साध्वी प्रज्ञा के प्रचार की कमान आम जनता ने संभाली

भोपाल लोकसभा की हाईप्रोफाईल सीट का आमचुनाव इन दिनों साधू और शैतान की लड़ाई में तब्दील हो गया है। एक ओर जहां कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने जनसंपर्क, धनवर्षा, और पुलिसिया तालमेल के साथ अपराधियों की फौज मैदान में उतार दी है वहीं साध्वी प्रज्ञा सिंह के पक्ष में आम जनता ने मोर्चा संभाल लिया है। आम लोगों के समूह रोज सुबह एक से दो घंटों तक घर घर जाकर मतदान की अपील कर रहे हैं। कई स्वयंसेवियों ने तो अपने कारोबार बंद करके साध्वी के पक्ष में दिन रात की जवाबदारी संभाली है। वे लोगों को दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल के कुशासन की याद दिला रहे हैं और मौजूदा सरकार की असफलता की कहानियां सुना रहे हैं। साध्वी प्रज्ञा को झूठे मुकदमों में फंसाकर हिंदुओं को बदनाम करने वाले दिग्विजय सिंह को वोट न देने की अपील भी कर रहे हैं। इसके जवाब में दिग्विजय सिंह ने कुख्यात कंप्यूटर बाबा के नेतृत्व में बाबाओं की फौज मैदान में उतार दी है। भारी दान दक्षिणा लेकर मैदान में उतरे ये बाबा घर घर जाकर कह रहे हैं कि साध्वी प्रज्ञा कोई संत तो हैं नहीं, जबकि दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा करके खुद को हिंदू साबित कर दिया है। दिग्विजय सिंह के समर्थक घर घर जाकर नर्मदा जल की बोतलें, उनके हिंदू होने के प्रमाण पत्र और धन बांट रहे हैं इसके बावजूद आम जनता ने साध्वी प्रज्ञा के प्रचार की कमान संभाली है तो इसकी वजह आसानी से समझी जा सकती है।

बाबाओं में बंटती खीर पुड़ी का लंकर इतना विशाल है कि प्रदेश भर से बाबाओं की टोलियों ने इन दिनों भोपाल में डेरा डाल दिया है। ये बाबा नमक का कर्ज अदा कर रहे हैं और घर घर घूमकर दिग्विजय सिंह के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं। दिग्विजय सिंह ने लंबे समय से भोपाल से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रखी थी। उन्होंने पत्रकारों के बीच सघन संपर्क बना रखा था और उनके पक्ष में माहौल बनाने वाला एनजीओ विकास संवाद इसके लिए कई सालों से भूमिका बनाता रहा है।न्यू मार्केट के इंडियन काफी हाऊस में बैठने वाले उनके समर्थक नए पत्रकारों को अपने खेमें में खींचने का प्रयास करते हैं यहीं से उन पत्रकारों को दिग्विजय के लिए सहयोगी साबित होने वाली खबरें प्लांट की जाती रहीं हैं। यही वजह है कि जैसे ही भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से उम्मीदवार बनाया तो अखबारों और मीडिया चैनलों ने माहौल बनाना शुरु कर दिया कि भाजपा ने आतंकवादी को अपना प्रत्याशी बना दिया है। जबकि हकीकत ये है कि एनआईए ने एटीएस की भगवा आतंकवाद की कहानी को नकार दिया है और अदालत ने केवल सामान्य धाराओं में मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी। साध्वी प्रज्ञा और उनके सहयोगियों के विरुद्ध ये प्रकरण अभी भी अदालत में लंबित है लेकिन वो इतना कमजोर है कि जो ज्यादा लंबा नहीं खिंच सकता।

दिग्विजय सिंह विभिन्न समाजों के सम्मेलन भी आयोजित कर चुके हैं जहां उनसे जुड़े समाज के नेताओं ने अपने नेता के पक्ष में गुणगान करने में कोई कसर नहीं रखी। इस दौरान हर समाज के सहभोज भी कराए गए जिनकी फंडिंग दिग्विजय सिंह ने अपने छद्म सहयोगियों के मार्फत की थी।कांग्रेस कमेटी में प्रवक्ता माणक अग्रवाल के माध्यम से जो भारतीय मुद्रा की बारिश कराई जा रही है उसमें स्नान करने के लिए लोगों का तांता लगा हुआ है। फंडिंग का ये दारोमदार दिग्विजय सिंह के सुपुत्र और राज्य के नगरीय प्रशासन मंत्री जयवर्धन सिंह संभाले हुए हैं।

फंड का ये सैलाब लाने की तैयारी दिग्विजय सिंह ने लंबे समय से कर रखी थी। एक समय़ भाजपा की आर्थिक रीढ़ समझे जाने वाले दिलीप सूर्यवंशी और उनकी फर्म दिलीप बिल्डकान ने पूरे पंद्रह सालों तक राज्य के निर्माण ठेकों पर एकछत्र राज्य किया है। इस दौरान उनकी फर्म दिलीप बिल्डकान चंद लाख रुपयों से बढ़कर अरबों का आंकड़ा छू गई । बताते हैं कि दिग्विजय ने अबू धाबी की अपनी तेल लाबी के सहयोग से दिलीप बिल्डकान में अरबों रुपयों का निवेश करवाया था। जनवरी माह में अबू धाबी की इन कंपनियों ने अपना निवेश खींच लिया। इससे दिलीप बिल्डकान का जो शेयर लगभग 1200 रुपए की ऊंचाई छू रहा था वो घटकर 450 रुपए की जमीन पर आ गिरा।लगभग तीस प्रतिशत की शुरुआती गिरावट से ही भाजपा की संभावित आर्थिक रीढ़ टूट गई। एक समय जो दिलीप सूर्यवंशी खुद को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का फंड मैनेजर कहते थे वे आज दिग्विजय सिंह के दरवाजे खड़े हैं और चुनाव के लिए धन भी मुहैया करा रहे हैं।

यही नहीं उदय क्लब नामक उनका सहयोगी संगठन जिसमें भाजपा और कांग्रेस से जुड़े ठेकेदारों, अफसरों और नेताओं का गठजोड़ है वह भी दिग्विजय सिंह के पक्ष में थैलियां खोलकर रुपया खर्च कर रहा है। इसकी वजह है कि दिग्विजय सिंह ने आते ही भोपाल के विकास का विजन पत्र प्रस्तुत किया है। उनका बेटा नगरीय प्रशासन मंत्री है। मुख्यमंत्री कमलनाथ कह रहे हैं कि भोपाल के विकास की चाभी दिग्विजय सिंह के पास रहेगी। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के ठेकेदार दिल खोलकर दिग्विजय सिंह के पक्ष में धनराशि खर्च कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि यदि दिग्विजय सिंह चुनाव जीतते हैं तो उन्हें फिर विकास के नाम पर बड़े ठेके मिल सकते हैं। इस तरह विकास का विजन वास्तव में भोपाल के विकास के लिए नहीं बल्कि ठेकेदारों के विकास का विजन बन गया है।यही वजह है कि संगठन विहीन कांग्रेस मैदान में नजर आने लगी है और भाजपा मैदान से बाहर खड़ी दिख रही है। भाजपा के जो नेता ठेकेदार हैं वे इसलिए सामने नहीं दिखना चाहते क्योंकि उन्हें भय है कि भविष्य में ठेके मिलना मुश्किल हो जाएगा।

जो लोग दिग्विजय सिहं का शासन देख चुके हैं वे भयभीत हैं कि उन्हें एक बार फिर बंटाढार का शासन न झेलना पड़े, इसलिए उन्होंने खुद आगे बढ़कर साध्वी प्रज्ञा के प्रचार की जवाबदारी थाम ली है। उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोगियों का समर्थन मिल रहा है। उन्हें सबसे बड़ा सहयोग तो उन आम नागरिकों का मिल रहा है जो लंबे समय से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देख सुन रहे हैं। उनके कामकाज की उपलब्धियां जान चुके हैं। कांग्रेस और राहुल गांधी के गाली गलौच भरे दुष्प्रचार को झेल रहे हैं। दिग्विजय सिंह के दंभी कटाक्ष उन्हें याद हैं। वे जानते हैं कि आम नागरिकों को अपमानित करना दिग्विजय सिंह की आदत में शामिल है।

सबसे बड़ी बात तो ये है कि दिग्विजय सिंह की इस कुख्याति से हिंदू ही नहीं मुसलमान भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। रमजान की तैयारी कर रहे मुस्लिम, दिग्विजय सिंह की उस फौज की गतिविधियों को देख सुन रहे हैं जिसने बूथ मैनेजमेंट के लिए भोपाल में डेरा डाल रखा है।एक मेडीकल कालेज में डेरा डाले पड़ी इस अपराधियों की टोली और खुले लंगर के साथ इन्हें टैक्सियां दी गईं हैं। भोपाल लूटने के अंदाज में घूम रहे इन आपराधिक तत्वों पर पुलिस का कोई अंकुश नहीं है। इसकी वजह है कि दिग्विजय सिंह ने अपने चहेते आईपीएस वीके सिंह को पुलिस का मुखिया बनवाया है। उनके माध्यम से पुलिस को साफ निर्देश हैं कि बगैर छानबीन किए कोई प्रकरण दर्ज न करो। चुनाव में पुलिस और जनता के बीच टकराव टालते रहो। यही वजह है कि पुलिस की बंधी हुई घिग्घी को देखकर एक महिला पुलिस अफसर के बेटे ने एक डीएसपी को घर में घुसकर गोली मार दी। राजनैतिक हस्तक्षेप के बीच जब उस हत्यारे ने सरेंडर किया तो पुलिस ने अपने ही अफसर के खिलाफ कहानी प्रचारित कर दी कि वो महिला पुलिस अफसर को अश्लील मैसेज भेजता था इससे गुस्सा होकर बेटे ने उसे गोली मारी है। मुस्लिमों के बीच इस प्रकरण ने चिंता बढ़ा दी है। उन्हें लगने लगा है कि जिस दिग्विजय सिंह के समर्थक चुनाव जीतने के पहले इस तरह की गुंडागर्दी कर रहे हैं वे चुनाव जीतने के बाद तो खुलेआम लूटपाट करने लगेंगे। इस लिहाज से साध्वी को भले ही हिंदूवादी कहकर मुस्लिमों से काटने की कोशिश की जा रही है पर वे उनके लिए ज्यादा सुरक्षित साबित होंगी। इसकी एक वजह शिवराज सिंह चौहान का पिछला कार्यकाल भी है जिसमें मुस्लिमों को भरपूर विकास के अवसर मिले और भाजपा की कथित मुस्लिम विरोधी छवि से वे बाहर निकल चुके हैं।

जैसे जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है वैसे वैसे राजनीतिक दलों ने भी घर घर जाकर प्रचार की मुहिम तेज कर दी है। आम सभाएं और नुक्कड़ सभाएं भी हो रहीं हैं। इन सभी के बीच साध्वी प्रज्ञा को दी गई अमानवीय प्रताड़ना की जो बातें कहीं जाती हैं उनसे आम लोग उद्वेलित हो रहे हैं। देश में जिस राष्ट्रवाद का माहौल बन गया है उसके बीच साध्वी प्रज्ञा पर लगे झूठे आरोप तेजी से सहानुभूति बटोर रहे हैं। इस मुद्दे पर लिखीं गई किताबें (भगवा आतंक एक षड़यंत्र) और (आतंक से समझौता) ने भाजपा कार्यकर्ताओं के मन से संशय के बादल दूर कर दिए हैं। वे अब साध्वी प्रज्ञा की बेगुनाही और दिग्विजय सिंह के षड़यंत्रों के खिलाफ खुलकर प्रचार कर रहे हैं। ऐसे में साध्वी प्रज्ञा षड़यंत्रों की इस दीवार को फांदने के लिए तैयार हो चुकी हैं। जनता उनके पक्ष में जिस तरह स्वतःस्फूर्त ढंग के आगे आ रही है उसे देखते हुए भोपाल का चुनाव भावुक और रोचक हो गया है।

(लेखक पत्रकार होने के साथ साथ जन न्याय दल के सदस्य और प्रवक्ता भी हैं).

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