मुख्यमंत्री कमलनाथ मध्यप्रदेश में श्रीमती इंदिरा गांधी की राजनीति की नकल करके अपनी सत्ता बचाने का प्रयास कर रहे हैं। बार बार वे केन्द्र सरकार के आर्थिक सुधारों को लागू करने का आश्वासन देते हैं लेकिन उसकी आड़ में राजनैतिक विरोधियों को कुचलने वाली राजनीति कर रहे हैं। वास्तव में वे किसी मूडी शासक की तरह बर्ताव कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी आम नागरिकों पर लांछन लगाने का काम कर रही है। मध्यप्रदेश में मिलावट को लेकर जो अभियान चलाया जा रहा है उसके बाद मिलावट के मामले घटने के बजाए बढ़ने लगे हैं। सरकार व्यापारियों पर रासुका लगा रही है इसके बावजूद उत्पादकता न बढ़ने से आई मंदी से जूझते लोग धड़ल्ले से मिलावट कर रहे हैं। कमोबेश ऐसी ही तस्वीर श्रीमती इंदिरागांधी के शासनकाल में भी देखी गई थी। उन्होंने आंतरिक सुरक्षा अधिनियम ( मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट ) लागू करके मिलावटखोरों,जमाखोरों के विरुद्ध अभियान चलाया था। इसकी आड़ में तमाम राजनैतिक विरोधियों को भी जेलों में ठूंस दिया गया था। आज कमलनाथ सरकार आंदोलन करने वाले नेताओं पर जुर्माना लगाकार कमोबेश वही संदेश देने का प्रयास कर रही है। मीसा बंदियों के लिए चालू की गई पेंशन योजना को भी बंद करके कमलनाथ अपने राजनैतिक वैमनस्य का परिचय पहले ही दे चुके हैं।
हाल ही में दो दिन पहले जब मुख्यमंत्री कमलनाथ को दिल्ली दरबार में हाजिरी देनी थी तब उनके मीडिया सलाहकारों ने खबर फैलाई कि सरकार ने मीसाबंदियों की पेंशन फिर शुरु कर दी है। शुरुआती कदम के रूप में दो हजार पेंशनरों को एरियर्स के साथ भुगतान कर दिया गया है। हालांकि इससे जुडा़ कोई आदेश जारी नहीं किया गया। सत्ता संभालते ही कमलनाथ ने पहले मीसाबंदियों की पेंशन बंद करने का आदेश दिया था बाद में सोच विचारकर कहा कि कुछ फर्जी लोग पेंशन ले रहे हैं इसलिए सरकार जांच के बाद पेंशन जारी करेगी।
दरअसल पिछली भाजपा सरकार ने मीसा बंदी के दौरान जेल में निरुद्ध किए गए राजनीतिक विरोधियों को लोकतंत्र सेनानी बताते हुए पेंशन शुरु की थी। ये पेंशन स्वतंत्रता सेनानियों की तर्ज पर जारी की गई। विधानसभा में पारित मध्यप्रदेश लोकतंत्र सेनानी सम्मान नियम 2018 के अंतर्गत ऐसे लोकतंत्र सेनानी जो एक माह से कम कालावधि के लिए निरुद्ध रहे उन्हें 8000 रुपए और जो एक माह या एक माह से अधिक समय तक निरुद्ध रहे उन्हें 25000 रुपए प्रतिमाह की दर से सम्मान निधि की पात्रता प्रदान की गई। सरकार की ओर से स्वाधीनता सेनानियों को भी पच्चीस हजार रुपए प्रतिमाह की पेंशन दी जाती है।
मीसाबंदी पेंशन के हकदार लोगों में भाजपा के साथ साथ कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों के जन प्रतिनिधि भी शामिल हैं। सरकार ने अपने बजट में वर्ष 2018-19 के लिए 40 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया है। पिछली सरकार ने वर्ष 2017 में सभी कलेक्टरों को परिपत्र जारी करके कहा था कि दिवंगत लोकतंत्र सेनानियों की पत्नियों या पतियों को सम्मान निधि का अंतरण एक महीने में हो जाना चाहिए।इसके बाजवूद सत्ता में आते ही कमलनाथ सरकार ने तमाम लोकतंत्र सेनानियों की पेंशन पर रोक लगा दी। सरकार के इस फैसले को हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में चुनौती भी दी गई। जिसमें कहा गया कि विधानसभा में पारित सरकार के फैसलो को कोई व्यक्ति केवल आदेश देकर खारिज नहीं कर सकता।जब 18 सितंबर 2018 को इसका प्रकाशन राजपत्र में भी कर दिया गया तो कोई व्यक्ति इसे सदन की अनुमति लिए बगैर कैसे खारिज कर सकता है।
लोकतंत्र सेनानी संघ के अध्यक्ष कैलाश सोनी का कहना है कि सरकार ने जब जांच कराने का फैसला लिया तो किसी ने इस पर आपत्ति नहीं की। कुछ ऐसे मामलों का हवाला दिया गया था कि पेंशन गलत लोग भी दे रहे हैं। इसके बावजूद जांच में एक भी व्यक्ति को गलत पेंशन दिए जाने का मामला सामने नहीं आया। इसके बावजूद सरकार पिछले नौ महीनों से पेंशन पर लोक लगाए हुए थी। उन्होंने सभी पेंशनधारियों को पूर्ववत भुगतान जारी रखने की मांग भी की है।
वास्तव में भाजपा सरकार ने जिन चार हजार लोकतंत्र सेनानियों को पेंशन चालू की थी उसका आधार जेलर से प्राप्त प्रमाण पत्र था। जिसमें जेल रिकार्ड के हवाले से निरुद्ध व्यक्ति के विरुद्ध दर्ज अपराध और जेल में बिताया उसका कार्यकाल प्रमाणित किया गया था। व्यक्ति या उसके परिजनों के जीवित होने का प्रमाणपत्र जांच करना विभागीय प्रक्रिया में पहले से ही शामिल है। इस लिहाज से पेंशन पर रोक लगाए जाने की जरूरत नहीं थी। इसके बावजूद सरकार ने पेंशन बंद कर दी। अब जबकि राज्य में वित्तीय संसाधनों की कमी है और राज्य संचालन के लिए केन्द्र से आर्थिक मदद की जरूरत महसूस हो रही है तब कमलनाथ सरकार ने पेंशन चालू करके केन्द्र सरकार को खुश करने का दांव खेला है।
पिछले नौ महीनों से पेंशन के लिए भागदौड़ करते रहे पेंशनधारकों का कहना है कि सरकार ने पेंशन बंद करने को लेकर अस्पष्ट नीति बना रखी है। कई जिलों के कलेक्टर मनचाहे तरीके से पेंशन जारी कर रहे हैं जबकि शेष प्रदेश में पेंशन बंद कर दी गई है। इसी तरह कांग्रेस से जुड़े मीसाबंदी पेंशन प्राप्त कर रहे हैं जबकि अन्य राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों को पेंशन के लिए भटाकाया जा रहा है। मीसाबंदी पेंशन को बंद करने के पीछे कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति भी एक बड़ा मुद्दा रही है। कमलनाथ इस पेंशन को बंद करके इंदिरागांधी के प्रति अपनी आस्थाओं का प्रदर्शन करना चाह रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी हों या राहुल गांधी और प्रियंका सभी कमलनाथ को अपना प्रतिनिधि मानते हैं। जबकि राहुल गांधी के करीबी होने के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया इसके बाद आते हैं। प्रदेश की ठाकुर लाबी इस गणित में सबसे पीछे आती है। ऐसे में कमलनाथ मीसाबंदी पेंशन को बंद करके अपनी पार्टी में राजनीतिक संतुलन साधने का प्रयास भी कर रहे हैं।
इस सबके बावजूद देश पहले ही श्रीमती इंदिरा गांधी की राजनीति का हश्र देख चुका है। एमपी में उस राजनीति का दुहराव राज्य के विकास में बड़ा रोड़ा बन रहा है।जिस तरह से वैमनस्य की राजनीति करके अब कमलनाथ मीसाबंदी का समर्थन करते नजर आ रहे हैं उससे साफ है कि जनता के बीच उमड़ता आक्रोश जल्दी ही सरकार को भारी पड़ने वाला है। सत्तर अस्सी के दशक में तो कांग्रेस ही सबसे प्रमुख राजनीतिक दल होता था। वक्त के साथ कांग्रेस की राजनीति अपनी लोकप्रियता खो चुकी है। ऐसे में कमलनाथ की वैमनस्य भरी मूडी राजनीति भाजपा के लिए मददगार ही साबित होगी।
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