आकाश की रिहाई की पहल करे सरकार

कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय ने मकान गिराने गए नगर निगम के अफसर को क्रिकेट के बैट से धुन डाला। अदालत ने इसे सरकारी काम में हस्तक्षेप बताते हुए आकाश को चौदह दिन की हिरासत में भेज दिया। मीडिया ने इसे विधायक की गुंडागर्दी बताते हुए सरकार की चिरौरी करना शुरु कर दी। इंदौर में इसे लेकर बावेला मचा है। आकाश ने अपने बयान में कहा कि लोक निर्माण मंत्री सज्जन सिंह वर्मा के रिश्तेदार(करीबी) ने वो पुराना मकान खरीद लिया था। नगर निगम का अमला बारिश के मौसम में उसे गिराने पहुंचा था। ये कवायद पिछले साल भी की गई थी। परिवार ने बेघर होने के बचने के लिए मोहलत मांगी तो निगम के अफसर ने महिलाओं को पैर पकड़कर बाहर घसीटना शुरु कर दिया। बगैर महिला पुलिस बुलाए ये कार्रवाई आनन फानन में इसलिए की गई क्योंकि निगम के अमले ने मकान खाली करने की सुपारी ली थी। जब इस बदतमीजी की खबर लोगों को मिली तो भीड़ इकट्ठी हो गई। लोगों ने इंदौर 3 के विधायक होने के नाते आकाश को बुला लिया। निगम का बायस नाम का अफसर खुद को कर्तव्यनिष्ठ बताने में जुटा था और लोगों में नाराजगी बढ़ती जा रही थी। विधायक ने निगम अमले को भीड़ के आक्रोश से बचाने के लिए उन्हें दस मिनिट में वापस लौट जाने को कहा। इस पर भी बायस नहीं माना और ज्यादा पुलिस बल को जुटाने का प्रयास करने लगा। निगम के अमले ने जो अप्रिय स्थितियां निर्मित की उसका नतीजा ये हुआ कि आकाश विजयवर्गीय ने क्रिकेट के बैट से धक्का देकर अफसर को घटना स्थल से जाने को कहा। सरकार के कारिंदों ने इस घटना के लिए विधायक को दोषी बताते हुए उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने का दबाव बनाना शुरु कर दिया।मकान खाली कराने की कवायद सामाजिक दबाव के साथ राजी खुशी से भी की जा सकती थी। भोपाल में चल रही कैबिनेट बैठक में ये मामला इसी नजरिए से रखा गया। सरकार ने बगैर सोचे समझे पुलिस को हरी झंडी दिखा दी। सरकार के उत्साही गृह मंत्री बालाबच्चन और लोक निर्माण मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने आग में घी डालने का काम किया और पुलिस ने आकाश को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। आकाश के वकील इस घटनाक्रम को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाए। कैलाश विजय वर्गीय पर घटना की निंदा करने का दबाव बनाने वाले पत्रकार को जब नसीहत दी गई कि वह जज बनने का प्रयास न करे तो उसे भी मीडिया ने प्रेस की आजादी पर हमला बताना शुरु कर दिया। दरअसल इस पूरे घटनाक्रम में अफसरों ने सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। इंदौर में नगर निगम का अमला जिस तरह भू माफिया बनकर काम कर रहा था उसके कारण ये अप्रिय स्थितियां निर्मित हुई हैं। नगर निगम का अमला पिछले एक साल से इस परिवार के विस्थापन और समझाईश में क्यों असफल हुआ इसकी वजह नहीं खोजी जा रही है। यदि मकान मंत्रीजी के करीबी ने भी खरीदा था तो निगम का अमला सदाशयता पूर्वक रहवासी परिवार के विस्थापन की कार्रवाई कर सकता था। बारिश के मौसम में परिवार को सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचाना निगम की जवाबदारी थी। निगम के पास इसके कई वैकल्पिक प्लान मौजूद थे। इसके बावजूद जिस तरह से परिवार की महिलाओं से बदसलूकी की गई उसके कारण तनाव पनपना स्वाभाविक था। जब इंदौर में ही हजारों परिवार विवादित प्रापर्टीज पर जमे हैं और निगम का अमला उन्हें खाली नहीं करा पा रहा है तो एक निरीह परिवार पर बहादुरी दिखाने की जरूरत निगम के अमले को क्यों पड़ गई। सरकार के काबिना मंत्री को ऐसी क्या जल्दबाजी थी जो उन्होंने निगम के अमले पर मकान खाली करने का दबाव बना डाला। दरअसल इंदौर का ये विवादित मकान शहर के विकास के कारण बहुत मंहगा स्थान बन चुका है। इसी वजह से मकान मालिक ने उसे मंहगी कीमत में बेच दिया। अब उस मंहगी प्रापर्टी को बाजार में बेचने लायक माल बनाने के लिए ही निगम के माध्यम से उसे जर्जर प्रापर्टी घोषित कराया गया था। जबकि मकान इस स्थिति में नहीं है कि खुद ब खुद गिर जाएगा। निगम कमिश्नर से लेकर अतिक्रमण अमले तक सभी इस प्रक्रिया में शामिल रहे। बेशक इस बेदखली को कानूनी रूप दिया गया है। इसके बावजूद मानवीय दृष्टिकोण से बेदखली को सहज बनाने में इंदौर नगर निगम पूरी तरह असफल साबित हुआ। निगम के किसी अफसर को ये छूट नहीं कि वो अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए नागरिकों पर बर्बरता करने लग जाए। यदि निगम का अमला अपनी कार्रवाई को रणनीतिक रूप से अंजाम देता तो ये हालात नहीं बनते। निगम के अमले को भीड़ के आक्रोश से बचाने के लिए विधायक आकाश विजयवर्गीय ने जिस हिकमतअमली का प्रयोग किया उसकी सराहना की जानी चाहिए। इसके बावजूद सरकार के चिलमखोर उसे विधायक की बदसुलूकी बताने की कोशिश कर रहे हैं। मुख्यमंत्री कमलनाथ हों या सरकार के आला अफसरान सभी को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। आकाश विजयवर्गीय पर कानून का डंडा चलाना आज इंदौर में सरकार की ज्यादति माना जा रहा है। इस घटनाक्रम ने आकाश को जन जन का नेता बना दिया है।सिख संस्कृति में तो लोकहित के लिए लड़ने वाले को शूरवीर कहा जाता है। निगम के अमले की असफलता को छुपाने के लिए सरकार जिस तरह राजनीतिक विद्वेष से ग्रसित होकर अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है उससे अल्पमत की सरकार के प्रति जन आक्रोश बढ़ने लगा है। सरकार के सभी नेता कह रहे हैं कि कानून अपना काम करेगा। उन्होंने घटना की निंदा करना और बयान देना भी शुरु कर दिया। अब जबकि घटना का दूसरा पहलू भी सामने आ गया है तब सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। इंदौर में नगर निगम के अमले को खदेड़ने का अभियान सरकार को खदेड़ने का जनआंदोलन न बनने पाए इसके पहले सरकार को सदाशयता दिखाते हुए विधायक आकाश विजयवर्गीय की रिहाई के लिए आगे आना चाहिए। निगम के अमले को जनता से बदसुलूकी करने के लिए भी दंडित किया जाना चाहिए।मौजूदा हालात में यही उचित होगा।

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