सिंघार की दहाड़ से आदिवासी खुश,ब्लैकमेलिंग विदा

दिग्विजय सिंह को ब्लैकमेलर कहकर वनमंत्री उमंग सिंघार ने जन मन की आवाज का उद्घोष किया है। पार्टी के भीतर कमोबेश हर बड़ा छोटा नेता ये बात जानता है कि दिग्विजय सिंह के समर्थकों का गुट कैसे प्रदेश की सत्ता पर अपना जाल फैला चुका है। तबादले और पोस्टिंग का कारोबार जिस धड़ल्ले से दिग्विजय सिंह के दफ्तर से हुआ उससे वे खुद सत्ता के सबसे ताकतवर खिलाड़ी बन चुके हैं। कांग्रेस की सरकार आने के बाद से दिग्विजय सिंह का दफ्तर सत्ता पर कब्जा जमाने वाले,नेताओं, भ्रष्ट अफसरों और दलालों का अड्डा बना हुआ है। ये सब एक दिन में नहीं हुआ। पिछले तीस सालों से दिग्विजय सिंह की सतत राजनीतिक साधना का नतीजा है। दस साल मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पूरे प्रदेश के गांव गांव तक अपने समर्थकों की फौज तैयार कर ली थी। ये फौज कांग्रेस के भीतर से ही नहीं बल्कि तमाम विरोधी राजनैतिक दलों के बीच से भी चयनित और गठित की गई थी। लंबे समय से कांग्रेस में राजनीतिक दूकान चला रहे मठाधीशों को तबाह करने के लिए उन्होंने भाजपा के उभरते नेताओं को भी अपना समर्थक बनाया था। उनकी ये रणनीति कारगर रही। कांग्रेस में दिग्गी का एकछत्र शासन चला और सत्ता जाने के बाद भी उनके यही समर्थक उन्हें प्रासंगिक भी बनाए रहे।

ऊटपटांग बयानों और जनविरोधी फैसलों की आड़ में जब उन्होंने मध्यप्रदेश की सत्ता भाजपा को सौंपी तब वे जानते थे कि कांग्रेस फिलहाल सत्ता में लौटने वाली नहीं है। यही वजह थी कि उन्होंने दस सालों तक कोई चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी।अपने सभी समर्थकों को उन्होंने भाजपा के संगठन महामंत्री कप्तान सिंह सोलंकी से मिलकर भाजपा में भेज दिया। कांग्रेस के पंचायती राज में उनके इन्हीं समर्थकों ने भरपूर लूटपाट मचाई थी। भाजपा में शामिल होकर इन्होंने फिर से सत्ता पर कब्जा जमा लिया। सत्ता के इन दलालों को शुरुआती दौर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भरपूर संरक्षण भी मिलता रहा। इसकी एक वजह पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा थे,दूसरी वजह दिग्विजय सिंह की ब्लैकमेलिंग थी। पटवा को ये राजनीतिक विरासत स्वर्गीय अर्जुनसिंह से मिली थी। जब जब शिवराज सिंह चौहान को जानकारी मिली कि दिग्विजय सिंह के समर्थक जनहितकारी योजनाओं का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं तब तब उन्होंने इनके खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिश भी की। हर बार सुंदरलाल पटवा आड़े आए और उन्होंने शिवराज को कार्रवाई से रोक दिया। बाद में तो शिवराज सिंह स्वयं मजबूरी में इस लाबी का समर्थन करते नजर आए।

शिवराज सिंह चौहान ने राजनीतिक हस्तक्षेप से बचने के लिए सत्ता की बागडोर खुर्राट आईएएस अफसरों को थमाई थी। राधेश्याम जुलानिया जैसे तेज तर्रार आला अफसर ने तो पंचायतों को दिए जाने वाला फंड रोक दिया था जिसके खिलाफ पंचायत सचिवों ने कई बार आंदोलन भी किए। ये सभी दिग्विजय सिंह की उसी स्लीपर सेल के सदस्य थे जो पिछले चुनाव में भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस के साथ वापस जुड़ गए थे। शोभा ओझा आज उमंग सिंघार के घर के सामने पुतला जलाने वाले उन्हीं भाड़े के नेताओं को भाजपा का बता रही है।दिग्विजय सिंह इन्हीं दलालों के माध्यम से सबसे ज्यादा तबादले और पोस्टिंग कराने में सफल हुए हैं। जब तक कमलनाथ सरकार के मंत्री कामकाज समझ पाते तब तक सारा कारोबार दिग्गी समर्थकों ने समेट लिया है। उमंग सिंघार की दहाड़ की एक बड़ी वजह यह भी है।

विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस को जयस के नेतृत्व में चलने वाले आदिवासी आंदोलन का समर्थन मिला था। जिन आदिवासियों को भाजपा और संघ के तपोनिष्ट कार्यकर्ताओं ने बरसों के जनशिक्षण के बाद कांग्रेस से मुक्त करने में सफलता पाई थी उन्हें जयस ने आदिवासी मुख्यमँत्री की चाहत जगाकर अपने साथ कर लिया। सत्ता में आने के लिए जयस के नेता डॉ.हीरालाल अलावा ने अलग पार्टी बनाकर संघर्ष करने के बजाए खुद कांग्रेस का विधायक बनना पसंद कर लिया। कमलनाथ ने उन्हें सीटों के समझौते पर भी अपनी शर्तों पर सहमत कर लिया था। हीरालाल अलावा के कांग्रेस में शामिल होने से आदिवासियों के बीच थोड़ी नाराजगी भी फैली थी जिसकी वजह से अलावा को स्वयं अपना चुनाव जीतने में खासी मशक्कत करना पड़ी थी।

आदिवासियों का आंदोलन आज कांग्रेस की सत्ता का साथ पाकर एक बार फिर मजबूती से उभर रहा है। यह बेलगाम भी होता जा रहा है। इस पर लगाम लगाने के लिए कांग्रेस के भीतर से ही किसी आदिवासी नेतृत्व की सख्त जरूरत महसूस की जा रही थी। हीरालाल अलावा भी बार बार अपना वजूद बढ़ाने के लिए सरकार पर दबाव बना रहे थे। वे अभी राजनीति के नए नवेले खिलाड़ी हैं। सरकार के सत्ता में आने के बावजूद वे तबादलों और पोस्टिंग का धंधा समझ पाते इससे पहले सत्ता की मलाई दिग्विजय सिंह समर्थक चाट गए। इससे भाजपा से कांग्रेस में पहुंचे आदिवासी नेता खुद को छला महसूस करने लगे थे। इन सभी के बीच दिग्विजय सिंह की ब्रिगेड खलनायक के रूप में चर्चित रही है। यही वजह है कि आदिवासियों का नेतृत्व पाने के लिए उमंग सिंघार ने दिग्गी पर प्रहार करके आदिवासियों को खुश करने का प्रयास किया है।

मुख्यमंत्री कमलनाथ भी दिग्गी ब्रिगेड पर लगाम लगाना चाहते थे। इसके बावजूद उनकी ये हैसियत कभी नहीं रही कि वे दिग्विजय से सीधा टकराव ले सकें। दिग्विजय सिंह की ब्लैकमेलिंग की शैली से वे अच्छी तरह वाकिफ हैं। खुद उनके कारोबार की कई कच्ची कड़ियां दिग्विजय सिंह जानते हैं। बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान जिस हवाला गिरोह पर छापा पड़ा था उसकी गतिविधियों की सूचना दिग्विजय सिंह खेमे से ही लीक की गई थी। कमलनाथ के ओएसडी प्रवीण कक्कड और आरके मिगलानी तक तो जांच टीम पहुंची लेकिन कमलनाथ ने खुद को ज्यादातर आरोपों से बचा लिया। अब जिस तरह से उमंग सिंघार ने खुले आरोप लगाए तब राजनीतिक हलकों में यही माना जा रहा है कि उन्हें इसकी शह कमलनाथ खेमे से ही मिली थी।

उमंग सिंघार ने तो दिग्गी को नंबर एक का ब्लैकमेलर कहने के साथ साथ उन्हें शराब तस्करी और रेत व खनिजों की तस्करी को संरक्षण देने के आरोप भी लगाए हैं। दरअसल आरोपों की फेरहिस्त तो और भी लंबी है जिन्हें वे सार्वजनिक तौर पर बोलने से बचते रहे हैं। दिग्विजय सिंह से उमंग सिंघार की अदावट वैसे तो काफी पुरानी है। उनकी बुआ स्वर्गीय जमुनादेवी तो कई बार दिग्विजय सिंह के विरुद्ध मोर्चा खोलती रहीं हैं। तब दिग्विजय सिंह सरकार के कार्यकाल में उमंग सिंघार के खिलाफ कई आरोप लगाए गए थे। इस बार सत्ता में आने के साथ उमंग सिंघार ने पुरानी अदावट का सूद समेत बदला ले डाला है।

उमंग सिंघार की इस ललकार को ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी समर्थन मिला है। उन्होंने यह कहकर सिंघार का बचाव ही किया कि मामला अब मुख्यमंत्री जी के पास है इसलिए विवाद की कोई वजह नहीं बची है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर चल रहे विवाद को शांत करने के लिए फिलहाल कमलनाथ को ही जवाबदारी संभालने को कहा है।दिग्विजय सिंह इस मुद्दे पर खामोश हैं और उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया है कि खुद कमलनाथ इस विषय को देख रहे हैं। कमलनाथ से मुलाकात के बाद उमंग सिंघार ने भी चुप्पी साध ली है। उन्होंने कहा है कि वे अपनी बात कह चुके अब पार्टी हाईकमान ही आगे की कार्रवाई करेगी।फौरी तौर पर तो यह मामला शांत होता नजर आ रहा है लेकिन दिग्विजय सिंह समर्थक आगे भी खामोश रहेंगे यह नहीं कहा जा सकता। पहली बार राजनीति के अखाड़े में किसी योद्धा ने दिग्विजय सिंह को सीधी चुनौती दी है,जिस पर अभी कई नए दांवपेंच जरूर खेले जाएंगे।

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