दस लाख कारोबारियों पर चोट

सरकार ने गुमाश्ता कानून में कराए गए पंजीकरण को हर पांच साल में नवीनीकृत कराने का नियम समाप्त कर दिया है। अब मध्यप्रदेश में दुकान और स्थापना अधिनियम-1958 के प्रावधानों के तहत छोटे दुकानदारों, स्थापनाओं एवं स्टार्ट-अप को बार-बार दुकानों के लाईसेंस का नवीनीकरण नहीं कराना होगा। कमलनाथ सरकार का कहना है कि ऐसा करके उसने छोटे दुकानदारों और कारोबारियों को ईज आफ डूइंग बिजिनेस की तहजीब से झंझट मुक्त कर दिया है। इस निर्णय से प्रदेश के लगभग 10 लाख से अधिक छोटे दुकानदार, स्थापना व्यवसाई और स्टार्ट-अप लाभान्वित होंगे। नई व्यवस्था के अनुसार दुकानदार और स्थापनाओं को पूरे व्यवसाय अवधि में एक बार ऑनलाइन पंजीयन कराना होगा। पंजीयन कराने के बाद भविष्य में व्यवसाय के स्वरूप में परिवर्तन होने पर ही अपने पंजीयन में संशोधन कराना होगा।साथ ही पंजीयन की विभिन्न श्रेणियों को खत्म कर मात्र दो श्रेणी तक ही सीमित किया जा रहा है।पहली नजर में यह कदम बहुत जनोन्मुखी नजर आता है। सरकार और उसकी संस्था कांग्रेस भी यही प्रचारित कर रही है। जबकि हकीकत में ये बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सुभीते के लिए उठाया गया कदम है। वालमार्ट जैसी संस्थाओं ने भारत में अपना कारोबार फैलाने के लिए बाजार की आजादी स्थापित करने की मांग लंबे समय से उठा रखी है। छोटे उपभोक्ताओं के दबाव के कारण ही वालमार्ट के ब्रांडों को केवल थोक कारोबार की इजाजत दी गई है। वे अपना माल केवल थोक उपभोक्ताओं को बेच सकते हैं। इसके लिए उन्हें थोक उपभोक्ताओं के गुमाश्ता प्रमाण पत्र को ग्राहकी का आधार बनाना होता है। जाहिर है कि हर साल या पांच साल में जारी किए जाने वाले गुमाश्ता प्रमाणपत्र को वालमार्ट में हर बार नवीनीकृत कराना होता है। जैसे ही गुमाश्ता अनुमति का समय बीत जाता है वैसे ही वालमार्ट उस प्रमाणपत्र पर कारोबार नहीं कर सकता। इससे वालमार्ट के तमाम ब्रांड भारत में खासा घाटा उठा रहे हैं। उनकी मांग है कि उन्हें फुटकर कारोबार की इजाजत दी जाए। वालस्ट्रीट के दिग्गज मार्गन स्टेनली का कहना है कि भारत में वालमार्ट को यहां के नियमों के कारण घाटा हो रहा है। अमेरिकी रिटेल कंपनी वालमार्ट ने भारत के जिस प्रमुख ई कामर्स प्लेटफार्म फ्लिपकार्ट में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई थी उसे वह बेच सकती है। ये उसी तरह होगा जैसे 2017 में अमेजन ने चीन को छोड़ दिया था। ब्रोकरेज फर्म मार्गन स्टेनली का कहना है कि भारत में ई कामर्स में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) के जो नए नियम बने हैं उनसे वालमार्ट और अमेजन जैसे दिग्गज भी हिल गए हैं। वालमार्ट ने मई 2018 में भारत की सबसे बड़ी ई कामर्स कंपनी फ्लिपकार्ट में 77 प्रतिशत हिस्सेदारी करीब 1.07 लाख करोड़ रुपए में खरीदी थी। स्थानीय कारोबारियों ने तबसे ई कामर्स कंपनियों के खिलाफ अभियान चला रखा है। कारोबारियों का कहना है कि ई कामर्स के कारण उनका कारोबार तबाह हो रहा है।इसके बाद मोदी सरकार ने एफडीआई के नियमों में जो बदलाव किए उनके चलते फ्लिपकार्ट को अपने मौजूदा प्रोडक्टस में से 25प्रतिशत को हटाना पड़ रहा है। इसमें स्मार्टफोन और इलेक्ट्रानिक्स के आईटम भी शामिल हैं। सप्लाई चेन और एक्सक्लूसिव डील्स को लेकर नियमों में बदलाव से इलेक्ट्रानिक सेगमेंट पर बड़ा प्रभाव पड़ रहा है। जबकि फ्लिपकार्ट की 50 फीसदी कमाई इसी केटेगरी से आती है। हालत ये हो गई है कि अमेजन को अपने दो टाप सेलर्स क्लाऊडटेल और एपैरियो को भी हटाना पड़ा है। क्योंकि इन दोनों में अमेजन की हिस्सेदारी थी। एक फरवरी से लागू नए नियमों के मुताबिक एफडीआई वाली ई कामर्स कंपनियां मार्केटप्लेस पर उन कंपनियों का सामान नहीं बेच सकेंगी जिनमें उन्होंने निवेश कर रखा है। इसी तरह वे एक्सक्लूसिव बिक्री के लिए भी करार नहीं कर सकती हैं। अमेजन ने तो इन नियमों का विरोध करते हुए एक फरवरी से अपने प्लेटफार्म पर किराना प्रोडक्ट्स की बिक्री रोक दी है। भारत में निवेश करने वाली इन्हीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव के आगे झुकते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने गुमाश्ता कानून की रीढ़ तोड़ दी है। अब जो प्रमाण पत्र एक बार जारी हो जाएंगे वे लगातार अस्तित्व में रहेंगे। इससे इन विदेशी कंपनियों को अपना ग्राहक आधार बढ़ाने में मदद मिलेगी। एक तरह से ये रिटेल बाजार में कब्जा जमाने की ओर बढ़ता कदम ही होगा। हालिया विधानसभा चुनावों में व्यापारियों ने भारी चंदा देकर भाजपा को हराने और कांग्रेस को सत्ता में लाने की मुहिम चलाई थी। सरकार के इस फैसले से उन्हें निराशा होगी। सरकार दावा कर रही है कि उसके इस फैसले से दस लाख छोटे व्यापारियों को सरलता हो जाएगी। जबकि हकीकत ये है कि सरकार के इस फैसले से दस लाख छोटे व्यापारियों की रोजी रोटी छिनने का संकट बढ़ गया है। भारत में पूंजीवाद लाने के लिए खुले बाजार को छूट देने की पहल 1991 में नरसिम्हाराव सरकार के वित्तमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह की पहल पर की गई थी। इसके बाद एनडीए की मनमोहन सिंह सरकार ने उन नीतियों को आगे बढ़ाया। आज जब मोदी सरकार देश की समृद्धि बढ़ाने की उसी दिशा में आगे बढ़ रही है तब उन नीतियों की आलोचना की जा रही थी। राज्य में कमलनाथ सरकार उन्हीं वैश्विक नीतियों को लागू कर रही है जिसका विरोध स्थानीय कारोबारी लंबे समय से करते रहे हैं। जाहिर है कि सरकार का यह फैसला एक बार फिर टकराव का माहौल निर्मित करेगा।

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