मुख्यमंत्री कमलनाथ इन दिनों सत्ता माफिया से किए गए अपने चुनावी वादों को पूरा करने में जुटे हुए हैं। उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस ने जनता से जो वादे किए थे वे तो बेअसर रहे लेकिन जिन गिरोहों को उन्होंने इनाम देने के वादे किए थे उन्हें पूरा करने के लिए वे राज्य का खजाना लुटाने में जुटे हुए हैं। बात बात में खजाना खाली है का शोर मचाने वाले कमलनाथ ने हाल ही में उज्जैन पहुंचकर तीन सौ करोड़ रुपए के विकास कार्यों की घोषणा कर डाली। जबकि शिवराज सिंह चौहान सरकार ने सिंहस्थ के दौरान करोड़ों रुपयों के विकास कार्य उज्जैन में कराए थे। उन निर्माण कार्यों में भारी घोटाले के आरोप भी लगे थे। चुनाव के दौरान कांग्रेस ने भी सिंहस्थ घोटाले का शोर मचाया था।भाजपा के हाथों से बजट लूटने का काम जिस महाकाल माफिया ने किया था सत्ता में आने के बाद कमलनाथ फिर उसी महाकाल माफिया के सामने साष्टांग लेट गए हैं। इस माफिया का भगवान महाकाल से कोई लेना देना नहीं है। इसके विपरीत जनता को लूटने के लिए बिजली के दाम अनाप शनाप बढ़ा दिए गए हैं।
मध्यप्रदेश का महाकाल माफिया लंबे समय से राज्य की सरकारों को ब्लैकमेल करता रहा है। कमोबेश हर सरकार इस गिरोह के हाथों ब्लैकमेल होती रही है। इस गिरोह का काम नेताओं, आला अफसरों, पत्रकारों, बैंकरों, न्यायाधीशों की नियुक्तियां कराना और फिर उन्हें अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करना रहा है। चुनावों के दौरा ये गिरोह अपने अनुकूल सरकार बनाने के लिए तमाम रणनीतियां इस्तेमाल करता है। उज्जैन के कई अखाड़ों से इस गिरोह का संचालन किया जाता है। राज्य की सरकार को धमकाने के लिए गिरोह के सदस्य हमेशा प्रचारित करते रहते हैं कि कोई मुख्यमंत्री उज्जैन में रात्रि निवास नहीं कर सकता क्योंकि महाकाल ही राजा हैं। हर सिंहस्थ के बाद या तो मुख्यमंत्री हट जाता है या फिर सरकार बदल जाती है। इस किंवदंती को सच साबित करने के लिए देश भर में फैले माफिया से जुड़े सदस्य बयान देकर माहौल बनाते रहते हैं।
महाकाल का इतिहास देखें तो वर्तमान मंदिर को श्रीमान पेशवा बाजी राव और छत्रपति शाहू महाराज के जनरल श्रीमान रानाजिराव शिंदे महाराज ने 1736 में बनवाया था। इसके बाद श्रीनाथ महादजी शिंदे महाराज और श्रीमान महारानी बायजाबाई राजे शिंदे ने इसमें कई बदलाव और मरम्मत भी करवायी थी।महाराजा श्रीमंत जयाजिराव साहेब शिंदे आलीजाह बहादुर के समय में 1886 तक, ग्वालियर रियासत के बहुत से कार्यक्रमों को इस मंदिर में ही आयोजित किया जाता था।तभी से सिंधिया राजघराने की भूमिका महाकाल मंदिर के संचालन में प्रमुख तौर पर रहती आई है।
यही वजह है कि पिछले कई दिनों से राज्य में महाकाल माफिया ने ये कहानी उड़ाई कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के विद्रोह करके भाजपा में जा सकते हैं और भाजपा उनके नेतृत्व में कमलनाथ सरकार को गिराकर सत्तासीन हो जाएगी। इस कहानी को बल देने के लिए बाकायदा भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह से ज्योतिरादित्य सिंधिया की मुलाकात की घटना प्रचारित की गई।कहा गया कि सिंधिया अपने समर्थकों के साथ भाजपा को लेकर सरकार बनाने जा रहे हैं। भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है। जब जनता के बीच ये कहानी सुनी सुनाई जाने लगी तो कमलनाथ को अपनी कुर्सी पर खतरा मंडराता दिखा। इस दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया खामोश रहे और उन्होंने अपने पक्ष में चलती इस मुहिम का भरपूर आनंद लिया। लीपापोती करने पहुंचे कमलनाथ ने सार्वजनिक तौर पर महाकाल के आसपास विकास कार्यों के लिए तीन सौ करोड़ रुपए की योजना घोषित कर डाली। गौरतलब है कि जब प्रदेश का खजाना कथित तौर पर खाली है तब कमलनाथ को प्रदेश के विकास की कोई चिंता नहीं है और वे महाकाल माफिया के आगे घुटने टेककर खड़े हो गए हैं।
दरअसल पिछले विधानसभा चुनावों में इसी महाकाल माफिया ने सपाक्स पार्टी को झाड़ पोंछकर मैदान में उतारा था। तब ये अफवाह उड़ाई गई कि भाजपा सवर्णों के खिलाफ है। महाकाल माफिया के कारिंदों ने प्रदेश के सीधे साधे ब्राह्मणों को उकसाया कि वे आरक्षण के खिलाफ सवर्ण समाज पार्टी को वोट दें। इस षड़यंत्र का नतीजा ये रहा कि भाजपा का समर्पित वोटर पार्टी से खफा हो गया और वोट को बर्बाद होने से बचाने के लिए उसने कांग्रेस को अपना समर्थन दिया।अपने इस षड़यंत्र को हवा देने के लिए महाकाल माफिया ने शिवराज सिंह चौहान से वह बयान दिलवाया जिसमें उन्होंने कहा था कि कोई माई का लाल आरक्षण समाप्त नहीं कर सकता।
भगवान महाकाल की नीलकंठेश्वर वाली त्यागी भूमिका को सृष्टि के उद्भव का कारक माना जाता है। उनकी संहारक वाली छवि भी जन जन के बीच जिज्ञासा का केन्द्र होती है। ऐसे में महाकाल माफिया कहानियां प्रचारित करता रहता है कि यदि सिंहस्थ के बाद मुख्यमंत्री नहीं बदला गया या सरकार नहीं बदली तो प्रलय हो जाएगा। अपनी इस कहानी को सच साबित करने के लिए महाकाल माफिया ने शिवराज सिंह चौहान सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए अभियान चलाया था। तब प्रदेश के पंडितों के माध्यम से इसे धर्मयुद्ध बताया गया। कहा गया कि यदि सरकार नहीं बदली तो महाकाल के प्रति आस्थाओं में कमी आ जाएगी। पंडितों ने भी बढ़ चढ़कर इस सुर में सुर मिलाए। सरकार में आने के बाद कमलनाथ ने धर्मस्व विभाग का ढांचा बदल दिया और धर्मस्थलों को नियमित करने के नियम भी ढीले कर दिए।
मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार ने जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए न केवल शुद्धता को लेकर अभियान चलाया बल्कि हर जिले में कुछेक व्यापारियों के खिलाफ रासुका लगाकर अपने अभियान की पूर्णाहुति भी कर डाली है। हालांकि विकास के मोर्चे पर कमलनाथ सरकार बुरी तरह असफल साबित हुई है। उद्योगपति कमलनाथ ने कथित छिंदवाड़ा माडल की आड़ में उद्योगपतियों से जो वसूली अभियान चलाया उससे राज्य में अफरातफरी के हालात बन गए हैं। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव तो कहते हैं कि नौ माह बाद भी सरकार जनता को नतीजे नहीं दे पाई है। उसके मंत्री तबादलों में ही जुटे हैं। जनता की समस्याएं बढ़ती जा रहीं हैं और जनता में आक्रोश फैल रहा है।
राज्य में कमलनाथ को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करते समय कांग्रेस ने उन्हें उद्योपति बताया था। अब जबकि उद्योगों के बीच भय का माहौल है तब लोग सवाल कर रहे हैं कि कमलनाथ आखिर कौन सा उद्योग चलाते हैं और उनके कारखाने प्रदेश या देश के लिए कौन सा माल बनाते हैं।जब सरकार ने नवंबर 2019 तक प्रदेश के सभी मीटर बदलने का अभियान चलाया है। लोग पूछ रहे हैं कि प्रदेश में बिजली की क्षति लगातार बढ़ती जा रही है तब मीटर बदलने की ये मुहिम कमलनाथ से जुड़े किस उद्योगपति को लाभ पहुंचाने के लिए चलाई जा रही है।इसी बीच महाकाल माफिया को दस्तूरी पहुंचाने के कदम ने कमलनाथ की असलियत उजागर कर दी है।
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