भोपाल,26 सितंबर(प्रेस सूचना केन्द्र)। मध्यप्रदेश में आगामी नगरीय निकाय चुनाव में नगर निगम के महापौर सहित नगर पालिका और नगर परिषद में अध्यक्ष का चुनाव अब पार्षद करेंगे। अभी तक जनता को इनके चुनाव करने का अधिकार था, लेकिन बुधवार 26 सितंबर को हुई कैबिनेट बैठक में इस पर मोहर लगा दी है कि अब पार्षद महापौर और अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। नई व्यवस्था लागू करने के लिए मध्यप्रदेश नगर पालिक अधिनियम में संशोधन किया गया है। अगले साल होने वाले नगरीय निकाय चुनाव में 20 साल बाद अप्रत्यक्ष तौर पर महापौर और अध्यक्षों का चुनाव होगा। वहीं नगरीय निकाय चुनाव के पहले होने वाले परिसीमन का समय 6 माह से घटाकर सरकार ने 2 माह कर दिया है। अभी तक परिसीमन और चुनाव के बीच का समय 6 महीने होना जरूरी था।
भाजपा ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। भाजपा को यह आशंका है कि अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर और अध्यक्षों के चुनाव हुए तो उसको नुकसान हो सकता है। जबकि कांग्रेस अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव करवाकर प्रदेश की ज्यादा से ज्यादा नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर परिषदों में अपने समर्थकों को महापौर और अध्यक्ष बनाना चाहती है। मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनावों का गणित देखा जाए तो दोनों ही प्रमुख पार्टियों के 40-40 प्रतिशत पार्षद जीतते हैं। वहीं, निर्दलीय और अन्य दलों के पार्षद 20 प्रतिशत पर ही सिमट जाते हैं। कमलनाथ सरकार के इस फैसले के बाद कांग्रेस समर्थित पार्षदों के अलावा निर्दलीय और अन्य दल के पार्षद भी सत्ताधारी दल के साथ आना चाहेंगे। जिसके चलते प्रदेश के ज्यादातर नगरीय निकायों में कांग्रेस समर्थित जनप्रतिनिधियों की जीत होगी।
कमलनाथ कैबिनेट ने इसके अलावा आपराधिक छवि वाले पार्षदों पर सख्ती करने का प्रस्ताव भी पारित किया है। अब ऐसे पार्षदों के दोषी पाए जाने पर उन्हें 6 माह की सजा और 25 हजार जुर्माने का प्रावधान सरकार ने किया है। कुल मिलाकर देखा जाए तो अभी तक प्रत्यक्ष प्रणाली से नगर निगम महापौर और नगरपालिका तथा नगर परिषद अध्यक्ष को जनता सीधे चुनती थी लेकिन बुधवार को नगरीय निकाय चुनाव को लेकर आए कैबिनेट के नए फैसले के तहत अब जनता सीधेतौर पर महापौर और अध्यक्ष का चुनाव नहीं कर सकेगी, इन्हें अब जनता के चुने हुए पार्षद ही चुनेंगे।
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