भोपाल 11 अक्टूबर(प्रेस सूचना केन्द्र)। वन मंत्री उमंग सिंघार का कहना है कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता बटोरने की ललक के चलते राज्य सरकार के खजाने को 450 करोड़ का नुकसान पहुंचा था। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड में अपना नाम दर्ज कराने के चक्कर में शिवराज ने जुलाई 2017 में एक ही दिन में नर्मदा किनारे 7 करोड़ पौधे लगाने का फरमान सुनाया। अधिकारी मना करते रहे, लेकिन मुख्यमंत्री की सनक के सामने किसी की नहीं चली। 30 प्रतिशत पौधे भी नहीं लगे और बजट पूरा निकाल लिया गया। कमलनाथ सरकार ने अब इस पर सख्त कदम उठाते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और तत्कालीन वनमंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार सहित 6 अधिकारियों के खिलाफ आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।
प्रदेश के वनमंत्री उमंग सिंघार ने आज पत्रकार वार्ता में शिवराज सरकार पर लगने वाले आरोपों को लेकर आज ये खुलासा किया। उनका कहना है कि अधिकारियों के रोकने के बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गिनीज बुक में नाम दर्ज कराने एक दिन में 7 करोड़ 10 लाख 39 हजार 711 पौधे लगाने का कथित झूठा रिकॉर्ड बनाते रहे। मजेदार बात यह है कि इतने सारे पौधे 20 रुपए से 200 रुपए के दर पर खरीदना दिखाया गया। इनके लिए गड्ढे करना दिखाया गया और इनके रोपण खाद्य और पानी के नाम पर भी करोड़ों रुपए निकाले गए। सरकारी रिकॉर्ड में 1 लाख 21 हजार 275 स्थानों पर 7.10 करोड़ पौधों की घोषणा की गई जबकि गिनीज बुक वल्र्ड ऑफ रिकॉर्ड को बताया गया कि मात्र 5 हजार 540 स्थानों पर 2 करोड़ 22 लाख 28 हजार 954 पौधे ही लगाए गए। यानि 3 गुना भ्रष्टाचार तो पहले ही साफ दिखाई दे रहा है। वनमंत्री का दावा है कि मात्र 5 से 7 प्रतिशत पौधे ही लगे हैं।
वनमंत्री ने पत्रकार वार्ता में कहा कि शिवराज कार्यकाल में हुए पौधा रोपण कार्यक्रम में वन विभाग के अधिकारी वनमंत्री को ही गलत जानकारियां दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि बैतूल के शाहपुर परिक्षेत्र में वृक्षारोपण की जानकारी मांगने पर अधिकारियों ने बताया था कि 2 जुलाई 2017 को 15625 पौधे रोपे गए इनमें से 11 हजार 140 पौधे जीवित हैं। जबकि 27 जून 2019 को स्वयं वनमंत्री ने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मौका मुआयना किया तो मौके पर मात्र 2343 पौधे ही जीवित मिले। इस स्थान पर पौधों के लिए गड्ढे भी मात्र 9 हजार 985 ही खोदे गए थे। उन्होनें कहा कि गलत जानकारी देने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है।
इस पूरे मामले में अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के आईएएस अधिकारी एपी श्रीवास्तव की भूमिका को संदिग्ध बताया जा रहा है। जिस समय यह घोटाला हुआ तब वे प्रमुख सचिव वित्त थे। उन्होंने ही इस वृक्षारोपण अभियान के लिए वित्तीय अनुमतियां दीं थीं। वर्तमान में श्रीवास्तव वन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं। वनमंत्री ने उन्हें ही नोटशीट लिखकर इस घोटाले की शिकायत ईओडब्ल्यू को करने के निर्देश दिए हैं। मंत्रालय में चर्चा है कि जिस अधिकारी ने स्वयं घोटाले की राशि जारी की है वह इसकी शिकायत कैसे कराएगा?
सूत्रों के मुताबिक केन्द्रीय वन मंत्रालय से प्राप्त पांच सौ करोड़ रुपए की धनराशि को राज्य के अन्य विकास कार्यों पर भी खर्च किया गया था जबकि वृक्षारोपण अभियान वन विभाग के सामान्य बजट और कई निजी संस्थाओं के जन सहयोग से पूरा किया गया था। राज्य में पहली बार नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर इतना बड़ा वृक्षारोपण अभियान चलाया गया था। ईओडब्ल्यू की जांच में ये साफ हो जाएगा कि बजट की धनराशि का किसी भी तरह दुरुपयोग नहीं किया गया था। वन विभाग की ही एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार इस अभियान में लगाए गए लगभग साठ फीसदी वृक्ष अभी भी जिंदा हैं और तीस फीसदी वृक्षारोपण हर अभियान में असफल होता ही है। ऐसे में केवल दस फीसदी वृक्षों के आंकड़ों के आधार पर रचा गया ये घोटाले का मायाजाल आगे चलकर कुछ अधिकारियों को निपटाने के साथ ही ठंडा पड़ जाएगा।
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