कमलनाथ की राजनीति को नसीहत की दरकार

गुलाम भारत में अंग्रेजों के ऊटपटांग कानूनों के विरोध में तरह तरह से विरोध किया जाता रहा है। उसकी वजह ये थी कि अंग्रेजी सल्तनत ने भारत को लूटने के लिए वे कानून बनाए थे। बाद में जब एओ ह्यूम की कांग्रेस को गांधीजी ने अंग्रेजों से संवाद का माध्यम बनाया तब कानूनों का विरोध अदालतों में भी किया जाने लगा। आजाद हिंदुस्तान में गांधी कांग्रेस की नकलची इंदिरा कांग्रेस संसद में पारित कानूनों को लेकर जनता को भड़काने में लगी है। इंदिरा कांग्रेस के नेता अपनी इस शैली से खुद को महात्मा गांधी की कांग्रेस बताना चाह रहे हैं। वो ये तब कर रहे हैं जब पूरा देश एक नई दिशा में चल पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मेक इन इंडिया उत्पादन बढ़ाकर पूंजी का उत्पादन करना चाहता है जबकि कांग्रेस का मानस आज तक थानेदारी के माहौल से आगे नहीं बढ़ पाया है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कार्यशैली की लाखों आलोचनाएं की जा सकती है। बेशक वे एक सफल शासक नहीं साबित हो पाए। इसके बावजूद वे एक ऐसे मुख्यमंत्री जरूर साबित हुए जिसने प्रदेश को आगे बढ़ने का अवसर दिया। जिसने प्रदेश के लोगों के कामकाज में बेवजह अड़ंगे नहीं लगाए। इसके विपरीत मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार आपातकाल की मनःस्थिति से बाहर नहीं आ पा रही है। सरकार का शुद्ध के लिए युद्ध अभियान हो या बजट की कैपिंग करने की कार्यशैली ये दोनों ही चौकीदारी के मानस से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह चिल्ला चिल्लाकर बोलते रहे कि देश में अब इंस्पेक्टर राज की वापिसी नहीं होगी। इसके बावजूद उनकी ही पार्टी की सरकार ने मध्यप्रदेश को थानेदारी के जाल में उलझा दिया है। ये थानेदारी भी छुप छुपकर की जा रही है। जिस नागरिकता कानून को संसद ने बहुमत से पारित किया उसके खिलाफ राज्य सरकार कुछ ऐसा माहौल बना रही है जैसे संसद में बैठे लोग अंग्रेज हों और उनकी नियत देश का शोषण करने की है। जबकि हकीकत ठीक विपरीत है। खुद को उद्योगपति कहलाने वाले कमलनाथ बेहद कमजोर व्यवस्थापक साबित हो रहे हैं। पिछली सरकार की देखासीखी करके उनके वित्तमंत्री तरुण भानोट ने भले ही दो लाख 14 हजार करोड़ का बजट बना दिया हो लेकिन कमोबेश सभी विभागों को बजट की राशि देने में कटौती कर दी है। हर विभाग को कम से कम चालीस फीसदी बजट कम दिया जा रहा है। बजट की इस कटौती से हाहाकार मचा है। इससे निपटने के लिए उन्होंने मुस्लिमों को नागरिकता कानून के विरोध में भड़काना जारी रखा है। उनके एक विधायक आरिफ मसूद इस अभियान के सूत्रधार हैं। उन्होंने पुराने भोपाल के इलाकों में इतनी दहशत फैलाई कि लोगों ने अपनी दूकानें बंद रखने में ही भलाई समझी। विधायक आरिफ अकील के क्षेत्र में व्यापारियों ने बेखौफ होकर अपना कारोबार जारी रखा लेकिन आरिफ मसूद के इलाके में भारत बंद को सफल दिखाने के लिए दूकानें बंद कराई गईं। सरकार की शह इतनी दबी छुपी है कि पूरे प्रदेश में पुलिस तंत्र का एक हिस्सा बंद का समर्थन करते नजर आया। पुलिस के कुछ आला अधिकारियों का तो कहना था कि लोग यदि कानून का विरोध कर रहे हैं तो फिर उन्हें क्यों रोका जाए। ये पहली बार हो रहा है कि कोई सरकार अपने ही देश के कानून के विरोध को शह दे रही हो। निश्चित रूप से ये समझदारी भरा कदम नहीं है। इससे केन्द्र राज्य के बीच बेवजह कटुता का माहौल बन रहा है। मध्यप्रदेश की जनता के एक हिस्से ने कांग्रेस को सत्ता में काम करने का अवसर दिया है। उसका भी सोच प्रदेश का विकास करना है। जबकि राज्य सरकार इस सत्ता का उपयोग केन्द्र से टकराव के लिए कर रही है। उसकी इस खुन्नस से राज्य के हित प्रभावित हो रहे हैं। प्रदेश के लोगों की जीवचर्या में सहयोग देने की बात आती है तो कमलनाथ और उनके मंत्री कहने लगते हैं कि खजाना खाली है। जबकि राज्य को हर महीने उतनी ही आय हो रही है जितनी पिछली सरकार के कार्यकाल में हो रही थी। राज्य सरकार जीएसटी कलेक्शन बढ़ाने का माहौल भी नहीं बना पा रही है। मुख्यमंत्री अपने सचिवालय में मैराथन बैठकें करते रहते हैं। वे अधिकारियों पर अधिक राजस्व जुटाने के लिए दबाव बनाते हैं जबकि इसके बावजूद खजाने की आय नहीं बढ़ रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि तबादले और पोस्टिंग के धंधों की वजह से राज्य की आय का एक बड़ा हिस्सा काला धन बना रहा है। उसे रोकने के लिए सरकारी तंत्र छापेमारी कर रहा है। इस पूरी कवायद ने प्रदेश में तनाव के हालात बना दिए हैं। राज्य सरकार की इस अज्ञानता भरी कवायद की वजह से राज्य का माहौल तनावपूर्ण है। सीएए का विरोध करके राज्य सरकार ने खुद को फिजूल की उलझन में फंसा लिया है। प्रदेश के जिम्मेदार लोगों को चाहिए कि वे सरकार को नसीहत दें और प्रदेश की विकास यात्रा प्रशस्त करें।

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