प्रदेश भर के पत्रकार संगठन कल पांच फरवरी को सरकार से अपनी नाराजगी जताने भोपाल में इकट्ठे हो रहे हैं। उनकी नाराजगी की वजह सरकार की ओर से दिए जाने वाले विज्ञापनों में मनमानी कटौती करना है। पूर्व की शिवराज सिंह सरकार को विज्ञापन वाली सरकार बताकर सत्ता में आई कमलनाथ सरकार शुरु से प्रेस विरोधी रही है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की प्रेस के प्रति बदनीयती को देख चुकने के बावजूद ढेरों पत्रकारों ने कांग्रेस को सत्ता में लाने का एजेंडा चलाया था। इन्हीं पत्रकारों ने छिंदवाड़ा मॉडल को प्रदेश के विकास का राजमार्ग बताया था। ये वही पत्रकार थे जो शिवराज सिंह चौहान की सरकार की नालायकियों पर भी वाहवाही कर रहे थे। शिवराज की भाजपा भी उन्हीं पत्रकारों पर लट्टू थी जो अंधाधुंध कर्ज लेकर किए जा रहे विकास को प्रदेश का भविष्य बता रहे थे। हर साल तकरीबन पांच सौ करोड़ रुपए विज्ञापन के नाम पर खर्च करके शिवराज सरकार ने सौजन्य का वातावरण बनाया था। ये पांच सौ करोड़ रुपए प्रदेश के दो लाख दस हजार करोड़ के बजट का बहुत छोटा हिस्सा होता था। ये जानते बूझते कमलनाथ सत्ता में आने के बाद से प्रेस को जूता दिखा रहे हैं। यही वजह है कि पत्रकार उनसे खफा हैं और वे कमलनाथ विहीन सरकार की मांग कर रहे हैं।
भाजपा को विज्ञापन वाली सरकार बताने वाले कमलनाथ ने भी सत्ता में आने के साल भर में लगभग चार सौ करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च कर दिए हैं।वित्तीय वर्ष में ये राशि पांच सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी होगी। अपनी इस हिकमत अमली में प्रबंधन की महारथ दिखाते हुए कमलनाथ ने लगभग बारह हजार पत्रकारों का टेंटुआ दबा दिया है। इन पत्रकारों के छोटे छोटे अखबार सरकार की ओर से मिलने वाले लगभग साठ हजार रुपए सालाना के सहारे परिवार चलाते थे और लोकतंत्र की जय जयकार करते थे। इसमें आधी राशि वह थी जो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती थी। लगभग नाममात्र की धनराशि के सहारे ये छोटे पत्रकार लोकतंत्र के नाम पर लूट करने वाले अफसरों और बाबुओं की खैरखबर लेते रहते थे। आज वे सरकार के खिलाफ लामबंद क्यों हैं इस रहस्य को समझना कठिन नहीं है।
कांग्रेस की राजमाता इंदिरा गांधी ने सरकारीकरण और उद्योगों के राष्ट्रीयकरण को जिस तरह देश का भाग्य विधाता बताया था उसकी पोल खुद कांग्रेसी ही खोल चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह ने जिस तरह नरसिम्हाराव की सरकार के वित्तमंत्री रहते हुए इस सरकारीकरण से मुक्ति का जो अभियान चलाया वो आज 29 साल बाद भी अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाया है।वे कहते थे कि इंस्पेक्टर राज अब कभी नहीं लौटेगा। इसके बावजूद कांग्रेस की भ्रष्ट सरकारें हों या फिर कांग्रेस की पूंछ पकड़ू शिवराज सिंह चौहान जैसी सरकारें कोई भी भ्रष्टाचार के राजमार्ग को छोड़ने तैयार नहीं हैं। कमलनाथ ने तो आपातकाल के दौरान अपनाए गए फार्मूले का इस्तेमाल करके उस इंस्पेक्टर राज की वापिसी कर दी है।
शिवराज सिंह चौहान की अति लोकप्रिय सरकारों ने कर्ज लेकर विकास के नाम पर पैसा बांटने का जो महारथ हासिल किया था उससे खैरात तो बंटती रही लेकिन विकास का ढांचा तैयार नहीं हो सका। आधारभूत ढांचे के विकास के नाम पर कर्ज लेकर शिवराज सरकार ने ढेरों कल्याणकारी योजनाएं चलाईं जिसकी वजह से लोगों में आज भी शिवराज के प्रति सदाशयता का भाव बना हुआ है। इसके बावजूद आय के आत्मनिर्भर संसाधन नहीं बन सके हैं। भारी बेरोजगारी से जूझ रहे प्रदेश को ये हकीकत अब समझ आ रही है जब कमलनाथ सरकार ने फोकट धन बांटने वाली योजनाएं बंद करना शुरु कर दीं हैं। इसके बावजूद सरकारी तंत्र की आड़ में खजाना उलीचने की परंपराएं आज भी जारी हैं।
यही वजह है कि कमलनाथ सरकार ने भी सत्ता में आने के बाद खजाना लूटना जारी रखा है। सही मायनों में कमलनाथ सरकार दोहरी लूट कर रही है। सरकारी खजाने को लूटने वालों पर अंकुश लगाने के बजाए उसने तबादलों और पोस्टिंग का जो बेशर्मी भरा नंगा नाच किया उसने खजाने को बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया है। हर तबादला भारी भरकम चंदा लेकर ही किया गया। ये अफसर जब नई पोस्टिंग पर गए तो उसका खर्च प्रदेश सरकार को वहन करना पड़ा। कई पदों पर बड़े अफसर तो दो से तीन करोड़ रुपए तक की रिश्वत लेकर गए थे इसलिए उन्होंने नया पद संभालते ही वसूलियां शुरु कर दीं। यही वजह है कि प्रदेश का खजाना तो खाली होता गया पर रिश्वतखोरों की चांदी हो गई। ये सब उस दौर में हुआ है जब कमलनाथ मिलावटखोरों और माफिया के विरुद्ध अभियान चला रहे हैं। अफसरों ने इस आड़ में प्रदेश को भरपूर लूटा क्योंकि वे तो इसके लिए सरकार को चंदा पहले ही दे चुके थे।
शिवराज सिंह सरकार से सुविधा शुल्क लेने में मगन प्रेस इन सब गड़बड़झाले की रिपोर्ट करने को तैयार नहीं है। वह आज भी सोच रही है कि कमलनाथ कभी तो पसीजेंगे। आखिर उनकी भी पार्टी को चुनाव में जाना है। वे आज नहीं तो कल शिवराज की वही परिपाटी शुरु कर देंगे जिसने प्रेस को सुविधाभोगी बनाकर घरों तक सीमित कर दिया था।
कमलनाथ की सरकार हर वित्तीय वर्ष में सरकारी अमले के वेतन पर 75 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है। उसे इस अमले से एक लाख अस्सी हजार करोड़ की आय का अनुमान था।वित्तमंत्री तरुण भानोट ने डींगे हांकते हुए दो लाख दस हजार रुपए खर्च करने का दावा किया था। उनका कहना था कि हम वसूलियां इतनी ज्यादा करेंगे कि विकास के लिए इससे ज्यादा राशि जुटा लेंगे। इसके विपरीत सरकार की बदनीयती के चलते राज्य का खर्च भी नहीं निकल पाया है। उलटे सरकार ने लगभग इक्कीस हजार करोड़ का नया कर्ज ले डाला है। ये कर्ज भी भारी ब्याज पर लिया गया है।
बैंक डिफाल्टरों से चंदा वसूली के लिए उन्हें सरकारी ठेकों में शामिल करके सरकार और उसके मंत्रियों ने जो चंदा वसूला है उससे वे टाकीज और अस्पताल खरीद रहे हैं। पांच सितारा होटलें बना रहे हैं। उद्योगों में भागीदारी बढ़ा रहे हैं। प्रदेश के लोगों को वे खजाना खाली होने का रोना सुना रहे हैं।
सरकार के सामने विज्ञापनों का रोना रोने वाले पत्रकार ये पूछने को भी राजी नहीं हैं कि प्रदेश के मालिक कहलाने वालों के पास ऐसी कौन सी जादू की छड़ी है जो उन्होंने हजारों करोड़ रुपयों की दौलत जुटा ली है। उनके बेटे नशे में डूबे रहने के बाद भी हजारों करोड़ रुपयों की संपत्तियों के मालिक बन बैठे हैं। देश की जांच एजेंसियों ने उनके रिश्तेदारों से जो बयान लिए हैं उनमें साफ हो चुका है कि ये दौलत कहां से जुटाई गई है,इसके बावजूद प्रदेश के अखबार आईफा अवार्ड को प्रदेश का भाग्य संवारने का फार्मूला बता रहे हैं। पत्रकारों को चाहिए कि वे दुर्घटना और षड़यंत्रों से आई कमलनाथ सरकार की असलियत प्रदेश की जनता के सामने उजागर करें। जनता का विश्वास जीतें और अपने पैर मजबूत करें। अच्छी पत्रकारिता के लिए इससे अच्छा समय शायद फिर कभी न मिल पाएगा।
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