आपातकाल की बूढ़ी कुढ़न

लोकस्वामी अखबार पर तालाबंदी और संपादक जीतू सोनी पर दस हजार रुपए का इनाम घोषित करके कमलनाथ सरकार ने आपातकाल की यादें ताजा कर दीं हैं। एक बार फिर ये साबित हो गया है कि देश में केवल दो वर्ग हैं एक शोषक और दूसरा शोषित। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने जिस एसके मिश्रा छोटू को आईएएस बनाया था वे शिवराज सिंह चौहान के प्रमुख सचिव रहे और भ्रष्टाचार के सबसे बड़े संरक्षक भी रहे। पूरी आईएएस बिरादरी लंबे समय तक केवल इसलिए सदमे में रही क्योंकि उसे छोटू मिश्रा के निर्देशों का पालन करना पड़ा। रिश्वत में सोने और रत्नों की रिश्वत लेने वाले छोटू मिश्रा को तमाम शिकायतों के बावजूद शिवराज ने अपने से दूर नहीं किया। तमाम झंझावातों के बीच छोटू मिश्रा संवाद की कड़ी बने रहे। दिग्विजय सिंह को सत्ता का लाभ दिलाते रहे छोटू कांग्रेस के गुटीय संतुलन में भी प्रमुख कड़ी बने रहे। मुकेश नायक के जीजा होने के कारण वे उनकी पवई से जीत के शिल्पकार भी बने। शिवराज सिंह चौहान के वित्तीय सलाहकार होने के कारण ये जीजा साले भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में मलाई छानते रहे। वित्तीय प्रबंधन की यही एकमात्र कला आज भी उन्हें कमलनाथ सरकार की सबसे पावरफुल शख्सियत बना रही है। वे आज भी इतने ताकतवर हैं कि जैसे ही इंदौर के जांबाज जीतू सोनी ने अपने अखबार में उनकी अय्याशी की कहानी छापी तो मौजूदा सरकार में भूचाल आ गया। बात दरअसल हरभजन सिंह की ब्लैकमेलिंग की नहीं है। दरअसल जीतू सोनी ने मध्यप्रदेश की सत्ता की उस चाभी को घुमा दिया जिससे कई सत्ताधीशों की तिजोरियों का राजमार्ग जुड़ा हुआ है। जीतू सोनी के पास जो सबूत हैं उनकी अगली किस्तें यदि जारी हो जातीं तो प्रदेश और देश को कर्ज के दलदल में घसीटने वाले उन सफेदपोशों के चेहरों पर कालिख पुत जाती जो लंबे समय से गद्दारी की इबारत लिख रहे हैं। इसमें भाजपा और कांग्रेस के वे तमाम चेहरे हैं जिन्हें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से प्रदेश पर शासन करने का अवसर मिला। जीतू सोनी का अखबार जब कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ खबरें छापता था तो इंदौर में तनाव हो जाता था। आज सतही तौर पर ही सही कैलाश विजय वर्गीय लोकस्वामी पर पड़े छापे की निंदा कर रहे हैं।दरअसल जीतू सोनी और उनकी पत्रकारिता को लंबे समय से देखने वाले पत्रकार भी जानते हैं कि माई होम को कैसे पुलिस महकमे ने समाज के नाबदान की तरह इस्तेमाल किया। माईहोम एकमात्र ऐसा डांस बार है जहां हर वक्त पुलिस की निगरानी रहती थी। इंदौर के तमाम नवधनाड्य वहां आते जाते रहते हैं। ऐसा दो दशकों से ज्यादा समय से चल रहा था। ये सारा तमाशा समाज के लिए इतना उपयोगी था कि अनुराधा शंकर जैसी दबंग पुलिस अधिकारी ने भी कभी इसे छेडने की कोशिश नहीं की। कमलनाथ ने जिन मनगढ़ंत कहानियों से इस अड्डे को तबाह करने का प्रयास किया है उसके नतीजे इंदौर के लोग अच्छी तरह जानते हैं। इंदौर वही शहर है जहां अनिल धस्माना पर जानलेवा हमला हुआ था। खुद रुचिवर्धन मिश्रा को इस मामले की गंभीरता बता दी गई थी। इसके बावजूद उन्होंने सरकार के इशारे पर अपने ही विभाग की बरसों की मेहनत को पलीता लगाने का फैसला कर लिया। हालांकि इसका थोड़ा बहुत आभास उन्हें भी हो गया था तभी जब वे प्रेस वार्ता में सरकार की गढ़ी कहानी सुना रहीं थीं तब उनके हाथ कांप रहे थे। जीतू सोनी को फरार करने और दस हजार रुपए का इनाम घोषित करने के पीछे कमलनाथ सरकार की मंशा केवल आतंक फैलाने की है। जैसा कि वह खाद्य पदार्थों में मिलावट के नाम पर रासुका लगाने के अभियान में कर चुकी है।

इंदिरा गांधी की जमाखोरों के खिलाफ चलाई गई मुहिम की नकल बरसों बाद दुहराने के बाद भी कमलनाथ को वांछित सफलता नहीं मिल पा रही है। आपातकाल का हश्र पूरे देश के सामने है। कमलनाथ तो इंदिरा गांधी के समान बेदाग भी नहीं हैं। इसके बावजूद वे उसी पिटी फिल्म को दुबारा सुपरहिट कराने का ख्वाब पाले बैठे हैं। देश के असली उद्यमियों के विरुद्ध चलाई गई इस मुहिम की कुढ़न कोई अच्छे नतीजे लाएगी ये नहीं कहा जा सकता। दरअसल ये फर्जी उद्योगपतियों या कहा जाए देश के लुटेरों से जनता के संग्राम की शुरुआत कही जा सकती है। जीतू सोनी को तो माईहोम जैसे प्रोजेक्ट की वजह से प्रताड़ित किया जा सकता है लेकिन सूचना क्रांति के इस दौर में सच्चाई को छुपाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। फर्जी उद्योगपतियों की उद्यमिता के कारनामे भी जल्दी ही जनता जान जाएगी।तब एक नहीं हजारों जीतू सोनी खड़े होंगे और प्रदेश की पुलिस भी उनका मुकाबला नहीं कर पाएगी।

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