भोपाल,30 सितंबर(दुर्गेश रायकवार)भारतीय संस्कृति और परम्परा हमेशा से गौरवशाली रही है। हमारे परिवारों में बच्चों को देवतुल्य माना गया है। यह माना जाता है कि उनका मन कच्ची माटी सा होता है और उसे जिस सांचे में ढालो, वह वैसा ही बन जाता है। नन्हीं बच्चियों को लेकर हमारा समाज अपने जन्म से संवेदनशील रहा है लेकिन बदलते दौर में सारे मानक बदल रहे हैं और हमारी गौरवशाली संस्कृति और परम्परा को घात पहुंचा रहे हैं। इन विपरीत और शर्मनाक स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए कानून सख्त से सख्त कदम उठाता रहा है। बच्चों के साथ जिस तरह से बर्बर यौन व्यवहार किया जा रहा है, वह भारतीय समाज के लिए शर्मनाक है। बच्चों को यौन उत्पीडऩ से बचाने के लिए वर्ष 2012 में एक कानून बनाया गया था जिसे पॉक्सो कानून यानी की प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 जिसको हिंदी में लैंगिक उत्पीडऩ से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 कहा जाता है। इस कानून के बाद भी अपराधों में कमी नहीं आने के कारण कानून को और सख्त बनाया गया है। हाल ही में 2019 में पाक्सो एक्ट में संशोधन कर अपराधी को दंड दिए जाने के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं।
प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 के तहत अलग-अलग अपराध में पृथक-पृथक सजा का प्रावधान है। और यह भी ध्यान दिया जाता है कि इसका पालन कड़ाई से किया जा रहा है या नहीं। इस अधिनियम में सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय बाल संरक्षण मानकों के अनुरूप प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति यह जानता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है तो उसे इसकी रिपोर्ट नजदीकी थाने में देनी चाहिए, यदि वो ऐसा नहीं करता है तो उसे छह महीने के कारावास और आर्थिक दंड से दंडित किया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि 18 साल से कम किसी भी मासूम के साथ अगर दुराचार होता है तो वह पॉक्सो एक्ट के तहत आता है। इस कानून के लगने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त अधिनियम की धारा 11 के साथ यौन शोषण को भी परिभाषित किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई भी व्यक्ति अगर किसी बच्चे को गलत नीयत से छूता (बेड टच करता) है या फिर उसके साथ गलत हरकतें करने का प्रयास करता है या उसे पोर्नोग्राफी दिखाता है तो यह धारा 11 के तहत दोषी माना जाएगा। इस धारा के लगने पर दोषी को तीन साल तक की सजा हो सकती है।
इस कानून की धारा चार में वो मामले आते हैं जिसमें बच्चे के साथ कुकर्म या फिर दुष्कर्म किया गया हो। इस अधिनियम में सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। धारा छह के अंतर्गत वो मामले आते हैं जिनमें बच्चों के साथ कुकर्म, दुष्कर्म के बाद उनको चोट पहुँचाई गई हो। इस धारा के तहत 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अगर धारा सात और आठ की बात की जाए तो उसमें ऐसे मामले आते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग में चोट पहुँचाई जाती है। इसमें दोषियों को पाँच से सात साल की सजा के साथ जुर्माना का भी प्रावधान है।
पाक्सो एक्ट बाल संरक्षक की जिम्मेदारी पुलिस को सौंपता है। इसमें पुलिस को बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी दी जाती है। जैसे बच्चे के लिए आपातकालीन चिकित्सा उपचार प्राप्त करना और बच्चे को आश्रय गृह में रखना इत्यादि। पुलिस की यह जिम्मेदारी बनती है कि मामले को 24 घंटे के अंदर बाल कल्याण समिति की निगरानी में लाए जिससे समिति बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा सके।
इस अधिनियम में बच्चे की मेडिकल जाँच के लिए प्रावधान भी किए गए हैं। यह भी निर्देश हैं कि जाँच बच्चे के लिए कम से कम पीड़ादायक हो। मेडिकल जाँच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जाना चाहिए, जिस पर बच्चे का विश्वास हो और बच्ची की मेडिकल जाँच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए। अधिनियम में इस बात का ध्यान रखा गया है कि न्यायिक व्यवस्था के द्वारा फिर से बच्चे पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं बनाया जाए। इस नियम में केस की सुनवाई एक विशेष अदालत द्वारा बंद कमरे में कैमरे के सामने दोस्ताना माहौल में किया जाने का प्रावधान है। इस दौरान बच्चे की पहचान गुप्त रखने की कोशिश की जानी चाहिए। पुलिस की यह जिम्मेदारी बनती है कि मामले को 24 घंटे के अन्दर बाल कल्याण समिति की निगरानी में लाये। विशेष न्यायालय, उस बच्चे को दिए जाने वाली मुआवजा राशि का निर्धारण कर सकता है, जिससे बच्चे के चिकित्सा उपचार और पुनर्वास की व्यवस्था की जा सके। अधिनियम में यह कहा गया है कि बच्चे के यौन शोषण का मामला घटना घटने की तारीख से एक वर्ष के भीतर निपटाया जाना चाहिए।
पॉक्सो अधिनियम में संशोधन बाल यौन अपराध के पहलुओं से उचित तरीके से निपटने के लिए किया गया है। एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 4, 5 और 6 में संशोधन किए जाने का प्रस्ताव किया गया है, ताकि बच्चों का आक्रामक यौन उत्पीडऩ करने के मामले में मौत की सजा सहित कठोर सजा का प्रावधान हो सके। इसमें कहा गया है कि यह संशोधन, देश में बाल यौन अपराध की बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने के लिए कठोर उपाय करने की जरूरत के तहत, किया जा रहा है। इसके मुताबिक अधिनियम में 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को बच्चा परिभाषित किया गया है। यह लैंगिक रूप से निरपेक्ष कानून है। संशोधन में प्राकृतिक संकटों और आपदाओं के समय बच्चों के यौन अपराधों से संरक्षण और आक्रामक यौन अपराध के उद्देश्य से बच्चों की जल्द यौन परिपक्वता के लिए उन्हें किसी भी तरीके से हार्मोन या कोई रासायनिक पदार्थ देने के मामले में अधिनियम की धारा 9 में संशोधन किया गया है।
इस कानून के तहत बच्चों का यौन उत्पीडऩ करने वाले दोषियों को उम्रकैद के साथ मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। कानून में बच्चों का यौन उत्पीडऩ करने के उद्देश्य से उन्हें दवा या रसायन आदि देकर जल्दी युवा करने को गैर जमानती अपराध बनाया गया है। इस अपराध के लिए पाँच साल तक की कैद का प्रावधान है।
बाल पोर्नोग्राफी की बुराई से निपटने के लिए पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 14 और धारा 15 में भी संशोधन किया गया है। बच्चों से संबद्ध पोर्नोग्राफिक सामग्री को नष्ट नहीं करने/डिलीट नहीं करने पर जुर्माना लगाने का प्रस्ताव किया गया है। साथ ही, इस तरह की चीजों को अदालत में साक्ष्य के तौर पर पेश करने सहित कुछ मामलों को छोड़ कर अन्य किसी भी तरह के इस्तेमाल में जेल या जुर्माना, या दोनों सजा हो सकती है।
नए प्रावधान में चाइल्ड पोर्नोग्राफी की परिभाषा तय की गई है, जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी की फोटो, वीडियो, कार्टून या फिर कंप्यूटर जेनरेटेड इमेज को दंडनीय अपराध की जद में लाया गया है। इससे जुड़ी सामग्री रखने पर 5000 से लेकर 10 हजार रुपये तक के जुर्माने के दंड की व्यवस्था की गई है। लेकिन अगर कोई ऐसी सामग्री का व्यवसायिक इस्तेमाल करता है तो उसे जेल की सख्त सजा होगी।
इसमें व्यापारिक उद्देश्य के लिए किसी बच्चे की किसी भी रूप में पोर्नोग्राफिक सामग्री का भंडारण करने या उस सामग्री को अपने पास रखने के लिए दंड के प्रावधानों को अधिक कठोर बनाया गया है। यह संशोधन देश में बाल यौन उत्पीडऩ की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने की जरूरत के तहत सख्त उपाय करने के लिए किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश देते हुए कहा है कि वह हर जिले में विशेष न्यायालयों की स्थापना करें। इनकी स्थापना ऐसे जिलों में की जानी चाहिए जहाँ अधिनियम के तहत 100 या उससे अधिक मामले लंबित हैं। कोर्ट ने कहा कि विशेष अदालतों को 60 दिनों के अंदर-अंदर बच्चों पर यौन उत्पीडऩ के मामलों की सुनवाई शुरू करने की कोशिश करनी चाहिए। साथ ही यह भी कहा है कि वह चार हफ्तों में इसकी प्रगति रिपोर्ट दाखिल करें। यह अधिनियम पूरे भारत पर लागू होता है, पॉक्सो कानून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई, एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी उपस्थिति में होती है।
पाक्सो एक्ट को और सख्त बनाये जाने के बाद बच्चों को अधिक सुरक्षा की उम्मीद की जा सकती है। कानून के साथ-साथ इस दिशा में सामाजिक जागरूकता की भी आवश्यकता है। बच्चों के साथ दुर्व्यहार रोकने के लिए सबको सजग होना होगा क्योंकि जागरूकता से ही अपराधों पर नियंत्रण पाया जा सकेगा।
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