छतरपुर के बक्स्वाहा की हीरा खदान की किंबरलाईट पाईपलाईन नीलाम करने की मंजूरी कमलनाथ सरकार ने अपनी कैबिनेट से ले ली है। सरकार का अनुमान है कि इस खदान के नीलाम करने से राज्य को साठ हजार करोड़ रुपए की आमदनी हो जाएगी। इससे सरकार को भारी तरलता मिल जाएगी और वह कमलनाथ को विकास पुरुष बताने का अपना अभियान सफल बना लेगी। इस सिलसिले में मुख्यमंत्री कमलनाथ दो बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिल चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनसे आदिवासी इलाकों में विस्थापन की समस्या को लेकर कार्रवाई प्रचलन में होने की बात कही थी। सरकार पर दबाव बनाने के लिए कमलनाथ सरकार ने आदिवासियों को अन्य इलाकों में पट्टे की जमीन वितरित करने का अभियान शुरु करने की तैयारी कर डाली। ये जानकारी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मिल गई और उन्होंने आदिवासियों की ट्रेक्टर ट्राली रैली निकालकर कमलनाथ सरकार को ही घेर दिया। आनन फानन में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आदिवासियों की सभी मांगें मान लेने की घोषणा कर दी। शिवराज सिंह चौहान ने इसे आदिवासियों की जीत बताकर श्रेय लूटना शुरु कर दिया।
हालांकि शिवराज सिंह चौहान की इस भूमिका पर जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि पिछले पंद्रह सालों में वे आदिवासियों की समस्याओं का समाधान नहीं कर सके। जब हमारी सरकार ने आदिवासियों के हित में फैसले लिए हैं तो वे श्रेय लूटने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिवराज सिंह को दिल्ली जाकर केन्द्र सरकार से मांग करनी चाहिए ताकि आदिवासियों के लिए लंबित मांगों पर भारत सरकार सकारात्मक फैसले ले सके।
आदिवासियों को वनभूमियों पर पट्टे देने के मामले लंबे समय से लंबित पड़े थे। जंगलों को सुरक्षित रखने के लिए पिछली शिवराज सिंह सरकार वनभूमियों से विस्थापन का अभियान चलाती रही थी। इससे आदिवासियों में आक्रोश फैल गया था। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने आदिवासियों को उन्हीं जमीनों पर पट्टे देने का वादा किया था। इसके चलते कांग्रेस को 31 आदिवासी बाहुल्य सीटों पर विजय मिली थी। मुख्यमंत्री कमलनाथ को अफसरों ने सलाह दी थी कि जमीनों पर कब्जे को लेकर प्रकरण लंबित हैं। ज्यादातर मामलों में आदिवासियों के नाम पर जंगल माफिया ने अतिक्रमण किया है। मुख्यमंत्री ने तमाम आपत्तियों को दरकिनार करते हुए पट्टे देने को मंजूरी दे दी। सरकार ने फैसला लिया है कि यदि कोई सरपंच भी चाहे तो आदिवासियों को जमीनों पर पट्टे दे सकता है।
हालांकि आदिवासियों के इस अधिकार के पीछे असली वजह छतरपुर की वो हीरा खदान है जिसे नीलाम करने का लक्ष्य लेकर कांग्रेस सरकार ने कर्जमाफी और बेरोजगारी भत्ते जैसे वादे किये थे। सरकार के पास आर्थिक संसाधन नहीं हैं। इसकी वजह से ये घोषणाएं पूरी नहीं हो पा रहीं हैं। बिजली बिल आधा करने का वादा भी पूरा नहीं हो पा रहा है। जनता को भारी भरकम बिजली बिल चुकाना पड़ रहे हैं। इसे देखते हुए कमलनाथ सरकार आदिवासियों को आगे करके खदानों की लीज मंजूर करने के लिए केन्द्र पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रही है। रेतखदानें नीलाम करके तो कमलनाथ कांग्रेस ने अपने नेताओं को धंधे पर लगाना शुरु कर ही दिया है। अब उसे हीरा खदान नीलाम करने का टारगेट पूरा करना है। केवल इस खदान के नीलाम हो जाने से सरकार को एकमुश्त आय का स्रोत मिल जाएगा।
भारत सरकार ने फिलहाल इस खदान को नीलाम न करने की रणनीति बनाई है। भारत सरकार का विचार है कि जब दुनिया भर के हीरा खनिज खदानें समाप्त हो जाएंगी तब वह इस खदान को नीलाम करेगी। पिछले पंद्रह सालों में शिवराज सिंह सरकार भी ये खदान नीलाम नहीं कर पाई थी। जबकि कमलनाथ कांग्रेस का लक्ष्य केवल इस हीरा खदान को नीलाम करना है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी देवभोग हीरा खदान के माध्यम से डी बियर्स से संबंधों के लिए बदनाम हो चुके हैं। अब कमलनाथ इस हीरा खदान को लेकर आदिवासियों को लामबंद करने में जुट गए हैं। उन्होंने वनभूमियों पर अतिक्रमण के तमाम प्रकरणों को अनदेखा करके जंगलों की लूट की छूट दे दी है।
दरअसल खुद को विकास पुरुष बताने वाले मुख्यमंत्री कमलनाथ को अपनी सरकार के छह महीने बीत जाने पर ही काफी सफलता अनुभव हो रही है। सरकार बन जाने और तमाम उलटबांसियों के बाद भी चलते रहने का भरोसा खुद कांग्रेस के नेताओं को भी नहीं रहा है। जनता और सरकार के बीच जैसी संवादहीनता पनप गई है उसे देखते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आज राज्य मंत्रालय में प्रवक्ताओं की बैठक बुलाई और उनसे सरकार के उल्लेखनीय कामकाजों के बारे में जनता से संवाद करने का निर्देश दिया।
हीरा खदान पर भारत सरकार की मंजूरी मिलती है या नहीं ये तो आगे आने वाला समय ही बताएगा पर कमलनाथ सरकार को आर्थिक संसाधन जुटाने में जो परेशानी आ रही है उसके चलते प्रदेश में आक्रोश तेजी से भड़क रहा है।नगरीय निकायों के चुनावों की तैयारियां चल रहीं हैं और सरकार ने पत्रकारों के विज्ञापनों की उधारी भी नहीं चुकाई है। ऐसे में पत्रकारों की ओर से सरकार के कामकाज की तटस्थ समीक्षा शुरु हो गई है। जिसके चलते कमलनाथ सरकार को भय है कि प्रदेश में जन विद्रोह पनप सकता है। इसे देखते हुए कमलनाथ सरकार तेजी से खैरात बांटने के फैसले ले रही है। जबकि छिंदवाड़ा माडल का हवाला देकर सत्ता में आए कमलनाथ का औद्योगिक प्रबंधन चौखाने चित्त हो गया है। सरकार अपने पुराने ठेकेदारों को ही भुगतान नहीं कर पा रही है ऐसे में नए रोजगार सृजित करना सरकार के बस में नहीं है। सरकार को अपने कर्मचारियों को हर महीने 3200 करोड़ रुपए का वेतन भुगतान करना पड़ता है, जबकि उसकी आय में चार सौ करोड़ से ज्यादा की गिरावट आ गई है। ये रकम सरकारी अमले के सहयोग से कथित तौर पर कालाबाजार में पहुंचाया जा रहा है। कमलनाथ और उनके मंत्री बार बार झूठ बोलते हैं कि पिछली सरकार खजाना खाली करके गई है जबकि सरकार को हर महीने कर, लीज आदि से लगभग 4500 करोड़ की आय होती है। इसके बावजूद कमलनाथ सरकार अठारह हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज ले चुकी है। देखना है कि गहरे आर्थिक संकट से जूझती कमलनाथ सरकार इन चुनौतियों के बीच सफल हो पाती है या फिर भाजपा नेताओं के आक्रमण के चलते दम तोड़ देती है।
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