए कमलनाथ ने मध्यप्रदेश में विधायकों, अफसरों और नागरिकों को दोषी ठहराने की मुहिम चलाई थी। शुद्ध के लिए युद्ध के नाम पर व्यापारियों को दोषी ठहराना, अफसरों के तबादले करके पोस्टिंग में मोटा चंदा लेकर उन्हें अपराधी साबित करना, पत्रकारों को दूसरा धंधा करने की सलाह देकर पूरी पत्रकारिता को कटघरे में खड़ा करना, माफिया के विरुद्ध संग्राम का शोर मचाकर हर उद्यमी को अपराधी बताने जैसी हरकतें कांग्रेस की उस मूल विचारधारा का ही हिस्सा रहीं हैं जिस पर आजादी के बाद से कांग्रेस चलती रही है। गौर से देखें तो अंग्रेजों के विरुद्ध जब देश के सामंतों जमींदारों और राजाओं ने स्वाधीनता संग्राम चलाया था तब अंग्रेजों ने शाक एब्जार्बर के रूप में कांग्रेस को खड़ा किया था। इसी कांग्रेस के हाथों देश की सत्ता सौंपकर अंग्रेजों ने परोक्ष तौर पर सामंतों और राजाओं पर निशाना साधा। बाद में इंदिरागांधी ने रोटी कपड़ा और मकान का स्वप्न दिखाकर मिलावटियों और जमाखोरों पर निशाना लगाया। अस्सी के दशक की उम्र पहुंचे कमलनाथ आज भी उसी फाम्रूले को दुहराकर शासन चलाना चाह रहे थे। जिसे देश और प्रदेश के तमाम लोगों ने ठुकरा दिया है।एमपी के विधायकों और मंत्रियों ने तो खुलकर इस विचारधारा का विरोध किया है। इसके बावजूद राहुल गांधी इसे सही बताकर ज्योतिरादित्य को गलत साबित करने पर तुले हुए हैं।

देश की आम जनता को विविधता के नाम पर जातियों, वर्गों,संप्रदायों में बांटकर देखने की सोच आज के कारोबारी दौर में कैसे जारी रखी जा सकती है। इसके बावजूद कई बार असफल साबित हो चुकी इस सोच को कांग्रेस जबरिया देश पर लादना चाह रही है।

राहुल गांधी और उनका दंभ एक पल भी विचार करने तैयार नहीं हैं कि एक साथ देश का बड़ा वर्ग उन्हें क्यों धक्के मारकर सत्ता से बाहर कर रहा है। दरअसल कांग्रेस की विचारधारा मौलिक नहीं थी बल्कि वह समय काल और परिस्थितियों की उपज थी। अंग्रेजों ने कांग्रेस को जिस मकसद के लिए खड़ा किया उसके तहत उसे बड़े लोगों पर हमला करके उन्हें शोषक साबित करना था और गरीब को सहलाकर उसका समर्थन हासिल करना था। इसके लिए जरूरी था कि समर्थन देने वाला बहुसंख्यक वर्ग गरीब ही रहे ताकि ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल किए जा सकें। पूंजीवाद ने इस विचारधारा को बदल दिया है। ज्योतिरादित्य का पाली बदलने का वर्तमान फैसला इसी सोच की देन है। देश को गरीबी के दलदल से बाहर निकालने वाले तमाम विचारक आज मोदी सरकार की सोच से सहमत हैं। इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के फैसले पर नहीं बल्कि राहुल गांधी की सोच पर आश्चर्य करने की जरूरत है। वे गहरी जड़ता के शिकार हैं और बंदरिया के मृत बच्चे की तरह मर चुकी सोच को गले लगाकर बैठ गये हैं। राहुल सोनिया कांग्रेस की यही जड़ता कांग्रेस के पतन की वजह बन गई है।इसी सोच पर चल रही कमलनाथ सरकार आज अल्पमत में आ चुकी है शेष कांग्रेसी राज्यों में भी यही सोच सरकारों के पतन की वजह बनने जा रही है ये आने वाले समय में साफ नजर आने लगेगा।

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