प्रज्ञा से झुलसने वालों को रद्दी में फेंको

भोपाल की सांसद प्रज्ञा सिंह को भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय की समिति का सदस्य बना दिए जाने से विघ्न संतोषी ताकतों के पिछवाड़े मिर्ची लग गई है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब साध्वी प्रज्ञा सिंह के प्रति सार्वजनिक तौर पर नाराजगी व्यक्त की थी तो उन्हें रक्षा समिति जैसे महत्वपूर्ण कार्य की जवाबदारी कैसे दी जा सकती है। भोपाल की सांसद से चिढ़ने वालों की फेरहिस्त बड़ी लंबी है। जबसे साध्वी प्रज्ञा को भाजपा ने सांसद के रूप में प्रोजेक्ट किया था तबसे उन्हें विवादों में घसीटने के प्रयास लगातार होते रहे हैं। अब जबकि वे 21 सदस्यों वाली रक्षा समिति की सदस्य बनाई गईं हैं तब यही विघ्न संतोषी अपना पिछवाड़ा संभालते हुए उछलने लगे हैं। साध्वी प्रज्ञा सिंह को 2008 में हुए मालेगांव बम धमाके का आरोपी बनाकर कांग्रेस के कुछ षड़यंत्रकारियों ने हिंदू आतंकवाद की नई परिभाषा गढ़ी थी। इसे खूब प्रचारित किया गया। कर्नल श्रीकांत पुरोहित को भी इस बम धमाके में आरोपित किया गया था जिन्हें बाद में निर्दोष पाया गया और अब वे सेना में दुबारा अपना काम संभाल चुके हैं। दरअसल तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल और उसके बाद कांग्रेस के ही सुशील कुमार शिंदे ने इस बम धमाके को हिंदू बनाम मुस्लिम झड़प का रूप देने का प्रयास किया था। कांग्रेस के ही दिग्विजय सिंह ने इसे हिंदू आतंकवाद का नाम देते हुए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का अभियान चला दिया। देश में लंबे समय तक ये बम धमाका जातिगत वैमनस्य की वजह बना रहा। अब जबकि एनआईए की गढ़ी गई कहानी झूठी साबित हो रही है तब देश का एक बड़ा तबका इस पर संशय महसूस कर रहा है। इस मामले की सुनवाई कर रहे जज ने भी सवाल पूछा कि यदि एनआईए की कहानी झूठी है तो बम धमाका किसने किया था। दरअसल एनआईए के तत्कालीन अफसरों के माध्यम से कांग्रेस सरकार ने जिस तरह बम धमाके को साम्प्रदायिक रंग देने का प्रयास किया उससे आज भी लोग असमंजस महसूस कर रहे हैं। मालेगांव के बम धमाके में 7 लोगों की मौत हुई थी और सौ से अधिक लोग जख्मी हो गए थे। इस धमाके के वास्तविक आरोपियों को तो जांच के दायरे से बाहर कर दिया गया और आतंक के खिलाफ काम करने वालों को आरोपी बना दिया गया। जाहिर है कि अब जबकि साध्वी प्रज्ञा को देश की रक्षा समिति का सदस्य बना दिया गया है तब उनके खिलाफ षड़यंत्र रचने वाला बड़ा समूह आहत महसूस करेगा ही। अब समय आ गया है कि जब भारत की सेना और नागरिकों पर हिंदू आतंकवाद जैसा लांछन लगाने में असफल होने के बाद जो लोग बैचेन हो रहे हैं उनकी आपत्तियों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाना चाहिए। भारत में आतंकवाद फैलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई होने से जो लोग परेशान महसूस करते हैं उनकी चिंता की जाएगी तो फिर भारत में भी एक नया पाकिस्तान बन जाएगा। आज पाकिस्तान ऐसे ही आतंकवादियों से परेशान है। भारत में इस आतंक की कमर तोड़ने के लिए सेना और सरकार को जो भी उपाय बन पड़ें बेखौफ होकर करने चाहिए। इसमें किसी आतंकवादी के मानवाधिकारों की चिंता करने वालों की भी खबर ली जाना जरूरी है।जो लोग आतंकवाद की पैरवी करते फिरते हैं उनके लिए साध्वी प्रज्ञा भारती के रक्षा समिति में चयनित होने पर चिंतित होना लाजिमी है। देश की सुरक्षा के प्रति चिंतन करने का काम वही लोग कर सकते हैं जो देश के लिए मरने मिटने के लिए तैयार हों। अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार हों। साध्वी प्रज्ञा सिंह मालेगांव बम धमाके के प्रताड़ना तंत्र से चोखी साबित होकर वापस आईं हैं। भोपाल की जनता ने षड़यंत्रकारी दिग्विजय सिंह को भारी मतों से हराकर उन्हें संसद भेजा है। महात्मा गांधी की हत्या निश्चित तौर पर निंदनीय और गलत थी। देश महात्मा गांधी की क्षति पूर्ति कभी नहीं कर सकता। इसके बावजूद नाथूराम गोड़से की देशभक्ति पर सवाल खड़े करना उन लोगों की सीमित दृष्टि का ही नतीजा है जो खरगोश की तरह आंखें बंद करके दुश्मन के चले जाने का भ्रम पालते फिरते हैं। साध्वी प्रज्ञा के बयानों पर लाख सवाल उठाए जाएं पर उनकी देशभक्ति शंका से परे है। रक्षा मंत्रालय या भारत सरकार के जिन भी लोगों ने साध्वी को ये महत्वपूर्ण जवाबदारी दी है उन्होंने देश को संदेश देने का प्रयास किया है कि वे रक्षा के मुद्दे पर किन्हीं भी सीमाओं तक जा सकते हैं। निश्चित रूप से भारत में आतंक फैलाने की मंशा रखने वालों के लिए ये कड़ा संदेश है।इसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है।

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